अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस : जानें- कितना पढ़ें-लिखें हैं भारतीय?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 127 देशों में 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने से दूर है, जिनमें भारत शामिल है।

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नई दिल्ली: दुनिया से अशिक्षा को समाप्त करने के लिए हर साल 8 सिंतबर को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। ताकि लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जा सके। आज दुनियाभर में 52वां साक्षरता दिवस मनाया जा रहा है। भारत में हाल ही आकंड़ो के अनुसार, साक्षरता दर 74.04% दर्ज की गई है। वहीं बात राज्यों के अनुसार करें तो केरल में सबसे ज्यादा साक्षरता प्रतिशत 93.91 फीसदी और बिहार में सबसे कम 63.82 फीसदी बच्चे पढ़े लिखे हैं।

लोगों तक शिक्षा का पहुंचे इसके लिए विभिन्न सरकारी और गैरसरकारी संगठन कार्य कर रहे हैं। साल 1966 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) ने शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने तथा विश्व भर के लोगों का इस तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए यह पहल शुरू की। जिसमें काफी सफलता भी हाथ लगी।

ईरान से हुई इसकी शुरूआत-
अशिक्षा को खत्म करने के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाने का विचार पहली बार ईरान के तेहरान में शिक्षा के मंत्रियों के विश्व सम्मेलन के दौरान साल 1965 में 8 से 19 सितंबर को चर्चा की गई थी. 26 अक्टूबर, 1966 को यूनेस्को ने 14वें जरनल कॉन्फ्रेंस में घोषणा करते हुए कहा था कि हर साल 8 सितंबर को विश्वभर में ये दिवस मनाया जाएगा।

इस साल की थीम-
इस साल 52वां अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाएगा जिसकी थीम ‘साक्षरता और कौशल विकास’ है। 1950 के बाद से साक्षरता के लिए कौशल एक अहम फैक्टर बन गया है, इसलिए इस साल की थीम में कौशल विकास को भी शामिल किया गया है।

क्यों जरूरी जागरूकता-
मानव विकास और समाज के लिए उनके अधिकारों को जानने और साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए साक्षर होना जरूरी है। केवल लिखना-पढ़ना शिक्षक बनना ही जरूरी नहीं बल्कि लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास की नींव मजबूत करना भी जरूरी है और असल मायनों में इन्ही मूल्यों को समझने वाला ही साक्षर है।

भारत में कम साक्षरता दर के कारण:
साल 2011 तक के आंकड़ों के अनुसार भारत में 74 फीसदी नागरिक साक्षर हैं, जबकि ब्रिटिश शासन के दौरान सिर्फ 12 फीसदी लोग ही साक्षर थे। विद्यालयों की कमी,  जातिवाद, गरीबी, लड़कियों के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ होने का डर,  जागरूकता की कमी।  बता दें, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 127 देशों में 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने से दूर है, जिनमें भारत शामिल है।

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