आपातकाल पर लिखी हुई किताबें: जो बताती है क्या था सच और झूठ ?

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25 जून 2018 मतलब आपातकाल को 43 साल। भारतीय इतिहास में राष्ट्रीय आपात को तीन बार लागू किया गया जिसमे से से 1975 का आपातकाल बहुत विशेष था क्योंकि यह आंतरिक अव्यवस्था के नाम पर लगाई गयी थी। देश का इस दौरान बहुत सी विपरीत परिस्थितियों से भी सामना हुआ। वैसे तो इस दौर को बीते बरसों हो गए है लेकिन इसकी याद ताजी होते ही एक अलग ही तरह के दृश्य दिमाग में चलने लगते हैं, यह वो लम्हे है जो आने वाले कई वर्षों तक पुराने नहीं होने वाले।

इस दौर में पत्रकारों और साहित्यकारों पर कई तरह के प्रतिबन्ध थे तो कुछ लोगों ने भूमिगत होकर अपनी कलम को चलायमान रखा। इस आलेख में हम कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों की बात करेंगे जो इस दौर की यादों और सच्चाई को सामने लाने का काम करती हैं, हालांकि हिंदी भाषा की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा में बहुत सी पुस्तक मिलेगी जहाँ पर नेताओं और पत्रकारों ने उन दिनों की अपनी यादों को पुस्तकों के माध्यम से दुनिया के सामने रखा । इस दौर के लम्हों की सच्चाई जानने के लिए कुछ प्रमुख पुस्तकों का वर्णन इस आलेख में किया जा रहा है जो हर भारतीय को पढ़नी चाहिए

द संजय स्टोरी
वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता ने संजय गाँधी की अब तक की एक मात्र जीवनी लिखने का काम किया और इस पुस्तक को उन्होंने नाम दिया “ द संजय स्टोरी “। हालांकि यह जीवनी ना तो अधिकारिक होने का और ना ही प्रमाणिक होने का दावा करती है परन्तु इस जीवनी के बहाने विनोद मेहता ने उस दौर को परिभाषित किया हैं। इस पुस्तक में संजय द्वारा की गयी ज्यादतियों के साथ – साथ मारुती कार प्रोजेक्ट और उसके घोटालों पर भी विस्तार से लिखा गया हैं । इसके साथ ही इस पुस्तक में उन्होंने वर्तमान के सरकारी कामकाज के ढीलेपन पर चुटीले अंदाज़ में वार भी किया हैं जैसे उन्होंने लिखा कि राजधानी एक्सप्रेस आपातकाल हटते ही चार घंटे देर से पहुंची, तश्करी की विदेशी शराब दस रूपये सस्ती हो गयी आदि जो उस समय के हालात सही होने की बात बता रहे थे । संजय गाँधी के दोस्त और उनके रवैये को इस किताब में बहुत अच्छे से बयां किया गया है जो आपको आपातकाल की पिक्चर याद दिलाने में आपकी बहुत मदद करेंगे ।

द ड्रामेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी ईयर्स’
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इंदिरागाँधी के शासनकाल को दर्शाते हुए एक पुस्तक लिखी जो पिछले समय बहुत चर्चित रही । इस पुस्तक में प्रणव दा ने लिखा की 1975 में देश में लगी आपातकाल की घटना एक टालने योग्य और टाली जा सकती थी । उनकी इस पुस्तक के हिसाब से इंदिरा और कांग्रेस ने इस की भारी कीमत चुकाई । इस पुस्तक में उन्होंने जय प्रकाश आन्दोलन का जिक्र किया है जिसको उन्होंने एक दिशाहीन आन्दोलन के तौर पर प्रस्तुत किया, जैसे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद वो पटना के गाँधी मैदान में इस्तीफे के लिए गरजने लगे आदि ।

इस पुस्तक में यह खुलासा किया गया है कि आपातकाल का सुझाव पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय का था पर बाद में वो शाह आयोग के सामने मुकर गए थे कि आपातकाल सही था और फैसले में उनका हाथ था । इस पुस्तक में इस तरह की कई घटनाओं का जिक्र है जो आपको आपातकाल की वास्तविकताओं के करीब ले जायेगी, इस पुस्तक में यह भी जिक्र किया गया है कि आपातकाल को किस तरह से लागू किया गया और विभिन्न नाटकीय घटनाक्रम को भी अच्छे से प्रस्तुत किया गया है । इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने आपातकाल को जायज ठहराने का भी प्रयास किया है जो आपको आपातकाल के फायदों के बारे में भी पढने का अवसर देंगी । हालांकि इस पुस्तक में 1969 से 1980 तक की घटनाओं का जिक्र है जो आपको आपातकाल के पहले और बाद के हालातों को समझने का अवसर देंगी ।

