जब गोद लिए गांवो का भूले सांसद, अब कैसे पूरा होगा PM मोदी का मिशन

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन 11 अक्टूबर जब सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की थी तो लगा था कि इस योजना से विकास की बयार आ जाएगी, गांव के लोग समृद्ध हो जाएंगे आदी-आदी लेकिन अभी तक गांवों में विकास का चूल्हा ठंडा है। इस योजना के तहत सांसदों के लिए 2016 तक एक गांव को आदर्श गांव बनाने तथा 2019 तक सभी सांसदों को अपने क्षेत्र के 3 गांवों को आदर्श ग्राम बनाने का लक्ष्य रखा

गया था। सांसदों को विकास के लिए गांव चुनने की पूरी आजादी दी गई थी। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के चलते प्रधानमंत्री ने यह शर्त रखी थी कि सांसद अपने गांव या अपने ससुराल को गोद नहीं ले पाएंगे। इसका उद्देश्य यह भी था कि इस तरह से साल 2019 तक कम से कम 2500 मॉडल गांव तैयार हो जाएंगे। मोदी ने इस योजना की तर्ज पर राज्यों से भी विधायकों के लिए ऐसी स्कीम शुरू करने के लिए कहा था। आदर्श गांव को अपना आर्थिक एजेंडा भी तय करने का अधिकार दिया गया था। पर क्या ऐसा हो पाया है। आइए, इस पर विचार करते हैं-

हम अक्सर सुनते हैं कि ग्रामीण विकास के लिए जरूरी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाए। लगभग 70 प्रतिशत भारतीय आबादी गांवों में रहती है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि सरकार को समावेशी विकास के लिए उन पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि, साथ ही यह भी समझा जाना चाहिए कि शहरी क्षेत्रों वाली कई सुविधाएं बहुत छोटे पैमाने पर

भी गांवों में उपलब्ध नहीं हैं। भारत में 6 लाख से ज्यादा गांव हैं। एक गांव की औसत जनसंख्या केवल 1,000 है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना आम तौर पर इसलिए मुश्किल है क्योंकि वहां शिक्षक और डॉक्टर जाना ही नहीं चाहते। इन गांवों में उनके अपने परिवारों के लिए पर्याप्त सुविधाएं ही नहीं हैं। स्मार्ट शहर बनाने पर जोर देने के बजाए हमें स्मार्ट गांव के विकास के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए। गांवों की स्थिरता बनी रहेगी तो इसका लाभ लंबे समय तक शहरों को भी मिलेगा।

भारत प्राचीनकाल से ही कृषि प्रधान देश है। भारतीय गांव बहुत पिछड़े हैं और किसान अत्यंत रुढि़वादी हैं। वे कृषि में नए तरीकों को लागू करने का भी बहुत विरोध करते हैं। पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों में उनका विश्वास है, हालांकि उनकी उपयोगिता समाप्त हो गई है। भारत में गांव अंधविश्वासों और तर्कहीन विचारों के आधार पर बने हुए हैं। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि गांवों में बेहद गंदगी होती है और बरसात के मौसम में हालत तो यह हो जाती है कि आने-जाने में कपड़ों का खराब होना तय ही है। पानी भरा रहने से बरसात के मौसम में मलेरिया का फैलना आम है। वर्ष के अन्य महीनों में भी गांवों की स्थिति समान रूप से दु: खद है। गांवों में गंदगी ग्रामीण क्षेत्रों पर एक धब्बा ही है।

लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। पर उनकी समृद्धि फसलों और मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर है। हालात इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि उन्हें खाद्यान्न की कमी से जूझना पड़ता है। आज के समय में खेती करने की पुरानी पद्धति न तो उपयोगी है और न ही बहुत अच्छी है। खेतों में बीज सड़ जाते हैं और अंकुरित होने में असफल रहते हैं। अन्य औजार भी कच्चे होते हैं। मवेशियों की स्थिति इतनी खराब है कि गाय-बैल पर एक नजर डालने से उन पर दया की भावना ही जाग्रत होती है। गांवों के खराब हालात को ध्यान में रखते हुए हमें तत्काल सुधार पर ध्यान

देना चाहिए। हमें शिक्षा की ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी जो गांवों में रहने वाले बच्चों को व्यावहारिक कार्यों में प्रशिक्षण दे सके, उनमें साहस, आशा और पहल की भावना को शामिल करा सके। हालांकि कुछ गांवों में शिक्षा तो पहुंच गई है और वहां रहने वाले लोग एक नई जागृति के संकेत दिखा रहे हैं। माना यह जा रहा है कि  शैक्षिक विस्तार की इस प्रक्रिया से

