इस ‘भारत बंद’ को बंद करों….

भारत की परम्परा और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए अगर विरोध के लिए इस तरह के भारत बंद को बंद करना अनिवार्य है नहीं तो हम हमारी परम्परा के मुताबिक पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का भला कभी नहीं सोच पाएंगे और हम उस जरुरतमंद का नुकसान करेंगे जिसके लिए विरोध से ज्यादा जरुरी उसका जीवन या जीविकोपार्जन हैं ।

0
538

पिछले दिनों देश में जो कुछ हुआ वह कुछ नया नहीं है परन्तु हर बार की तरह कुछ ऐसे सवाल छोड़ गया जिनका जवाब चाहते हुए भी बहुत से लोग बोलना नहीं चाहते हैं। इस बार के भारत बंद की श्रृंखला ने भारत बंद को ‘बंद करों’ की आवाज़ को भी बहुत से दिलों में बुलंद किया हैं। कभी जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर तो कभी पार्टी के नाम पर भारत बंद !

आजकल यह आम बात है कि कोई संगठन या पार्टी अपनी मांग के लिए भारत बंद का आह्वान कर देती हैं और सोशल मीडिया पर सस्ते इंटरनेट ने तो इसको इस कदर हवा दी है कि बगैर संगठन के भी भारत बंद हो जाता हैं । विरोध जताने के लिए भारत बंद एक चर्चित और आम जरिया हो गया हैं परन्तु मुझे यह समझ में नहीं आया कि भारत बंद कर के युवा किस का नुकसान कर रहा हैं ? यह बड़ा सवाल है जिसका जवाब हर किसी को पता है ।

आप हमारी संस्कृति पर नज़र डालें तो बहिष्कार कोई नया तरीका नहीं है परन्तु अगर उन सभी बहिष्कारों पर नज़र डालें तो आपको एक बहुत बड़ा फर्क नज़र आ जायेगा, जैसे परिवार में बच्चे अपनी जिद मनवानें के लिए बहिष्कार के रूप में खाना पीना छोड़ देते है तो वह उनका स्वयं का निर्णय होता है और स्वयं की किसी वस्तु या गतिविधि का बहिष्कार करते हैं और अपने चाहने वालों से भी इस तरह के बहिष्कार में उनकी मदद करने के लिए निवेदन करते हैं। आज़ादी की लड़ाई को देखें तो हमारे नेताओं ने भी इस बहिष्कार के लिए तरह–तरह के तरीके अपनाएं और जो लोग साथ आयें उनको मिलाकर कारवां बना दिया गया । पौराणिक कथाओं में भी आपको इस तरह के उदाहरण मिलते है जैसे कैकेयी कोपभवन में चली गयी आदि । इन सभी से यह बात तो तय हो जाती है कि यह तरीका कोई नया नहीं है परन्तु अब इस पुराने तरीके में जो नयापन आया है वह कुछ अजीब है ।

विरोध के लिए किए जा रहे भारत बंद में किसी को मन से शामिल करने की बजाए जबरदस्ती का उपयोग किया जा रहा हैं । कुछ युवाओं का समूह घूम कर जबरदस्ती बाज़ार बंद करवा रहा है, यह है आजकल का वास्तविक भारत बंद । इस युवाओं के समूह में खास तौर से बेरोजगार व्यक्ति होते है जो वास्तव में स्वयं का कुछ भी बंद नहीं करते है बल्कि आने वाली युवा पीढ़ी को भी बहकावे में लाकर अपने साथ-साथ इस जबरदस्ती के कृत्य में शामिल करते हैं, जो भविष्य में जाकर एक अलग राह पर चल पड़ते है जहाँ से उनका लौट कर आना संभव नहीं होता हैं । इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन लोगो के इशारे पर यह सब कुछ होता है वो तो इस कीचड़ का एक दाग अपने दामन तक नहीं आने देते ।

