भोपाल में है दुनिया की सबसे छोटी मस्जिद, जानिए यहां की खास जगहों के बारे में

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झीलों का नाम लेते ही भोपाल की तस्वीर जहन में आती । खूबसूरत होने के साथ-साथ ऐतिहासिक भी। यदि आप भोपाल जा रहे हैं तो यहां घूमने के लिए बहुत कुछ है। हम आपको कुछ ऐसे स्पॉट्स की जानकारी दे रहे हैं। जो आपको पसंद आने के साथ आपकी जेब का भी ज्यादा नुकसान होने से बचाएगा…
ऐसा है भोपाल का इतिहास…
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल। जिसे झीलों का शहर भी कहते हैं। इस शहर को राजा भोज ने साल 1000 – 1055 के बीच बसाया था। राजा भोज, परमार वंश से ताल्लुक रखते थे। बाद में शहर की आधुनिक नींव दोस्तर मुहम्मथद खान ने अठारहवीं सदी के दौरान रखी। इसके बाद इस शहर पर नवाबों का शासन था और हमीदुल्लावह खान, भोपाल के अंतिम शासक थे। यह शहर औपचारिक रूप से अप्रैल 1949 में भारत संघ में विलय कर दिया गया था।
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दुनिया की सबसे छोटी मस्जिद…
एशिया की सबसे छोटी मस्जिद ‘ढाई सीढ़ी’ यहीं है। किला फतेहगढ़ के बुर्ज के ऊपरी हिस्से में करीब 300 साल पहले भोपाल शहर के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान ने बनवाई थी, ताकि बुर्ज पर मौजूद सिपाही पहरेदारी के दौरान ही नमाज पढ़ सकें। यहां दो बुर्ज थे, दोस्त मोहम्मद खान के कहने पर पहरेदारों ने छोटे बुर्ज पर छोटी सी मस्जिद बनाई। पहरेदार कुशल कारीगर नहीं थे, तो उन्होंने दो सीढ़ी तो सही बना दी लेकिन तीसरी सीढ़ी पर एक ईंट ही लग सकी। तब से इसका नाम ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद पड़ गया।
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रहस्य बनी है भोजपुर के मंदिर के बनने की कहानी…
भोपाल से 32 किमी दूर है भोजपुर। भोजपुर से लगती हुई पहाड़ी पर एक विशाल, अधूरा शिव मंदिर हैं। भोजपुर तथा इस शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई – 1055 ई ) द्वारा किया गया था। यहां का शिवलिंग दुनिया के विशालतम् शिवलिंगों में शुमार है। भोजपुर को प्राचीन काल में उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाता था। इस शिवलिंग की ऊंचाई करीब 22 फीट है। इस मंदिर के निर्माण के बारे में दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली जनकथा के अनुसार वनवास के समय इस शिव मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। भीम घुटनों के बल पर बैठकर इस शिवलिंग पर फूल चढाते थे। इसके साथ ही इस मंदिर के पास ही बेतवा नदी है। जहां पर कुंती द्वारा कर्ण को छोड़ने की जनकथाएं भी प्रचलित हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण मध्यभारत के परमार वंशीय राजा भोजदेव द्वारा करवाया 11वीं सदी में करवाया गया था।
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सांची
भोपाल से 46 किमी दूर है सांची। ये जगह स्तूप और बौद्ध स्मारक के लिए मशहूर हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची का मुख्य स्तूप, सम्राट अशोक ने तीसरी सदी में बनवाया था। इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट से बना ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे हैं। इसके अलावा यहां कुछ और स्तूप भी हैं जिनमें बुद्ध के शिष्य अरिहंत सारिपुत्र और महामोदग्लायन की अस्थियां हैं। बता दें कि सांची की स्थापना बौद्ध धर्म व उसकी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में मौर्य काल के महान राजा अशोक का सबसे बडा योगदान रहा।
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भीमबेटका
