तलाक का नया ट्रेंड: मेट्रो कल्चर ने बढ़ाए पति-पत्नी के बीच विवाद, छोटी-छोटी बातें बनी कोर्ट के लिए आफत

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राजस्थान: पिछले 10 साल में जयपुर महानगर में मेट्रो कल्चर पनपने से एकाकी परिवारों का चलन बढ़ा है। साथ ही पति-पत्नी के विवाद कोर्ट तक पहुंचने लगे हैं। महानगर की 3 फैमिली कोर्ट में तलाक भरण पोषण सहित हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत लंबित मुकदमों के आंकड़ों पर गौर करें तो 2014 में जहां 2700 केस थे वे नवंबर 2017 तक ढाई गुना बढ़कर 6400 के आसपास पहुंच गए हैं। इतना ही नहीं 2015 से पत्नियां भी तलाक लेने की पहल करने लगी हैं। साल 2015-2016 में दायर कुल केसों में से करीब 30% केसों में पत्नियों ने तलाक की अर्जी दी है।

दैनिक भास्कर की एक खबर के मुताबिक, ये चलन मेट्रो कल्चर के कारण देखा जा रहा है। रिपोर्ट में निकलकर आया है कि अधिकाश मामले बच्चों और माता-पिता की भरण-भोषण को लेकर होने वाली समस्याओं से जुड़े है। जिनके मूल मुद्दे ऐसे नहीं है कि उनको कोर्ट तक पहुंचना चाहिए, आपसी समझ से भी सुलाझाए जा सकते हैं लेकिन मनमुटाव इन मामलों को सीधे कोर्ट तक पहुंचा रहा है।

किस तरह के केस आए ज्यादा सामने-
दांपत्य संबंधों की पुन: स्थापना के मामले।
– पति पत्नी के अलग रहने के मामले।
– विवाह को शून्य घोषित कराने के मामले।
– धोखे से हुए विवाह का शून्यकरण।
– विवाह विच्छेद कराने के मामले।
– अंतरिम गुजारा भत्ता और पत्नी, माता-पिता बच्चे भरण पोषण के मामले।

नहीं हो पाता समय पर केस का निपटारा
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 21 (बी) के तहत तलाक के मुकदमे का निपटारा 6 माह में करने का प्रावधान है। लेकिन लंबी तारीखें, सम्मन तामील नहीं होने सहित अन्य कारणों से केसों का निपटारा तय समय पर नहीं हो पाता।

मुकदमे बढ़ रहे हैं, लेकिन कोर्ट परिसर में आधारभूत सुविधाओं का अभाव है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी काउंसलिंग रूम तक नहीं है। पक्षकार और साथ आने वाले बच्चों को बैठने की जगह नहीं है। –डी.एस.शेखावत,अध्यक्ष, पारि.न्या.बार एसो.जयपुर

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