एमजीएसयू :  महिला की नैतिक शिक्षा में भूमिका विषय पर अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित

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नैतिकता की परख व्यक्ति के उत्तरदायित्व के निर्वहन से परिलक्षित होती है : प्रो. रविंद्र कुमार
हम केयर पर ध्यान दे रहे हैं गाइडेंस पर नहीं। शिक्षा की भूमिका एक निश्चित मानवीय आचरण से जीने की योग्यता पैदा करना है। यदि हम गौर करें तो पाएंगे कि प्रकृति के हर अवयव में एक निश्चित आचरण दिखाई देता है। बच्चा मां से सीखता है, परिवार से सीखता है। यह विचार व्यक्त किए बीज वक्ता बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एच डी चारण ने। वे एमजीएसयू के पंडित मदन मोहन मालवीय मूल्य शिक्षा केन्द्र व महिला अध्ययन केन्द्र द्वारा संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद में बोल रहे थे जिसका विषय नैतिक शिक्षा में महिलाओं की भूमिका रहा।
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की आयोजन सचिव सेंटर फॉर वूमेन स्टडीज की डायरेक्टर डॉ मेघना शर्मा ने समस्त अतिथियों का परिचय देते हुए व कार्यक्रम का संयोजन करते हुए कहा कि नैतिक मूल्यों के प्रवर्तन में सबसे अहम भूमिका मां के द्वारा निभाई जाती है।
समस्त अतिथियों का स्वागत आइक्यूएसी निदेशक व पंडित मदन मोहन मालवीय सेंटर फॉर वैल्यू एजुकेशन के निदेशक प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल द्वारा दिया गया।
विशिष्ट अतिथि कुआलालम्पुर, मलेशिया के प्रो. धर्मदास दामू ने कहा कि शिक्षित महिला संतति में उत्कृष्ट नैतिक मूल्यों का प्रस्फुटन कर सकती है ।बालकों का भविष्य निर्माण नैतिक मूल्यों पर निर्भर करता है । मलेशिया में महिलाओं की स्थिति का एक शाब्दिक चित्रण करते हुए प्रो. दामू ने नैतिक मूल्यों के प्रतिपादन की भूमिका पर बल देते हुए कहा कि मां अपनी संतति को योग्य बनाने के लिए अपने समय का, यहां तक कि अपने कैरियर तक का भरपूर त्याग कर देती है ।
मुख्य अतिथि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रोफेसर रविंद्र कुमार ने मूल्य शिक्षा और महिलाओं के योगदान को विश्व स्तर पर चर्चित व वर्तमान में ज्वलंत विषयों में से एक बताया । उन्होंने कहा कि मूल्य शिक्षा अपने आप में राष्ट्रीय शिक्षा का ही एक रूप है। वैदिक मंत्रों से जुड़ी अपाला, घोषा, गार्गी जैसी विभूतियों के मूल्य शिक्षा संबंधित योगदान को याद रखना हमारे उत्थान हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि व्यक्ति में नैतिकता की परख उसके उत्तर दायित्वों के निर्वहन से ही परिलक्षित होती।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह ने कहा कि पिता कुपिता हो सकता है किंतु माता कुमाता नहीं हो सकती। मां वो पहला शब्द होता है जो बच्चा बोलना सीखता है, मातृशक्ति से दो घरों का कल्याण होता है इसीलिए सर्वप्रथम नारी की शिक्षा पर ध्यान देना होगा तत्पश्चात वह मूल्य शिक्षा के प्रसार के क्षेत्र में बेहतर योगदान दे सकेगी। शिक्षा निश्चित रूप से जीवन में प्रगति करने का एक शक्तिशाली उपकरण है।
अंत में आयोजन सचिव डॉ मेघना शर्मा ने समस्त अतिथियों व विभूतियों का औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित किया।

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