भोपाल से 46 किलोमीटर दूर पर दक्षिण में भीमबेटका की गुफाएं मौजूद हैं, जो चारों तरफ से विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि भीमबेटका गुफाओं का स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबंधित है। इसी कारण से इसका नाम भीमबेठका भी पड़ गया। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र बने हैं। बताया जाता है ये चित्रकारी 12,000 साल पुरानी है। जिसे रॉक शेल्टर कहते हैं। मनुष्यों के चित्रों के अलावा कई गुफाओं में विभिन्न प्राणियों जैसे कि चीता, कुत्ता, छिपकली, हाथी, भैंस इत्यादि के रंगीन चित्र भी देखने को मिलते हैं। बताया जाता है कि चित्रों में इस्तेमाल किए गए रंग गेरू, मैगनीज, एनिमल फैट, सब्जी, वुडन अंडे के मिश्रण से तैयार किए जाते थे।
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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय
भारत ही नहीं, एशियाभर में मौजूद मानव जीवन की विकास गाथा की सजीव प्रस्तुति देता है इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय। श्यामला हिल्स की खूबसूरत पहाड़ियों पर करीब 200 एकड़ क्षेत्र में फैला है। यहां आप एशिया की जनजातीय विविधताओं को करीब से देख सकते हैं। इसमें हिमालयी, तटीय, रेगिस्तानी व जनजातीय निवास के अनुसार बांट कर प्रदर्शित किया गया है। मध्य-भारत की जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान मिला है, जिनके अनूठे रहन-सहन को यहां पर देखा जा सकता है। आदिवासियों के आवासों को उनके बर्तन, रसोई, कामकाज के उपकरण अन्न भंडार तथा परिवेश को हस्तशिल्प, देवी देवताओं की मूर्तियों और स्मृति चिह्नों से सजाया गया है।
समय:सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक।
चार्ज: 12 वर्ष के ऊपर के बच्चों के लिए 15 रुपए और एडल्ट्स के लिए 30 रुपए प्रति व्यक्ति।
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चौक बाज़ार
तंग गलियों में बसा पुराने भोपाल का चौक बाजार एक ऐसा प्वॉइंट है, जहां ट्रैडिशनल ज्वैलरी, जरी-जरदोजी से तैयार सामान, कपड़े और जरूरत का हर सामान रीजनेबल प्राइज में मिलता है। 300 साल पहले भोपाल की बस्ती में बसा यह छोटा-सा चौक था, जिसके चारों और दो-तीन मंजिला हवेलियां थीं। इसी चौक पर कुछ व्यापारियों ने सबसे पहले सोने-चांदी के जेवर बेचने शुरू किए थे। जेवर की इन्हीं दुकानों से इस चौक में सुनारी बाजार की शुरुआत हुई थी। 11वीं शासक नवाब शाहजहां बेगम को पान-गुटखे और एम्ब्रॉयडरी का इतना शौक था कि उन्होंने कुछ एम्ब्रॉयडरी कारीगरों और गुटखा बनाने वालों को जामा मस्जिद के पास ही एक दुकान में बैठा दिया। यहीं से भोपाली बटुए और सोने-चांदी की जरी-जरदोजी से तैयार अन्य सामान बनाने की शुरुआत हुई।
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भोपाल का सबसे मशहूर टूरिस्ट अट्रैक्शन है अपर लेक। जो देश की सबसे पुरानी मैन मेड लेक है। 11 वीं सदी में बनी इस झील को बड़ा तालाब भी कहते हैं। राजा भोज ने इसे बनाने का आदेश दिया था और माना जाता है कि इस झील के पानी से ही राजा की स्किन की बीमारी ठीक हो गई थी। ऐसी कहानी प्रचलित है कि राजा भोज को कुष्ठ रोग था। किसी साधु ने 365 पानी के स्त्रोतों का एक तालाब बनाकर उसमें नहाने को कहा। साधु की बात मानकर राजा भोज ने अपने सैनिकों को काम पर लगा दिया। इन सैनिकों ने एक ऐसी घाटी का पता लगाया, जो बेतवा नदी के मुहाने स्थित थी। लेकिन यहां केवल 356 पानी के सोर्स थे। तब ‘कालिया’ नाम के एक गोंड ने पास की एक नदी की जानकारी दी, जिसकी कई सहायक नदियां थीं। इन सबको मिलाकर संत के द्वारा बताई गई संख्या पूरी होती थी। इस गोंड मुखिया के नाम पर इस नदी का नाम ‘कालियासोत’ रखा गया, जो आज भी भोपाल में मौजूद है।
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सैर सपाटा
