सुभाष जयंती विशेष – ये हैं वो कार जिससे बच कर निकले थे नेताजी सुभाष चन्द्र

शौक था कारों को, कभी खरीदी नहीं । ऑडी वांडरर डब्ल्यू-24 उन्हीं में से एक थी, इस घटना को इतिहास में द ग्रेट इस्केप के नाम से जाना जाता है।

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आज 23 जनवरी हैं अर्तार्थ भारत के एक महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हैं । नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पूरी ज़िन्दगी एक बहुत पहेली हैं, कभी भूमिगत सुभाष तो कभी आँखों में धुल झोंकते सुभाष। स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।

क्या आपको पता हैं नेताजी कारों के बेहद शौकीन थे, हालांकि दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई कार नहीं खरीदी। तो आइए आज नेता जी की 120वीं जयंती पर जानें उनसे जुड़ी रोचक बातें….

शौक था कारों को, कभी खरीदी नहीं
नेताजी के पौत्र चंद्र कुमार बोस ने कहा कि यह बात सही है कि नेताजी कारों के शौकीन थे। जहां तक मुझे पता है नेताजी ने कभी कोई कार नहीं खरीदी थी। वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी गतिविधियों में इतना व्यस्त रहते थे कि उनके पास इसके लिए समय ही नहीं था। उनके बड़े भाई शरत बोस जो कारें खरीदते थे, नेताजी उन्हीं में बैठकर आया-जाया करते थे। शरत बोस को भी कारों का शौक था और उनके पास विलिज नाइट व फोर्ड समेत छह-सात कारें थीं।


ऑडी में बैठकर भागे थे
ऑडी वांडरर डब्ल्यू-24 उन्हीं में से एक थी, जिसमें बैठकर नेताजी एल्गिन रोड स्थित अपने घर में नजरबंदी के दौरान अंग्रेजों को चकमा देकर निकले थे। इस घटना को इतिहास में द ग्रेट इस्केप के नाम से जाना जाता है। नेताजी के भतीजे डॉ. शिशिर बोस उस कार को चलाकर गोमो ले गए थे।


क्यों चुना था इसी कार को
नेताजी पर शोध करने वालों का कहना है कि यूं तो नेताजी भवन में कई कारें रखी हुई थीं, लेकिन वांडरर कार छोटी और सस्ती थी और इस कार का आमतौर पर मध्यम आय वर्ग के लोग ही ग्रामीण इलाकों में इस्तेमाल किया करते थे। नेताजी भवन में रखी वांडरर कार का ज्यादा इस्तेमाल नही होता था, इसलिए जल्दी किसी का ध्यान इस पर नहीं जाता था। विलक्षण बुद्धि के मालिक नेताजी भली-भांति जानते थे कि किसी और कार का इस्तेमाल करने पर वे आसानी से उनपर नजर रख रही ब्रिटिश पुलिस की नजर में आ सकते हैं, इसी कारण अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उन्होंने इस कार को चुना था। 18 जनवरी, 1941 को इस कार से नेताजी शिशिर के साथ गोमो रेलवे स्टेशन (तब बिहार में, अब झारखंड में) पहुंचे थे और वहां से कालका मेल पकड़कर दिल्ली गए थे।


108 किमी/घंटे से दौडती थी
फिलहाल नेता जी की इस ऑडी कार को रिपेयर किया जा रहा है। कोलकाता के 10 मैकेनिकों की टीम ने पिछले साल मई में इसके जीर्णोद्धार का काम शुरू किया था। अनावरण के बाद अब नेताजी भवन स्थित संग्रहालय में आने वाले लोग इसे यहां हफ्ते में एक दिन चलते हुए भी देख पाएंगे। 1937 में निर्मित इस विरासती कार में चार सिलेंडर वाला इंजन है, जिससे यह 108 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है।

साभार – इंटेक्स

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