नोटबंदी के फैसले ने देश के करीब 60 लाख लोगों के मुंह से छिना निवाला: CMIE

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नई दिल्ली: कालेधन पर लगाम कसने के लिए पीएम मोदी ने पिछले साल आठ नवंबर को 500 आैर 1000 रुपये के बड़े पुराने नोटों के प्रचलन को बंद कर दिया, लेकिन हकीकत यह है कि उनकी इस नोटबंदी ने देश के करीब 60 लाख लोगों के मुंह से निवाला छीनने का काम किया है। जी हां हाल ही में सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी (सीएमआईई) की सर्वेक्षण रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के बाद भारत में लगभग 15 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी हैं।

अगर एक कमाऊ व्यक्ति पर घर के चार लोग आश्रित हैं, तो इस लिहाज से पीएम नरेंद्र मोदी के एक फैसले से 60 लाख से ज्यादा लोगों के मुंह से रोटी का निवाला छीन लिया गया. सीएमआईई ने सर्वे में त्रैमासिक वार नौकरियों का आंकड़ा पेश किया है।

सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार, नोटबंदी के बाद जनवरी से अप्रैल, 2017 के बीच देश में कुल नौकरियों की संख्या घटकर 405 मिलियन रह गयी थीं, जो सितंबर से दिसंबर, 2016 के बीच 406.5 मिलियन थी। इसका मतलब यह कि नोटबंदी के बाद नौकरियों की संख्या में करीब 1.5 मिलियन अर्थात 15 लाख की कमी आयी। देशभर में हुए हाउसहोल्ड सर्वे में जनवरी से अप्रैल, 2016 के बीच युवाओं के रोजगार और बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जुटाये गये थे।

कुल 5 लाख 19 हजार, 285 युवकों का सर्वे किया गया

देशभर में हुए हाउसहोल्ड सर्वे में जनवरी से अप्रैल 2016 के बीच युवाओं के रोजगार और बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जुटाए गए थे। इस सर्वे में कुल 1 लाख 61 हजार 168 घरों के कुल 5 लाख 19 हजार, 285 युवकों का सर्वे किया गया था। सर्वे में कहा गया है कि तब 401 मिलियन यानी 40.1 करोड़ लोगों के पास रोजगार था। यह आंकड़ा मई-अगस्त 2016 के बीच बढ़कर 403 मिलियन यानी 40.3 करोड़ और सितंबर-दिसंबर 2016 के बीच 406.5 मिलियन यानी 40.65 करोड़ हो गया। इसके बाद जनवरी 2017 से अप्रैल 2017 के बीच रोजगार के आंकड़े घटकर 405 मिलियन यानी 40.5 करोड़ रह गए। मतलब साफ है कि इस दौरान कुल 15 लाख लोगों की नौकरियां खत्म हो गई है।

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उद्योगों में आई मंदी की वजह से मजदूरों को काम नहीं मिले

आम भारतीय जिन नोटों का प्रयोग करते हैं, उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL) छापता है। BRBNMPL भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ही एक यूनिट है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 8 नवंबर 2016 को लागू हुई नोटबंदी का व्यापक प्रभाव इन महीनों में पड़ा है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सितंबर से दिसंबर 2016 में खत्म हुई तिमाही में भी नोटबंदी के आंशिक प्रभाव पड़े हैं। सर्वे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जनवरी 2016 से अक्टूबर 2016 तक मजदूर भागीदारी 46.9% थी, जो फरवरी 2017 तक घटकर 44.5%, मार्च तक 44% और अप्रैल 2017 तक 43.5% रह गई। यानी कल-कारखानों और उद्योगों में आई मंदी की वजह से मजदूरों को काम नहीं मिले।

खरीफ फसल से राहत आई, कैश की किल्लत से गरीब तबका परेशान

रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर से दिसंबर 2016 के अंतिम तिमाही में रोजगार के आंकड़ों में कम गिरावट की वजह अच्छी खरीफ फसल का उत्पादन होना है। सर्वे में कहा गया है कि नवंबर के बाद बाजार में आई कैश की किल्लत से मजदूर वर्ग को खासी परेशानियां उठानी पड़ीं।

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