जानलेवा बीमारी की तरह है वीडियो गेम्स की वर्चुअल दुनिया, ऐसे होते हैं गेम एडिक्शन

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लाइफस्टाइल डेस्क: लंबे समय तक वीडियो गेम्स खेलने की वजह से बच्चों की नजरें कमजोर हो रही हैं। वहीं, फिजिकल एक्टिविटीज कम होने से उनकी मसल्स और हड्डियां मजबूत नहीं हो पा रही है। व्यवहार में बदलाव आने के कारण वे रियल नहीं वर्चुअल लाइफ में जीना शुरू कर रहे हैं। गेम्स की दुनिया को सच मानते हुए उसे रियल लाइफ में अपना रहे हैं। उदाहरण के लिए, यदि बच्चा कार से जुड़ा कोई गेम खेल रहा है। गेम में कार टकराने और उसे खत्म करने का सीन है।

बच्चा इसे रियल लाइफ में भी अपनाने की सोचता है। यही नहीं, सुपरमैन की तरह कॉपी शुरू कर देता है। इसे कॉपी करते हुए उसका व्यवहार भी उन कैरेक्टर जैसा बन जाता है। वो रोजमर्रा की जिंदगी उन करेक्टर की तरह व्यवहार करते हैं। धीरे-धीरे उनके व्यवहार में गुस्सा और जिद्दीपन आने लग जाता है। बच्चों की जिंदगी में आ रहे बदलाव के कारण ही डब्ल्यूएचओ ने इसे मेंटल हैल्थ कंडीशन में शामिल किया है। डॉक्टर्स के मुताबिक,यह यूनिवर्सल बीमारी है, लेकिन इसे डायग्नोस किया जा सकता है। उसके बाद इलाज संभव है।

कितने तरह का होता है वीडियो गेम एडिक्शन
स्टैण्डर्ड वीडियो गेम्स
एक ही व्यक्ति इसे खेल सकता है। इसमें खिलाड़ी का एक ही गोल और मिशन होता है। इस गेम का एडिक्शन होने पर हाई स्कोर को बीट करते हुए मिशन पूरा करना होता है।

ऑनलाइन एडिक्शन
अन्य वीडियो गेम एडिक्शन का सीधा संबंध ऑनलाइन मल्टी प्लेयर गेम्स से है। दूसरे लोगों के साथ यह गेम ऑनलाइन खेला जाता है। इनका एडिक्शन इतना ज्यादा होता है। ये गेम्स कभी खत्म नहीं होते हैं। अन्य ऑनलाइन प्लेयर्स के साथ रिलेशनशिप बनाते हुए ये प्लेयर्स को सच्चाई से दूर भगाता है। गेमिंग डिसऑर्डर की वजह से ब्रेन के न्यूरो ट्रांसमीटर में बदलाव आना शुरू हो जाते हैं। इसी बदलाव से बच्चों के व्यवहार में एडिक्शन आने लगता है। उनमें बार-बार एक ही तरह के विचार और सस्पेक्ट्रम डिसऑर्डर जैसी बीमारियां होना शुरू हो जाती है। हालांकि, इसमें पेरेंटिंग का रोल भी महत्वपूर्ण है। साथ ही इन गेम्स की वजह से कई बार बच्चे खुद को ओवर बर्डन या ओवर प्रेशर में महसूस करते हैं। वे गुस्सा करने के साथ ही जिद्दी बन जाते हैं। कभी-कभी वे इतने वायलेंट बन जाते हैं कि झूठ बोलना और चोरी करना शुरू कर देते हैं। नींद में कमी आने से एजुकेशन उनकी परफॉर्मेंस कमजोर होती है।

रियल लाइफ में अपनाते हैं वीडियो गेम का सीन
बच्चे वर्चुअल दुनिया में जीने की वजह से वे रियल लाइफ में सच्चाई का सामना नहीं कर पाते हैं। वीडियो गेम का सीन रीयल लाइफ में अपनाते हुए वे खुद को वर्चुअल में शिफ्ट हो जाते हैं। वे असफलता को नहीं स्वीकारते हैं। लगातार खेलने से आखों की रोशनी कम होती है। चश्मा लगने के चांस बढ़ जाते हैं। साथ ही बिहेवियर और फिजिकल चेंज भी आते हैं। इससे मसल्स और बोन्स डवलप नहीं हो पाती हैं। स्टेमिना डवलप नहीं हो पाती है। मोटापा बढ़ने से कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर बढ़ेगा। वहीं, गुस्सा करने के साथ साथ बच्चा दूसरों पर हावी होगा। वो सुपर मैन बनने की सोचेगा। उसकी कंसंट्रेशन नहीं बढ़ेगी।

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