लिखने को किस्से हज़ार…

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लिखता रहता हूँ अनवरत,
लिखने को किस्से हज़ार…
कभी पतझड़, कभी बारिश,
तो कभी बगिया में फूलों की बहार…
कभी रूठना, कभी मनाना,
अपनों का निश्छल प्यार…
लिखने को किस्से हज़ार…
कहीं सत्ता विरोधी उठते स्वर,
तो कहीं जनता को भाती सरकार…
कहीं समर्थन, कहीं समझौते,
तो कहीं हर बात होता बहिष्कार…
लिखने को किस्से हज़ार…
कभी माँ की ममता, कभी जिम्मेदारी पिता की,
तो कभी नवयौवन का प्यार…
कभी भाई – बहन के रिश्तों की सौगात,
तो कभी टूटता – जुड़ता यह संसार…
लिखने को किस्से हज़ार…
कहीं बीच चौराहे पर खड़ा बचपन,
तो कहीं नंगे बदन मेहनत करता खुद्दार…
कहीं दबती आवाजें मजदूरों की,
तो कहीं किसानों की हुँकार…
लिखने को किस्से हज़ार…
लिखने को किस्से हज़ार…

दाधीच प्रवीण शर्मा

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