महिला दिवस

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एक है आजाद पँछी सी,
एक पिंजरे मे बंद रहती है।
एक घर बाहर सब संभालती,
एक बस परिवार मे व्यस्त रह्ती है।
एक वो जो अपने ख्वाब जीती है,
एक वो जो हर रोज दिल मे ही कही सिसकती है।
एक वो भी है जो मिनी स्कर्ट मे घूमा करती है,
एक वो है जो सर से पल्ला सरके तो भी डरती है।
एक आजाद आसमां मे हर अंधकार से लड़ती है,
एक वो है जो उस पिंजरे मे हर दिन मरती है।
एक और भी है जो किसी पतंग की तरह उड़ा तो करती है,
जो आजाद भी है पर बन्धन से भी बन्धती है।
ये वो है जो द्वंद मे रहती है,
ये वो है जो उड़कर भी सहमी रहती है।
क्यूँकी!!
ये पहलू है दुनिया मे बस्ती महिलाओं का,
हर रंग मे रंगकर अपना रंग खो जाने का।
सलाम है हर नारी को,जीवन देने वाली को।
उसको भी जिसने स्वच्छंद रहना सीखा,उसको भी जिसने घर को दुनिया समझा।
हर रोज तुम उड़ना सीखो,
अपनी हद से थोड़ा आगे बढ़कर देखो।
दुनिया के बिखरे अंदाज मे,
अपनी पहचान बनाकर देखो।अपने लिये कुछ करके देखो।
सोचो मत!! आँसू मत बहाओ,
हवाओं के साथ उड़ो,
नित नये परचम लहराओ।

खुशबू नाहर

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