भारत बंद: 6 राज्यों में असर; एमपी-राजस्थान में हिंसा में 7 की मौत, 30 जख्मी

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नई दिल्ली: एससी-एसटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलितों का भारत बंद कई जगहों पर हिंसक होता जा रहा है। खबर है कि राजस्थान में कई जगह कारों को आग के हवाले कर दिया गया है। तो वहीं,  मध्य प्रदेश में 5 राजस्थान में एक और उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद से भी एक शख्स की मौत की खबर है

राजस्थान के बाड़मेर और मध्य प्रदेश के भिंड में दो गुटों में हुई झड़प में करीब 30 से अधिक लोग जख्मी हुए हैं। पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में भी बंद का व्यापक असर है। पंजाब में बंद के चलते सीबीएसई की परीक्षाएं टाल दी गई हैं। उधर, केंद्र सरकार आज इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर करेगी।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी। आइए इस हंगामे की असली वजह जानते हैं।

क्या है नई गाइडलाइन…
– अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 के दुरुपयोग पर बंदिश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसला सुनाया था। इसमें कहा गया था कि एससी एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। इसके पहले आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा। यदि आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी।
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– नई गाइडलाइन के तहत सरकारी कर्मचारियों को भी रखा गया है। यदि कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का दुरूपयोग करता है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी। यदि कोई अधिकारी इस गाइडलाइन का उल्लंघन करता है तो उसे विभागीय कार्रवाई के साथ कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई का भी सामना करना होगा।वहीं, आम आदमियों के लिए गिरफ्तारी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की लिखित अनुमति के बाद ही होगी। इसके अलावा बेंच ने देश की सभी निचली अदालतों के मजिस्ट्रेट को भी गाइडलाइन अपनाने को कहा है।

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पहले क्या था-
अब तक के एससी/एसटी एक्ट में यह होता था कि यदि कोई जातिसूचक शब्द कहकर गाली-गलौच करता है तो इसमें तुरंत मामला दर्ज कर गिरफ्तारी की जा सकती थी. इन मामलों की जांच अब तक इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी ही करते थे, लेकिन नई गाइड लाइन के तहत जांच वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के तहत होगी। बता दें कि ऐसे मामलों में कोर्ट अग्रिम जमानत नहीं देती थी। नियमित जमानत केवल हाईकोर्ट के द्वारा ही दी जाती थी लेकिन अब कोर्ट इसमें सुनवाई के बाद ही फैसला लेगा।
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दलित संगठनों की क्या मांग है?
संगठनों की मांग है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन को वापस लेकर एक्ट को पहले की तरह लागू किया जाए।

केंद्र क्या दलील दे सकता है?
सूत्रों के मुताबिक, केंद्र की पिटिशन में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की दलील होगी कि इस फैसले से एससी-एसटी एक्ट के प्रावधान कमजोर होंगे। लोगों में इस कानून का खौफ घटेगा, जिसकी वजह से इसके उल्लंघन के मामले भी बढ़ेंगे।

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