राष्ट्रकवि दिनकर की जन्म जयंती पर वेब संगोष्ठी आयोजित

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संवाददाता भीलवाड़ा। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्म जयंती के अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद भीलवाड़ा शाखा के तत्त्वावधान में वेब संगोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ साहित्यकार गोवर्धन पारीक की अध्यक्षता, कवि कैलाश मंडेला के मुख्य आतिथ्य और रेखा लोढ़ा ‘स्मित’, फतेह सिंह लोढ़ा, रविकांत सनाढ्य के विशिष्ट आतिथ्य में संपन्न हुआ। वेब संगोष्ठी की शुरुआत रेखा लोढ़ा ने परिषद गीत ‘भारती की लोकमंगल साधना साकार हो’ से की। इसके पश्चात भीलवाड़ा शाखा के इकाई अध्यक्ष डॉ कैलाश पारीक ने अपने स्वागत उद्बोधन में दिनकर जी के राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नाम दिया जो राष्ट्रवाद सार्वभौमिकता को अक्षुण्ण बनाता है। तत्पश्चात शशि ओझा ने दिनकर जी का जीवन परिचय प्रस्तुत किया। रविकांत सनाढ्य ने ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, अजीत सिंह कोटड़ी ने ‘हिमालय’, योगेश दाधीच ने ‘रह जाता कोई अर्थ नहीं’, सुविधा पंडित ने दिनकर जी की रचनाओं का समावेशन कर स्वयं की एक कविता, चंद्रेश टेलर ने सामाजिक समरसता पर दिनकर जी के विचार, प्रभु सुवालका ने ‘कृष्ण की चेतावनी’, फतेहसिंह लोढ़ा ने दिनकर के विचारों की वर्तमान और भविष्य में उपयोगिता, तुलसीदास ने भगवान श्री कृष्ण के कर्मवाद पर दिनकर के विचार, अक्षय राज सिंह झाला ने ‘तुम ही तो हर संत्रास हरा करते थे’, श्याम तिवारी ने दिनकर का जीवन परिचय, रेखा लोढ़ा ने ‘हे भावों के प्रखर पुंज’, जगजितेंद्र सिंह ने ‘वृथा मत लो भारत का नाम’, प्रहलाद पारीक ने बालकवि बैरागी की ‘क्या, क्या कहा कि दिनकर सो गया’, विजय पारीक ने रश्मिरथी के तृतीय सर्ग से कृष्ण की चेतावनी, रामप्रसाद माणमिया ने दिनकर की कविता, नरेंद्र वर्मा ने ‘हे दिनकर तुम छायावाद के प्रबल प्रणेता हो’, अध्यक्ष गोवर्धन पारीक ने ईश्वर की परिभाषा देते हुए कहा कि ‘जो भी निष्पाप निष्कलंक है, निडर है, वह छोटा मोटा ईश्वर है ईश्वर उड़ने वाली मछली है, ईश्वर देवदार वृक्ष है’, कार्यक्रम के अंत में संयोजक जगजितेंद्र सिंह ने आभार प्रकटीकरण किया। कार्यक्रम का संचालन नवांकुर रोहित सुकुमार ने किया।

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