‘द ब्रदरहुड इन सैफ्रन: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एंड हिंदू रिवाइलिज्म’
1987 में श्रीधर दामले द्वारा लिखी गयी किताब’द ब्रदरहुड इन सैफ्रन: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एंड हिंदू रिवाइलिज्म’ किताब भी इस दौर की घटनाओं को जानने के लिए एक उपयुक्त पुस्तक है। हालांकि यह पुस्तक स्वयं सेवक संघ के बारे में है लेकिन इस पुस्तक में आपातकाल के दौरान सरसंघचालक बालासाहेब देवरस और अटल बिहारी वाजपेयी द्वारातय की गयी संघ की रणनीति को बहुत विस्तार से बताया गया हैं । इस पुस्तक को पढ़ने से आपको यह पता लगाने में बहुत मदद मिलेगी कि संघ का योगदान भारत निर्माण में कैसा है और उस पर पाबन्दी क्यों लगाई गयी ? इस पुस्तक में यह भी जिक्र है कि आपातकाल के दौरान संघ द्वारा इंदिरा गाँधी से माफी मांगी गयी थी जिसको संघ ने अपनी रणनीति का हिस्सा बताया गया हैं । इस पुस्तक को नए सिरे से लिखे जाने की चर्चा भी है जिसमे इस सम्बन्ध में और भी नई जानकारी मिलेगी ।

‘खाकी शॉर्टस एण्ड सैफ्रन फलेग्ज’
संघ को लेकर तपन बसु, प्रदीप दत्ता, सुमित सरकार, तनिका सरकार द्वारा लिखी गयी चर्चित किताब ‘खाकी शॉर्टस एण्ड सैफ्रन फलेग्ज’भी एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो आपको इस दौर की वो कुछ अनसुनी बातें बताने का काम कर सकती है । इस पुस्तक में संघ की आपातकाल के दौरान कार्यप्रणाली पर लोगों के सवालों का जवाब देने का कार्य किया हैं । इस पुस्तक में यह बताया गया है कि संघ इस दौरान इंदिरा की तारीफ क्यों कर रहा था और इंदिरा और संघ के सरसंघचालक के बीच में किस तरह का समझौता हुआ था । जेल में बंद संघ वालों से क्या वचनपत्र भरवाएं गए और संघ से पाबन्दी हटवाने के लिए विनोबा भावे कीमदद से संजय से मुलाकात के प्रयास भी शामिल हैं ।संघ पर इस दौर में लगी पाबन्दी को अलग तरीके से समझने के लिए यह एक उपयुक्त पुस्तक हैं ।

सत्यमेव जयते
गोपाल व्यास द्वारा लिखित एवं संजीवनी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास ‘सत्यमेव जयते’ एक बहुत महत्वपूर्ण कड़ी है आपातकाल को समझने के लिहाज से । सुब्रमण्यम स्वामी ने इस उपन्यास के बारे में यह कहा कि “उस दौरान ( आपातकाल) दो तरह से सरकार के खिलाफ लोग प्रयास कर रहे थे। भूमिगत आंदोलनकारियों का एक वर्ग छुप-छुप कर लोगों तक अपनी बातों को पहुँचाने और सरकारी नीतियों का देश पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे जानकारी देने का काम करते थे। वहीं दूसरा वर्ग सीधे तौर पर सरकार की खिलाफत करते और मीसा बंदी के रुप में जेल से ही अपने बेहतर भारत के निर्माण के लिए आंदोलन चलाए हुए था। ऐसे वक्त में इस किताब के लेखन का आगाज हुआ था।“ आपातकाल के दिनों के महत्वपूर्ण व्यक्ति सुब्रमण्यम स्वामी के द्वारा बोले गए इन शब्दों से आप समझ ही सकते है कि इस किताब का क्या महत्त्व होगा आपातकाल को जानने में ?

इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी व्यक्ति, स्थान या फिर घटना को सही नाम से नहीं लिखा गया है। इसमें नाम काल्पनिक हैं लेकिन घटनाओं का समायोजन यथार्थता के आधार पर किया गया है। इस में आपातकाल के दौरान भोगी गयी पीड़ा और उसके बाद भी सरकार के खिलाफ लोगों के प्रयास की कहानी है। इसमें दर्शाया गया है कि कैसे सरकार ने राष्ट्रहित की बात करने वालों पर अत्याचार किये और देश के लिए अपना सर्वस्व लुटाने को प्रतिबद्ध लोग अपने प्रण पर अडिग रहे। इस पुस्तक को तीन भागों में बांट कर आसानी से पढ़ा जा सकता है। इसके पहले भाग में आपातकाल के शुरु होने और उससे पहले की पृष्ठभूमि को सलिके से रखा गया है। उसके बाद देश को एकजुट करने, गलत सरकारी नीतियों  और कार्यवाहियों के खिलाफत के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों को तरजीह दी गयी है। पुस्तक के आखिरी खंड में किस तरह आपातकाल की पराकाष्ठा पर जनता का एकजुट उदघोष कि सरकार किसी की जागीर नहीं है, सत्ता उसी को मिलेगी जो देश और देशवासियों के लिए बेहतर सोच रखेगा। यह पुस्तक वास्तव में आँखे खोलने वाली घटनाओं को सामने लाती है जो देशवासियों को जानना बहुत जरुरी हैं ।

एमरजेंसी में गुप्त क्रान्ति
आपातकाल समाप्ति के उपरांत प्रकाशित हुई उस दौर के गुप्त आन्दोलनकारी पत्रकार दीनानाथ मिश्र की पुस्तक “इमरजेंसी में गुप्त क्रान्ति”भी एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक की भूमिका अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखी है जो इसको और भी खास बनाती हैं। इस पुस्तक में भूमिगत रहे पत्रकारों के प्रयास और उनकी घटनाओं को बहुत संजीदगी से शब्दों में उतारा हैं ।

इस पुस्तक में नानाजी देशमुख, जोर्ज फ़र्नान्डिस, सुब्रमण्यम स्वामी, सुरेन्द्र मोहन, महेशदत्त आदि गुप्त क्रांतिकारियों सहित बहुत से ऐसे नाम और उनसे जुड़े प्रसंग मिल जायेंगे जिन्होंने अपने स्तर पर इस क्रान्ति के लिए प्रयास किये हैं । इस पुस्तक में आपको बहुत से ऐसे नाम और उनके काम भी मिलेंगे जो सिर्फ इस क्रान्ति के दौरान ही नजर आये। इस क्रान्ति के बाद का लक्ष्य हासिल करने के बाद वो अपनी वास्तविक जीवन में चले गए या इसको इस तरह से कहा जा सकता है कि उन्होंने इस क्रान्ति के बाद राजनीति को अपना अड्डा नहीं बनाया । इस पुस्तक में बहुत सी ऐसी घटनाओं का जिक्र है जो बहुत से लोगों को पता नहीं होगी । जमीनी स्तर पर घटित घटनाओं और प्रसंगों को जानने के लिए यह एक शानदार पुस्तक हैं ।

दूसरी आजादी
जाने माने साहित्यकार नवल जायसवाल की पुस्तक ‘दूसरी आजादी ‘पुस्तक आपातकाल के दौरान जो स्थिति थी उससे संबंधित है। इस पुस्तक के हिसाब से जब देश में आपातकाल लागू हुआ तो वह विधिवत नहीं था। अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं को अकारण जेल में बंद कर दिया गया। मेरी राय में इस पुस्तक को पढ़ना इसलिए आवश्यक है कि देश में दुबारा ऐसी स्थिति पैदा न हो पाए । इस पुस्तक में ऐसी बहुत सी घटनाओं और उन परिस्थितियों का वर्णन है जो आपके सामने आपातकाल की घटनाओं को जीवंत कर देगा ।

