आज रात जापान चांद पर, जानिए क्या है पिनपॉइंट लैंडिंग और स्लिम लैंडर काम

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Japan Moon Mission: आज जापान का मून मिशन स्नाइपर चांद की सतह पर लैंड करने वाला है। जापान की स्पेस एजेंसी JAXA के मुताबिक स्नापर रात 9 बजे लैंडिंग करेगा। भारत के मून मिशन चंद्रयान-3 के बाद दुनिया की जापान के मून मिशन स्नाइपर पर नजरें टिकी हैं। लैंडिंग की प्रोसेस 20 मिनट पहले से शुरू होगी। जापान 1966 के बाद चांद पर लैंड करने वाला पांचवां देश होगा।

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जापान का मून मिशन स्नाइपर पिनपॉइंट लैंडिंग करेगा। स्नापर 25 दिसंबर को चांद की ऑर्बिट में पहुंचा था। तब से ये चांद की सतह की तरफ बढ़ रहा है। जापान का स्नाइपर पहले हुए मून मिशन्स में लैंडिंग के लिहाज से सबसे एडवांस्ड टेक्नोलॉजी से लैस है। जिस जगह पर इसे लैंड करना है, ये बिल्कुल उसी स्पॉट पर उतरेगा। रडार से लैस स्लिम लैंडर चंद्रमा के इक्वेटर पर लैंड करेगा।

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क्या है पिनपॉइंट लैंडिंग?
पिनपॉइंट लैंडिंग का सबसे बड़ा फायदा ये है कि एक खास जगह पर पहले से फोकस किया जाता है। इसके बारे में काफी हद तक जानकारी पहले से मौजूद होती है और इसी हिसाब से लैंडर का डिजाइन और पोस्ट लैंडिंग रोवर मूवमेंट तय किया जाता है। मकसद यही होता है कि उस खास जगह पर पानी की मौजूदगी और बाकी चीजों की सटीक जानकारी हासिल की जाए।

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स्लिम लैंडर का क्या होगा काम?
स्लिम अगर कामयाब लैंडिंग करता है तो इसका टारगेट अपने आसपास का 100 मीटर क्षेत्र होगा। इस लैंडर का वजन 200 किलोग्राम है। लंबाई 2.4 मीटर और चौड़ाई 2.7 मीटर है। इसमें बेहतरीन रडार, लेजर रेंज फाइंडर और विजन बेस्ड नेविगेशन सिस्टम हैं। ये इक्विपमेंट्स ऐक्युरेट लैंडिंग में मदद करेंगे। इसमें लगे कैमरे चंद्रमा पर मौजूद चट्टानों की बिल्कुल साफ तस्वीरें लेंगे। इसके साथ ही इसमें लूनर एक्सप्लोरेशन व्हीकल और लूनर रोबोट भी हैं। इन्हें ORA-Q नाम दिया गया है। इनका साइज बहुत छोटा है और इन्हें हथेली पर रखा जा सकता है।

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क्या है जापान के मून मिशन का उदेश्य?
जापान के मून मिशन स्नापर का टारगेट चांद के शिओली क्रेटर (गड्ढे) की जांच करना है। ये चांद के सी ऑफ नेक्टर हिस्से में है। वैज्ञानिकों को मानना है। यहां चांद पर वोल्केना फटा था। इससे हिस्से में स्नाइपर ये जांच करेगा की चांद कैसे बना था। यहां मिनरल्स की जांच कर चांद के ढांचे और उसके अंदरूनी हिस्सों के बारे में जानकारी हासिल होगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जापान के इस मिशन पर करीब 102 मिलियन डॉलर खर्च हुए हैं।

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