क्या है कच्चाथीवू द्वीप विवाद, विस्तार से समझिए क्यों गर्म हुई सियासत?

साल 1983 से लेकर 2009 तक कच्चाथीवू द्वीप का विवाद हाशिये पर चला गया। इस बीच श्रीलंका में गृहयुद्ध शुरू हो गया। श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच युद्ध जारी रहा। इस दौरान भारतीय मछुआरों के लिए श्रीलंकाई क्षेत्र में जाना आम बात थी।

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Katchatheevu Island: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि कांग्रेस ने भारत के रामेश्वरम के पास मौजूद कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। हर भारतीय इससे नाराज है और यह तय हो गया है कि कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। PM ने कच्चाथीवू पर एक RTI रिपोर्ट का हवाला देकर सोशल मीडिया पर यह बात कही।

इस RTI रिपोर्ट में बताया गया है कि 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने इस द्वीप को श्रीलंका को गिफ्ट कर दिया था। प्रधानमंत्री ने अपनी पोस्ट में कहा कि कांग्रेस पिछले 75 साल से भारत की एकता और अखंडता को कमजोर करने का काम करती आ रही है। जबसे इस पर काफी चर्चा तेज हो गई है कि आखिर कच्चाथीवू द्वीप क्या है और इसपर इतना विवाद क्यों है? आज इस आर्टिकल में ये जानेंगे। तमिलनाडु में भारत के समुद्र तट से कुछ दूर, कुछ किलोमीटर दूरी पर श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच समंदर में एक टापू है। इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, इसका नाम है कच्चाथीवू द्वीप।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल फरवरी में रामेश्वरम से हजारों लोग कच्चाथीवू द्वीप पर बने सेंट एंथोनी चर्च में प्रार्थना करने के लिए जाते हैं। इस चर्च को तमिलनाडु के एक तमिल कैथोलिक श्रीनिवास पदैयाची ने 110 साल पहले बनवाया था। 2016 में मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि श्रीलंका सरकार अब इस चर्च को गिराने की तैयारी कर रही है, लेकिन बाद में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने स्पष्ट किया कि ऐसा कुछ नहीं होगा।

कच्चाथीवू द्वीप कहां है?
कच्चाथीवू द्वीप भारत-श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ में फैला एक आईलैंड है। यह 1.6 किलोमीटर लंबा और 300 मीटर चौड़ा है। भारतीय तट से यह आईलैंड 33 किमी दूर है। यानी रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है। वहीं श्रीलंका के जाफना से इसकी दूरी करीब 62 किमी दूर है। यानी श्रीलंका के उत्तरी सिरे पर स्थित है। इस द्वीप पर केवल एक संरचना है जिसे 20 सदी में अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया था। दरअसल वह संरचना एक चर्च है। चर्च का नाम है सेंट एंथोनी। भारत और श्रीलंका दोनों ही देशों के पादरी इस चर्च का संचालन करते हैं। साल 2023 में इस द्वीप पर करीब 2500 श्रद्धालु चर्च पहुंचे थे। बता दें कि यह द्वीप निर्जन है। इसलिए यहां निवास कर पाना किसी के लिए संभव नहीं है।

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कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास
14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था। इसी ज्वालामुखी से निकले लावा से इस द्वीप का निर्माण हुआ था। प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में इस द्वीप पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का कब्जा था। लेकिन इसकी कंट्रोल 17वीं शताब्दी में रामनाद जमींदारी के हाथ में चला गया। बता दें कि रामनाथ जमींदारी रामनाथपुर से लगभग 55 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है। ब्रिटिश शासन के दौरान कच्चाथीवू द्वीप मद्रास प्रेसिडेंसी का भाग था।

दरअसल इस द्वीप में अच्छी संख्या में मछलियां मिलती हैं। ऐसे में भारत और श्रीलंका की तरफ से पहली बार साल 1921 में इस द्वीप पर मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए कच्चाथीवू द्वीप पर दावा किया गया। जब एक सर्वे कराया गया तो कच्चाथीवू को श्रीलंका में चिन्हित किया गया, यानी श्रीलंका का भाग बताया गया। ऐसे में ब्रिटिश प्रतिनिधि मंडल के समक्ष भारत ने रामनाद साम्राज्य का जिक्र किया और उनके कच्चाथीवू द्वीप पर स्वामित्व का हवाला दिया। मामला लटका रहा, इसे कई बार चुनौती मिली और साल 1974 तक इस विवाद को सुलझाया नहीं जा सका।