भारत की परम्परा और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए अगर विरोध के लिए इस तरह के भारत बंद को बंद करना अनिवार्य है नहीं तो हम हमारी परम्परा के मुताबिक पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का भला कभी नहीं सोच पाएंगे और हम उस जरुरतमंद का नुकसान करेंगे जिसके लिए विरोध से ज्यादा जरुरी उसका जीवन या जीविकोपार्जन हैं । मेरा मतलब साफ़ है कि जबरदस्ती द्वारा बंद करवाई गई दुकान के मालिक को शायद कुछ फर्क पड़े ना पड़े लेकिन उसकी दुकान से रोजाना खरीददारी या उधारी लेकर अपना चूल्हा जलाने वाले परिवार को भूखा सोना पड़ता हैं या इसको दूसरी नज़र से देखें तो बहुत से परिवार ऐसे है जो एक दिन में अपनी रेहड़ी या मजदूरी से उतना ही कमा पाते हैं कि अपने परिवार का पेट पाल सकें और हमारा यह भारत बंद उनकी रोजगारी / मजदूरी पर वार करता है और पूरे परिवार को पेट पर गिला कपड़ा बांध कर सोने के लिए मजबूर करता हैं । क्या हमारी संस्कृति हमको यही सिखाती है !!, जी नहीं, हमारी संस्कृति में इस तरह के कृत्य की कोई जगह नहीं हैं तो इस तरह का भारत बंद क्यों नहीं बंद किया जाएं ? वास्तव में ज़बरदस्ती के भारत बंद से आप कौनसा विरोध जता रहे हैं, अगर कोई अपनी मर्ज़ी से भारत बंद करें तो बात समझ में आती है कि सच में वह विरोध या बहिष्कार कर रहा है ।

मेरा यहाँ यह मतलब नहीं है कि सरकार द्वारा किये जाने वालें अनुचित फैसलों या अपनी मांग रखने के लिए विरोध नहीं किया जाएं, परन्तु मेरा कहना साफ है कि भारत बंद के अलावा भी विरोध के बहुत सारे तरीकें हैं उनको अपना कर विरोध जताया जाएं । इस तरह के विरोध में राष्ट्रीय सम्पति का जो नुकसान होता है उसका भुगतान बाद में महंगाई के रूप में हम सभी को ही भरना हैं और जो नुकसान उस गरीब परिवार का होता है उसका हर्जाना पता नहीं कौन भरेगा लेकिन उसकी हाय आपको अवश्य असर दिखाएंगी । विरोध के लिए सभ्य तरीकों का इस्तेमाल और अपने विरोध में सम्मिलित होने के लिए जबरदस्ती की जगह निवेदन का सहारा लेकर हम हमारी मानवता और भाईचारे की संस्कृति को भी कायम रख सकते हैं । वास्तव में अगर विरोध हो तो भारतीयों की तरफ से विरोध हो, किसी जाति, पार्टीयां समुदाय की तरफ से विरोध ना हो, तो इस वक़्त जरुरत है इस भारत बंद को बंद करने की !! अगर आप इस विषय पर कुछ लिखें तो #bannOnBharatBand का उपयोग करें और अपनी आवाज़ बुलंद करें ।

डिस्क्लेमर: यह आलेख पञ्चदूत की मासिक पत्रिका सितम्बर माह का संपादकीय है। यदि आप इस माह की पत्रिका पढ़ना चाहते हैं तो वेबसाइट (www.panchdoot.com) पर जाकर ई-कॉपी डाउनलोड करें। इसके अलावा अगर आप भी अपने लेख वेबसाइट या मैग्जीन में प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो हमें [email protected] ईमेल करें।

 

रूचि के अनुसार खबरें पढ़ने के लिए यहां किल्क कीजिए

ताजा अपडेट के लिए लिए आप हमारे फेसबुकट्विटरइंस्ट्राग्राम और यूट्यूब चैनल को फॉलो कर सकते हैं