Govardhan Puja 2023: जानें गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त,कथा..क्यों जलाएं तुलसी जी पर घी का दिया, क्या है महत्व?

ऐसा माना जाता है कि गवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण को 56 प्रकार का भोग लगाना शुभ होता है। ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। धन और अन्न का भंडार हमेशा भरा रहता है।

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Govardhan Puja 2023: सनातन धर्म में दिवाली के चौथे दिन गवर्धन पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन अन्नकूट की सब्‍जी बनाने की परंपरा है। अन्‍नकूट की सब्‍जी आमतौर पर उत्‍तर भारत की एक डिश है, जो साल में एक बार गोवर्धन पूजा के भोग के रूप में बनाई जाती है। ये दिन श्री कृष्ण को समर्पित है।

इस साल 14 नवंबर को यह पर्व मनाया जाएगा। इस दिन सुबह 5:54 बजे से सुबह 8:09 बजे तक शुभ मुहूर्त है। इस मुहूर्त में विधि विधान के साथ की गई पूजा का फल जातकों को प्राप्त होता है।

गवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से भगवान कृष्ण का चित्र  बनाकर उनकी पूजा की जाती है। ऐसा करने से घर में खुशहाली आती है, और सफलता के योग बनते हैं।

इस दिन तुलसी के सामने घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से माँ लक्ष्मी की कृपा बरसती है। सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

ऐसा माना जाता है कि गवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण को 56 प्रकार का भोग लगाना शुभ होता है। ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। धन और अन्न का भंडार हमेशा भरा रहता है।

गोवर्धन पूजा के अवसर पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पीपल पेड़ के सामने 7 दीपक जलाएं। ऐसा करने से श्रीहरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मनोकामनाएं भी पूरी होती है।

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का काफी ज्यादा महत्व माना जाता है। इस दिन लोग अत्यधिक भक्ति और प्रेम के साथ श्री कृष्ण की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि एक वक्त था जब लोग इंद्रदेव की पूजा करते थे लेकिन एक दिन भगवान कृष्ण ने लोगों से गोवर्धन की पूजा करने के लिए कहा और इंद्र की पूजा करने से मना कर दिया जिसके बाद लोगों ने श्री कृष्ण की बात सुन कर अन्नकूट की पूजा शुरू कर दी।

इस वजह से इंद्र देव को गुसा आ गया और उन्होंने तेज वर्षा कर दी जिससे बचने के लिए कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पहाड़ी को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। जिसके बाद कृष्ण भगवान की दिव्य शक्तियों को देख इंद्र देव का क्रोध शांत हो गया। इतना ही नहीं उन्होंने श्री कृष्ण से माफ़ी भी मांगी उसके बाद से ही गोवेर्धन पूजा की शुरुआत हुई और आजतक ये परंपरा चली आ रही है।

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