क्या फैसला लिया था इंदिरा गांधी कच्चाथीवू द्वीप पर
साल 1974 में इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। इस दौरान उन्होंने कई बार श्रीलंका के साथ कच्चाथीवू द्वीप के विवाद को सुलझाने की कोशिश की। इस समझौते के तहत एक हिस्से के रूप में जिसे भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौते के रूप में जाना जाता है। इंदिरा गांधी ने कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। इंदिरा गांधी को उस वक्त ऐसा लगा कि इस द्वीप का कोई भी रणनीतिक महत्व नहीं है। ऐसे में उन्होंने इस द्वीप को श्रीलंका सरकार को दे दिया। उन्हें ऐसा लगता था कि इस द्वीप पर भारत अपने दावे को खत्म कर श्रीलंका के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर सकता है।

हालांकि इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की अनुमति दी गई। लेकिन भारतीय मछुआरों के इस द्वीप पर मछली पकड़ने को लेकर विवाद अब भी जारी है। अबतक ये मुद्दा सुलझ नहीं सका है। दरअसल श्रीलंका की तरफ से भारतीय मछुआरों को केवल इस द्वीप पर आराम करने, जाल सुखाने और बिना वीचा के द्वीप पर बने चर्च तक जाने की अनुमति दी गई। यानी भारतीय मछुआरों को इस द्वीर से संबंधित सीमित अनुमति दी गई थी। साथ ही श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। साल 1976 में एक समझौता फिर हुआ। इसके तहत किसी भी देश को दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया। बता दें कि यह द्वीप दोनों ही देशों के स्पेशल इकोनॉमिक जोन क्षेत्र के एकदम करीब आता है। ऐसे में यह विवाद बना रहा।

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साल 1983 से लेकर 2009 तक कच्चाथीवू द्वीप का विवाद हाशिये पर चला गया। इस बीच श्रीलंका में गृहयुद्ध शुरू हो गया। श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच युद्ध जारी रहा। इस दौरान भारतीय मछुआरों के लिए श्रीलंकाई क्षेत्र में जाना आम बात थी। इस कारण श्रीलंकाई मछुआरों में इसे लेकर नाराजगी थी। दरअशल भारतीय डॉलर जहाज न केवल कच्चाथीवू द्वीप में जाकर ज्यादा संख्या में मछलियां पकड़ते थे, बल्कि वे श्रीलंकाई मछुआरों की जालों और नावों को भी नुकसान पहुंचाते थे। साल 2009 में जब जाफना में गृहयुद्ध समाप्त हुआ तो श्रीलंका ने अपनी समुद्री सुरक्षा को बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद से भारतीय मछुआरों पर लगातार कार्रवाई होने लगी। बता दें कि इस द्वीप पर आज भी जब मछुआरे मछली पकड़ने जाते हैं तो श्रीलंकाई सेना द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।

मोदी सरकार में कब-कब उठा कच्चाथीवू द्वीप मुद्दा
2014: भारत सरकार ने एक जनहित याचिका के जवाब में मद्रास हाईकोर्ट को बताया था कि कच्चाथीवू द्वीप पर श्रीलंका की संप्रभुता एक बेहद साफ और स्पष्ट मामला है। भारत के मछुआरों को इस क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों में शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है।

2015: श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने चेन्नई स्थित तमिल टीवी चैनल (थांथी टीवी) के एक इंटरव्यू में यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि अगर भारतीय मछुआरे कच्चाथीवू द्वीप वाले श्रीलंकाई जलक्षेत्र में घुसपैठ करते हैं तो उन्हें गोली मारी जा सकती है।

इसके साथ ही श्रीलंका के PM रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि आप हमारे जल क्षेत्र में क्यों आ रहे हैं? आप हमारे जल में मछली क्यों पकड़ रहे हैं…? भारत की तरफ रहो… कोई दिक्कत नहीं होगी… कोई किसी को गोली नहीं मारेगा… तुम भारत की तरफ रहो, हमारे मछुआरों को श्रीलंका की तरफ रहने दो… नहीं तो आरोप मत लगाओ कि हमारे नौसैनिक मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।

2023: श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे नई दिल्ली की यात्रा पर आने वाले थे। इससे ठीक पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे श्रीलंकाई PM के सामने इस द्वीप से जुड़े दो मुद्दे उठाने की मांग की थी- श्रीलंका कच्चाथीवू द्वीप भारत को वापस करे, श्रीलंका के प्रधानमंत्री को बताए कि इस द्वीप से तमिल लोगों की जनभावना जुड़ी है।

2024: तमिलनाडु BJP चीफ के.अन्नामलाई ने कच्चाथीवू के बारे में जानकारी को लेकर RTI दायर की थी। इसमें लिखा है कि साल 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति सिरिमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा ने तमिलनाडु में लोकसभा कैंपेन को देखते हुए यह समझौता किया था। इस मुद्दे को उठाकर PM मोदी ने कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है।

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