साल दर साल

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साल  दर  साल  यूँ  ही  बदलते  चले  गए,
उम्र  बढ़ती  गई  , सपने   मरते  चले  गए।
क्या  कुछ  बदला  पिछले  कुछ सालों में,
हाँ  हर  साल  धोखो  के  चेहरे बदल गए।
साल  दर  साल  मेरा चेहरा बदलता चला गया,
चेहरे   पर  नई  लकीरो के  साये  बढ़ते चले गए।
मैं रोक ही ना पाया और चेहरे पर जाले बढ़ते गए।
बस  यूँ  ही  जीवन में काले साये बढ़ते चले गए।।
हर बार पुरानी चोट से शीख ली दुबारा चोट ना खाने की,
अभी पिछले घाव भरे भी नही और नए छाले पड़ गए।
अब देखे ये नया साल क्या नए रंग दिखाता है।
जख्म भरता है या पुराने जख्मो पर नमक लगाता है।।
नीरज त्यागी

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