क्या चीन भारत का पानी रोक रहा है? सैटेलाइट डेटा से चौंकाने वाला खुलासा

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हाल ही में एक चौंकाने वाला दावा सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि भारत में बहने वाली सतलुज नदी (China India water) के जल प्रवाह में पिछले कुछ वर्षों में 75 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है। यह दावा किसी आम रिपोर्ट का हिस्सा नहीं, बल्कि सैटेलाइट डेटा के विश्लेषण से किया गया है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है – क्या चीन जानबूझकर भारत का पानी रोक रहा है?

सतलुज नदी भारत की प्रमुख हिमालयी नदियों में से एक है, जो तिब्बत के पठार से निकलती है। वहां इसे यारलुंग ज़ंगबो के नाम से जाना जाता है। यह नदी भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा राज्यों से होकर बहती है और आगे पाकिस्तान में सिंधु नदी से मिल जाती है। सिंधु जल संधि के तहत सतलुज नदी का जल उपयोग भारत को सौंपा गया है, लेकिन इसका मूल स्रोत तिब्बत में होने के कारण चीन की गतिविधियों पर भारत निर्भर करता है।

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सैटेलाइट डेटा में क्या दिखा?
पूर्व NASA स्टेशन मैनेजर और भू-स्थानिक विशेषज्ञ डॉ. वाई. नित्यनंदम के अनुसार, 2018 में सतलुज नदी का जल प्रवाह लगभग 8000 गीगालीटर था, जो अब घटकर मात्र 2000 गीगालीटर रह गया है। यह गिरावट सैटेलाइट द्वारा एकत्र किए गए डाटा और मॉडलिंग के आधार पर दर्ज की गई है।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदी में जल प्रवाह बढ़ना चाहिए। इसके उलट, सतलुज में जल प्रवाह घट रहा है, जिससे यह आशंका बढ़ रही है कि इसके पीछे कोई मानव निर्मित कारण, जैसे बांध या डायवर्जन हो सकता है।

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क्या चीन ने जल प्रवाह रोका है?
हाल के वर्षों में चीन ने तिब्बत में यारलुंग ज़ंगबो पर कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स और बांध बनाए हैं। इनमें सबसे चर्चित है “जादा गॉर्ज डैम”, जिसे रणनीतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन इन बांधों के माध्यम से पानी को रोक सकता है या उसकी दिशा बदल सकता है।

भारत और चीन के बीच जल साझाकरण को लेकर कोई औपचारिक संधि नहीं है। हालांकि, 2002 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत चीन भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी नदियों के जल स्तर की जानकारी प्रदान करता था। यह समझौता 2023 में समाप्त हो गया और चीन ने इसे अब तक नवीनीकृत नहीं किया है।

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भारत के लिए चिंता क्यों?
सतलुज नदी का पानी भारत के कई राज्यों में सिंचाई, पीने के पानी और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए उपयोग होता है। यदि जल प्रवाह में इतनी बड़ी गिरावट होती है, तो इसका असर सीधे कृषि उत्पादन, पेयजल आपूर्ति और ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि जल एक रणनीतिक संसाधन बनता जा रहा है। जिस तरह से चीन ने सीमा विवादों में आक्रामक नीति अपनाई है, वैसे ही जल संसाधनों को भी दबाव बनाने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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क्या कहती है सरकार?
भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस मुद्दे पर विदेश मंत्रालय और जल संसाधन विभाग सक्रिय निगरानी बनाए हुए हैं। विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया है कि भारत को चीन के साथ एक ठोस जल संधि की दिशा में प्रयास शुरू करना चाहिए, जिससे भविष्य में किसी तरह की जल-आधारित रणनीतिक अस्थिरता से बचा जा सके।

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