ग्रामीण समुदाय के भाग्य में काफी सुधार होगा और हम गांधीजी के दर्शन से भारत का निर्माण करने में सक्षम हो सकेंगे। ग्रामीण समुदाय के कल्याण के लिए सबसे मुश्किल यह है कि यह दीर्घकालीन और श्रमसाध्य कार्य है। इसलिए हमें केवल मन से ही साफ-सुथरा और स्पष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि मजबूत हिम्मत भी उठानी होगी। हमें धीरे-धीरे कदम से कदम उठाना होगा।

क्यों है दिलचस्पी का अभाव-
योजना को शुरू हुए तीन साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है लेकिन अभी तक कई जगहों पर सांसदों ने एक भी गांव गोद नहीं लिया। इसकी सबसे बड़ी वजह निकलकर जो सामने आई है वह है कि सांसद अपने पूरे चुनाव क्षेत्र को एक नजरिए से देखते है। किसी एक गांव को ज्यादा मदद देना और बाकी गांवों के लिए कुछ न करना उनके लिए अपने राजनीतिक करियर को बर्बाद करने जैसा है। इसलिए इस योजना में कम रूचि दिखाई जा रही है। बीजेपी के नामी सांसदों के गोद लिए गांवों की बात करें तो कुछ बढ़िया हालात में नहीं है। कहीं पहले से ज्यादा बदतर हालात है तो कई जैसे के तैसे ही बने हुए हैं। 2017 की रिपोर्ट बताती है कि तीन साल बीत ने बाद भी 700 से ज्यादा सांसदों ने इस योजना में कोई रूचि नहीं दिखाई।

March 2018-23
मूल सुविधाएं ही नहीं-
प्रारंभ में, गांवों के विकास के लिए मुख्य जोर कृषि, उद्योग, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और संबंधित क्षेत्रों पर दिया गया था। पर बाद में यह बात सामने आई कि गांवों का त्वरित विकास केवल तभी संभव है जब सरकारी प्रयासों के साथ साथ पर्याप्त रूप से जमीनी स्तर पर लोगों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदारी हो।  सोच बदल गई। सरकार के ही आंकड़ों की मानें तो ग्रामीण भारत में 82 फीसदी घरों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। यह बड़ी निराशाजनक स्थिति है। ग्रामीण विकास विभाग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसे-आदर्श ग्रामों के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई),ग्रामीण विकास केंद्रों के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी मिशन योजना, रोजगार देने के लिए महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा), स्व रोजगार और कौशल विकास के लिए नेशनल रूरल लिवलीहुड्स मिशन (एनआरएलएम),  गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को आवास देने के लिए इंदिरा आवास योजना, अच्छी सड़कें बनाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सामाजिक पेंशन के लिए नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम (एनएसएपी),  आदि। ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद से

March 2018-24

सरकार के विकास कार्यक्रमों में कोई प्रगति नहीं हुई है लेकिन यह माना जाना चाहिए कि उनकी गति और उपलब्धियां वाँछित स्तर की नहीं रही हैं।ग्रामीण विकास को हमेशा कृषि विकास के साथ जोड़ा गया और यह मान लिया गया कि कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि आ जाएगी। जबकि ऐसा नहीं है। सवाल यही रह जाता है-कब आएंगे गांव में रहने वालों और गांवों के अच्छे दिन? सांसद यदि अपने दायित्वों का निर्वाह करते तो वर्ष 2017 तक लगभग 1600 गांव आदर्श गांवों के रूप में विकसित हो जाते, पर ऐसा नहीं हुआ।

चार चरणों में ऐसे होने थे काम
मानव विकास- स्मार्ट अस्पताल, स्मार्ट स्कूल, दसवीं तक हर बच्चे को शिक्षित करना।
सामाजिक विकास- ऐसा ग्रामीण या लोकगीत, जिससे लोग गर्व महसूस करे सके।
आर्थिक विकास- मिट्टी हैल्थ कार्ड, गोबर बैंक, मवेशियों के लिए हॉस्टल आदि।
व्यक्तित्व विकास- लोगों में साफ-सफाई की आदत डालना, अन्य जागरूक कामों पर जोर देना।

 

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