राजस्थान: प्याज की कीमतें देश में कई बार सरकारों का तख्ता पलट कर चुकी है। राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में प्याज को लेकर जनता के मिजाज को ठंडा रखने के लिए सरकार किसानों से 2 लाख 60 हजार मेट्रिक टन प्याज खरीदने जा रही है।
इसके लिए किसानों को 6.18 रुपए प्रति किलो की दर से भुगतान किया जाएगा। प्याज के साथ 1.54 लाख मेट्रिक टन लहसुन की भी खरीद की जाएगी। इसके लिए किसान को 32.57 रुपए प्रतिकिलो की दर से भुगतान किया जाएगा। यह खरीद 13 अप्रेल से 12 मई तक राजफैड के जरिए की जाएगी। इसके लिए राज्य सरकार ने मार्च महीने में केंद्र सरकार से मंजूरी मांगी थी।
कहां कितना उगा प्याज-
इस साल प्रदेश में प्याज की बंपर पैदावार हुई है। किसान प्याज मंडी में ला रहा है। करीब 63 हजार हैक्टेयर में प्याज की बुआई हुई थी जिससे 13 लाख 19 हजार मीट्रिक फसल बाजार में आने की उम्मीद है। यानी पिछले साल से करीब पौने दो लाख मेट्रिक टन ज्यादा फसल इस बार हुई है। फिलहाल बाजार में देसी प्याज के लिए किसान को 6 से 7 रुपए किलो और नाकिस के प्याज के 9 से 12 रुपए किलो के भाव मिल रहे हैं।
प्रदेश में मई के बाद प्याज की कीमतें बढ़ने लगती हैं क्योंकि तब तक स्थानीय आवक लगभग खत्म हो जाती है और ज्यादातर आपूर्ति नासिक से होती है। प्याज कारोबारियों का कहना है कि अभी से सरकार किसानों से प्याज खरीद लेती है तो आने वाले महीनों में भी इसकी कीमतों में ज्यादा अंतर नहीं आएगा।
कहां होगी खरीद:
प्रदेश में जोधपुर, नागौर, सीकर, झुंझुनू, जयपुर और बीकानेर में राजफैड के जरिए प्याज की खरीद की जाएगी। वहीं कोटा, झालावाड़, बूंदी, बारां और प्रतापगढ़ में लहसुन खरीद केंद्र लगाए जाएंगे।
पिछले साल प्याज ने किया था परेशान
पिछले साल प्याज की कीमतों में काफी उठा पटक मची थी। साल की शुरुआत में किसान को प्याज की लागत का पैसा भी नहीं मिल पाया लेकिन बाद में स्टॉकिस्टों ने इसकी कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया। करीब पांच महीनों तक प्याज 45 से 60 रुपए किलो तक बिका। इस साल प्याज की कीमतें बढ़ती हैं तो इसका सीधा असर चुनावों पर होगा। इसलिए सरकार पहले से ही इसकी तैयारियां करके चल रही है।
हालांकि पिछले साल भी सरकार ने प्याज और लहसुन की खरीद के लिए मार्केट इंटरवेंशन स्कीम लागू की थी। इसमें लहसुन के लिए 32 रुपए और प्याज के लिए 4 रुपए किलो का भाव तय किया गया। इस भाव पर किसानों ने 105 मेट्रिक टन लहसुन सरकार को बेचा लेकिन प्याज बेचने के लिए कोई किसान नहीं आया क्योंकि बाजार में किसानों को इससे कहीं ज्यादा भाव मिल रहा था।
गौरतलब है कि हर पांच साल में होने वाले चुनावों में किसान और फसल के चलते सरकार को मुंह की खानी पड़ती है। वैसे ही उपचुनावों में लगातार हार का सामना कर रही है बीजेपी अब ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती जिससे आगामी चुनावों में असर देखने को मिले। बताया जाता है कि एक प्याज ने साल 1998 में बीजेपी को जोर दार झटका दिया था। ये ही नहीं शीला दीक्षित को सत्ता से उतारने के लिए ये प्याज भी जिम्मेदार है।
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