किशोरों के अपराध से जुड़े 9 हजार मामले पेंडिंग, राजस्थान के ये जिले है लंबित मामलों में अव्वल

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जयपुर: केंद्र सरकार ने किशोरों से होने वाले अपराधों के मामलों की जल्दी सुनवाई के लिए किशोर न्याय एक्ट लागू कर रखा है। इसी एक्ट के तहत हर जिले में एक किशोर न्याय बोर्ड भी गठित है। इसके बावजूद राजस्थान में 9 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं। इनमें एक हजार से अधिक मामलों में किशोरों को न्याय का इंतजार करते हुए पांच साल से ज्यादा का समय बीत चुका है।

दैनिक भास्कर में छपी खबर के अनुसार, पेंडिंग केसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने जल्दी निस्तारण के निर्देश दे रखे हैं, लेकिन न्याय की प्रक्रिया धीमी ही चल रही है। लंबित मामलों में जयपुर पहले नंबर पर है। श्रीगंगानगर दूसरे और सवाईमाधोपुर जिला तीसरे नंबर पर है। अकेले जयपुर में ही एक हजार से अधिक मामलों में निर्णय होना है। ये लंबित मामले चोरी से लेकर हत्या तक के गंभीर अपराधों के हैं।

किशोर न्याय बोर्ड 18 साल से कम आयु के किशोरों के हाथों होने वाले अपराधों की सुनवाई करता है। बोर्ड ही प्रारंभिक जांच के बाद यह तय करता है कि किशोर अपराधी को पुनर्वास के लिए भेजा जाए या उस पर किसी बालिग की तरह मुकदमा चलाया जाए। विधानसभा में पेश एक आंकड़े के मुताबिक बोर्डों में सभी जिलों में कुल 9,338 मामले लंबित हैं। इनमें से 1068 मामलों को तो 5 साल से अधिक हो गए। लंबित प्रकरणों का मामला विधानसभा के बजट सत्र में भी उठ चुका है। यह मामला भाजपा के ही विधायक अभिषेक मटोरिया और मंजू बाघमार उठाया था।

लंबित मामले
6 माह से 1304
1 साल 1335
2 साल 1645
3 साल 1503
4 साल 1132
5 साल 1351
5 साल से अधिक 1068
कुल- 9,338

सबसे ज्यादा लंबित प्रकरण
जयपुर 1094
श्रीगंगानगर 847
सवाईमाधोपुर 620
भरतपुर 555
अलवर 514
बाड़मेर 341
जोधपुर 331
बारां 284
बीकानेर 249
भीलवाड़ा 253

सबसे कम हैं लंबित मामले
जैसलमेर 81
टोंक 99
जालौर 83
राजसमंद 52
सिरोही 48 
(आंकड़े दिसंबर 2017 तक के)

क्या है किशोर न्याय बोर्ड-
किशोर न्याय एक्ट-2015 की धारा 4 के अंतर्गत आदर्श नियम-2016 के अनुसार राज्य के प्रत्येक जिले में विधि से संघर्षरत बच्चों के मामलों की जांच, सुनवाई और निस्तारण के लिए एक या अधिक किशोर न्याय बोर्ड का गठन किया जाना अनिवार्य है। यह बोर्ड एक महानगर मजिस्ट्रेट/ प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट और 2 सदस्य (जिसमें एक महिला हो) से बनी एक न्यायपीठ होती है। प्रत्येक किशोर न्याय बोर्ड को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में प्रदत्त महानगर मजिस्ट्रेट/प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त होती है। बोर्ड में जो दो सदस्य होते हैं, वे सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं और उनका चयन एक तय प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। 

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