कटरा बी आर्जू
आपातकाल की पृष्ठभूमि पर पहला उपन्यास कटरा बी आर्जू (1978) राही मासूम रज़ा ने लिखा। इस उपन्यास का लेखन आपातकाल के प्रारंभिक वर्षों में ही शुरू हुआ; किन्तु इसका समापन आपातकाल की समाप्ति के साथ ही हुआ। इस तरह से इसमें लोकतांत्रिक सरकार द्वारा लोकतंत्र के हनन की पूरी सच्चाई वर्णित है। यह उपन्यास “कटरा” मुहल्ले की कहानी है जिसने आर्जुओं के सब्जबाग पाल रखे थे। वास्तव में ये सारे देश की कहानी है जिसने 15 अगस्त 1947 की आजादी के बाद बहुत सारे सपने देखे थे, बहुत सारी आकांक्षाएं पाल रखी थी। आपातकाल ने उन सारे सपनों को रौंदकर सत्ता को निरंकुषता की ओर ढकेल दिया।

आपातकाल ने राजनीति के प्रति आमजन की आस्था का खात्मा कर दिया। इमरजेंसी के शुरूआती दिनों में आम आदमी ने इसकी खुशी मनाई और समझा कि अब उनके सारे सपने पूरे हो जायेंगे। और इमरजेंसी का सबसे ज्यादा शिकार भी यही आम जनता हुई। इस सबके बीच यह प्रश्‍न उठना स्वाभाविक है कि शुरू में आपातकाल का समर्थन करने वाली जनता क्यों इसके विरोध में हो गई। बिल्लों ने धुलाई में 10 पैसे और इस्तिरी में 20 पैसे की कमी कर दी, देश ने मजदूरी चैथाई कर दी वहीं पहलवान की चाय की दुकान में भीड़ बढ़ गई थी। उपन्यास में लेखक ने यही दिखाया कि आम समाज ने शुरूआत में इसका समर्थन किया और इसे अपने सपनों को पूरा करने की गारंटी के तौर पर देखा। लेखक ने लिखा भी है-“लोगों ने इत्मीनान का साँस लिया और सोचा कि इमरजेंसी बड़ी अच्छी चीज है। चीनी का भाव दो रुपये किलो नीचे आ गया। डालडा का भाव गिर गया। सूजी मिलने लगी। सिनेमा के टिकटों का ब्लैक बंद हो गया। ….लगभग सवा दो सौ बरस के बाद जिंदगी पहली बार खुले बाजार की सैर करने निकल आई। यह पुस्तक आपको आपातकाल समझने का एक नया नजरियाँ देगी इसलिए आपको यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए ।

अन्य महत्वपूर्ण किताबें-
आपातकाल को लेकर बाद में ढेर सारी पुस्तकें और उपन्यास लिखे गए जिन में से कुछ आपने पढ़  रखे होंगे और अगर यह पुस्तकें नहीं पढ़ी है तो अवश्य पढ़े। वैसे कुछ लोगों का कहना है कि सांप गुजर गया अब लकीर पीटने से क्या फायदा अर्तार्थ अब उन दिनों को याद करने या पढ़ने से क्या फायदा तो इस सम्बन्ध में सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि इतिहास की परिभाषा में एक बात है कि इतिहास अपने को दोहराता हैं । इन पुस्तकों को पढ़ने से अच्छे बुरे की एक समझ बनेगी और इसके अंधेरों और उजालों की पहचान होगी जो भविष्य में काम आएँगी । इस सम्बन्ध में जानकारी के लिए कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें ये भी है –

-कूमी कपूर की किताब द इमरजेंसीः अ पर्सनल हिस्ट्री
-पीएन धर की किताब ‘इंदिरा गांधीः द इमरजेंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी
-भारतीय मूल के कनाडाई रोहिंटन मिस्त्री की किताब अ फाइन बैंलेस
-नरेन्द्र मोदी की “आपातकाल में गुजरात”
-दिग्गज पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब इमरजेंसी रीटोल्ड
-मीसाबंदियों द्वारा जेल में लिखी गई हस्तलिखित पुस्तक कालचक्र
-ए सूर्यप्रकाश की पुस्तक –द इमर्जेसी :इंडियन डेमोक्रेसीज डार्केस्ट ऑवर
-यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ का उपन्यास ‘प्रजाराम’
-निर्मल वर्मा की‘रात का रिपोर्टर’
-श्रवण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित जंगल तंत्रम
-बबन प्रसाद मिश्र द्वारा लिखित मैं और मेरी पत्रकारिता,
-मनोहर पुरी की पुस्तक आपातनामा, आदि