टेलीकॉम कंपनियों ने बनाया मोदी सरकार को मुर्ख, लिस्ट में रिलायंस जियों भी शामिल

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नई दिल्ली:  देश की पांच टेलीकॉम कंपनियों ने अपना रेवेन्यू 14,814 करोड़ रुपए कम दिखाया, जिससे सरकार को 2,579 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। यह बात सरकार के ऑडिटर सीएजी (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कही है। यह रिपोर्ट मंगलवार को संसद में रखी गई। रेवेन्यू कम दिखाने वाली कंपनियों में टाटा टेलीसर्विसेज, टेलीनॉर, वीडियोकॉन, क्वाड्रेंट और रिलायंस जियो शामिल हैं।

इनमें से वीडियोकॉन टेलीकॉम, टेलीनॉर और टाटा टेलीसर्विसेज ने अपना मोबाइल बिजनेस एयरटेल को बेच दिया है। क्वाड्रेंट की सेवा बंद हो चुकी है। कैग के मुताबिक कंपनियों ने रेवेन्यू 14,813.97 करोड़ रुपए कम दिखाया। इससे सरकार को लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज में 1,526.7 करोड़ रुपए कम मिले। इस पर जुर्माना जोड़ा जाए तो वह मार्च 2016 तक 1,052.13 करोड़ रुपए बनता है। कैग की यह समीक्षा 2006-07 से 2014-15 तक के लिए है। रिलायंस जियो की समीक्षा अवधि 2012-13 से 2014-15 तक है।

कंपनियां हर साल जो लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज देती हैं, वह उनके रेवेन्यू से जुड़ा होता है। एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) का लगभग 8% लाइसेंस फीस और 3% स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज देना पड़ता है। कैग के अनुसार कंपनियों ने फ्री टॉकटाइम, डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंट और डीलर को दी गई कमीशन की रकम को रेवेन्यू में से घटा दिया। यह लाइसेंस शर्तों के खिलाफ है।

रिलायंस जियो के बारे में कहा गया है कि इसने विदेशी मुद्रा में हुए लाभ (रियलाइज्ड फॉरेन एक्सचेंज गेन) को रेवेन्यू में शामिल नहीं किया। छानबीन के दौरान कंपनियों ने अपने-अपने जवाब कैग को दिए थे, लेकिन कैग उनके ज्यादातर जवाब से संतुष्ट नहीं है। कैग ने जिन मामलों में देनदारी निकाली है, उनमें ज्यादातर पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

सरकार की ये भी बताई गड़बड़ियां-

बिना संसद की मंजूरी के सीबीडीटी ने निकाल लिए 2,598 करोड़ रुपए 

बिनासंसद की मंजूरी के कंसोलिडेटेड फंड से पैसे नहीं निकाले जा सकते। पर 2016-17 में टैक्स रिफंड के लिए सीबीडीटी ने बिना मंजूरी लिए 2,598 करोड़ रुपए निकाल लिए। कालाधन सफेद करने वाले फर्जी डोनेशन से निपटने के लिए भी कोई तय सिस्टम नहीं है। इससे नुकसान हो रहा है।

2015-16 के बजट में राजस्व घाटे के आंकड़ों में अनियमितताएं पाई गईं 
कैगने 2015-16 के बजट में घाटे के आंकड़ों में अनियमितताएं पाई हैं। मनरेगा, एमपीलैड, इंदिरा आवास योजना पर हुए खर्च को ‘कैपिटल एसेट’ में खर्च बताया गया, जो गलत है। इससे राजस्व घाटे की रकम कम हो गई। सरकार को राजकोषीय मामलों में पारदर्शिता बरतनी चाहिए।

टार्गेट पूरा करने के लिए जानबूझ कर कंपनियों पर ज्यादा टैक्स डिमांड निकाला 
रेवेन्यूटार्गेट पूरा करने के लिए एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा, एचडीएफसी, कोटक महिंद्रा बैंक जैसी कंपनियों पर ज्यादा टैक्स डिमांड निकाले गए। अगले साल ब्याज के साथ उन्हें रकम रिफंड की गई, जिसका भार अंतत: राजकोष पर पड़ा।

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