बच्चे हों या फिर यंगस्टर्स, सभी के दिलों को लुभाने वाला सैर सपाटा मप्र टूरिज्म डिपार्टमेंट ने विकसित किया गया है। टूरिस्ट के लिए झीलों के शहर में यह एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट है। हर उम्र के लोग यहां एन्जॉय करने आते हैं। खाने-पीने की शानदार व्यवस्था के साथ-साथ टूरिस्ट यहां पैडल बोटिंग का आनंद भी उठा सकते हैं। बच्चों के एंटरटेंनमेंट के लिए यहां कई तरह के झूले और टॉय ट्रेन भी है।
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दुनिया का पांचवा सबसे ऊंचा तिरंगा भोपाल में है। जिसे 27 मई 2015 को फहराया गया था। वल्लभ भवन के सामने सरदार वल्लभ भाई पटेल पार्क में 90 फीट लंबा, 60 फीट चौड़ा तिरंगा 235 फीट ऊंचे पोल पर लगा है। इस तिरंगे को उतारने के लिए करीब 30 आदमी चाहिए होते हैं।
होशंगशाह ने तुड़वा दिया था राजा भोज का बांध
बाद में 14 वीं शताब्दी में राजा भोज द्वारा बनाए गए बांध को होशंगशाह ने तुड़वा दिया था। उस वक्त के बड़े तालाब के साइज का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बांध के टूटने के बाद भी तालाब को पूरा सूखने में 30 साल लगे। तालाब की सूखी जमीन पर आज बसाहट है। तालाब का एक हिस्सा सूखने के बावजूद भोपाल में कमला पार्क के पास जो मिट्टी का बांध था, वह बच गया। उसके कारण एक छोटा तालाब शेष रह गया, जिसे आज बड़ा तालाब कहते हैं। 1694 में नवाब छोटे ख़ान ने बड़े तालाब के पास बाण गंगा पर एक बांध बनवाया, जिसके कारण छोटा तालाब अस्तित्व में आया। यह दोनों तालाब आज भी भोपाल में मौजूद हैं। यदि आप यहां घूमने जा रहे हैं तो बोटिंग का मजा जरुर लें। यहां आप क्रूज, स्पीड बोट, पैडल बोट की सैर कर सकते हैं।
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ताज – उल – मस्जिद
भोपाल की ताज – उल – मस्जिद शहर के मुस्लिमों का एक प्रमुख लैंडमार्क है। इसकी गिनती एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में होती है। इसका निर्माण मुगल काल में हुआ था। बहादुर शाह ज़फर की हुकुमत में शाहजांह बेगम (1844-1901) ने इसका काम शुरू करवाया था, जो 1985 में मौलाना सैयद हशमत अली साहब पूरा कराया। शाहाजांहा बेगम की मृत्यु के बाद उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम ने इसका निर्माण कार्य जारी रखा। पैसों की कमी के कारण बाद में इसका निर्माण कुछ समय के लिए रूक गया। सन् 1971 में भोपाल के अल्लामा मोहम्मद इमरान खान नदवी अज़हरी और मौलाना सैयद हशमत अली साहब ने मस्जिद का निर्माण फिर से शुरू हुआ, जो 1985 पूरा हुआ।
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वन विहार
अपर लेक से लगा है वन विहार, जो कि एक नेशनल पार्क है। यह 445 हेक्‍टेयर एरिया में फैला हुआ है। यहां शेर, लेपर्ड, चीतल, सांबर, घड़ियाल, मगरमच्छ आदि जानवर रखे गए हैं। आप बर्ड फोटोग्राफी के शौक़ीन हैं तो ये जगह आपके लिए बेस्ट रहेगी। हरा भरा और झील से लगा होने के कारण यहां कई प्रवासी पक्षी अपना डेरा जमाते हैं। यहां आप जंगल सफारी का भी लुत्फ़ उठा सकते हैं।
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मनुआभान की टेकरी
मनुआभान की टेकरी भोपाल का फेमस रिलीजियस स्पॉट है। बताया जाता है कि इस टेकरी का नाम राजा भोज के दरबारी मनुआभान के नाम पर पड़ा था। कहा जाता है कि मनुआभान स्वांग रचकर राजा भोज का मनोरंजन करता था बाद में उसने अपना यह स्वभाव त्याग दिया और भगवत सिद्धि में लीन हो गया। यह टेकरी समुद्रतल से 1300 फीट ऊंची है, जहां से भोपाल का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है। इस टेकरी पर श्वेतांबर जैन का मशहूर मंदिर है। लगभग 150 वर्ष पूर्व नवाब कुदसिया बेगम ने यहां खुदाई करवाई थी, जिसमें तीर्थंकर महावीर की प्रतिमा प्राप्त हुई थी। बाद में यह प्रतिमा चौक के श्वेतांबर मंदिर में प्रतिष्ठित की गई। यहां जाने के लिए रोप वे की भी सुविधा है। यहां जगह सुबह 6:30 से रात 8:00 बजे तक खुली रहती है।
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