दिल्ली: भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले का आज 186वें जन्मदिन है। सावित्रीबाई ने उस समय महिलाओं के विकास के बारे में सोचा, जब भारत में अंग्रेजों का राज था।आइए जानते है उनके जीवन की कुछ रोचक बातें….

1848 में खोला था पहला स्कूल:
सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के गांव नायगांव में हुआ था। वह अमीर प्रभावशाली किसान परिवार से संबंध रखती हैं। उस समय महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी, लेकिन फुले ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी शिक्षा पूरी की। 1848 में उन्होंने पहला महिला स्कूल पुणे में खोला था। इसके बाद उन्होंने कई महिला स्कूल खोले और उन्हें शिक्षित किया।

स्कूल जाते समय एक साड़ी रख लेती थीं साथ:
कहा जाता है कि जब वह स्कूल जाती थीं तो महिला शिक्षा के विरोधी लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे. महिलाओं का पढ़ना उस समय पाप माना जाता था। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंचकर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं।

9 साल की उम्र में हो गई थी शादी:
दलित परिवार से संबंध रखने वाली सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गई थी। उस समय फूले की कोई शिक्षा नहीं हुई थी। समाज में व्याप्त कुरीतियां और महिलाओं की हालत देख सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं को सम्मान दिलाने का प्रण लिया। बिना किसी आर्थिक मदद के फुले ने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोल दिए थे। उस दौर में ऐसा सोच पाना भी आसान नहीं था। लेकिन सावित्रीबाई फुले ने ऐसा करके दिखाया। उन्होंने छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया। लगभग 18 दशक बाद महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले के सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय का नाम सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय कर दिया।

13 जनवरी 1852  को उन्होंने  सभी समाज की महिलाओ के साथ मीटिग रख कर मकरसंक्राति बनाने की पेशकश की और साथ में यह बात भी रखी की सभी स्त्रियों को एक तरह का आसन दिया जाए। बिना किसी जाति या पक्ष भेदभाव रहित। तिल गुड कार्यक्रम में सैकड़ो महिलाए आई। 28 जनवरी 1863 से उन्होंने बाल विधवाओ हेतु शेल्टर खोलने प्राम्भ किये। बाल विधवाओ के रिश्तेदारों द्वारा  उन्हें  को फुसला कर उनके साथ जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाकर उन पर अनचाहे गर्भ से लाद दिया, जिसके परिणामस्वरूप शर्म से वे आत्म हत्या करने हेतु मजबूर होती या प्रसव बाद बच्चे की हत्या करवा दी जाती। ठीक उसी तरह उन्होंने विधवाओं के मुंडन का विरोध किया। नाई समाज के पुरुषो के साथ बैठक करके इस कृत्य को न करने का अनुरोध किया व आन्दोलन चलाया।