इस पाकिस्तानी खिलाड़ी ने दिया क्रिकेट को रिवर्स स्विंग का आईडिया, जो बना जीत का सबसे बड़ा फॉर्मूला

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खेल डेस्क: ऑस्ट्रेलियाई टीम इन दिनों बॉल टैम्परिंग के जाल में उलझी है। कप्तान स्टीव स्मिथ सहित कई खिलाड़ियों का करिअर खतरे में है। कंगारुओं ने टैम्परिंग का जोखिम इसलिए उठाया था ताकि गेंद रिवर्स स्विंग हो और विकेट गिरे। आज आपको यहां समझाते हैं कि स्विंग क्या है और कितना महत्वपूर्ण है क्रिकेट में।

इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरुआत 1877 में हुई थी। तब से ही यह फैक्ट है कि टेस्ट क्रिकेट में जीत तभी मिलती है जब आप प्रतिद्वंद्वी के 20 विकेट लेने में सक्षम हों। शुरुआत के 100 साल टीमें बाउंसर, स्विंग, सीम और स्पिनर के जरिए ये 20 विकेट लेने की कोशिश करती रहीं। फिर 1970 के दशक में एंट्री हुई रिवर्स स्विंग की। पाकिस्तान से विश्व क्रिकेट में पहुंचा यह आर्ट अब जीत का सबसे बड़ा फॉर्मूला बन गया है।

कौन लाया किक्रेट में स्विंग का चलन-
सबसे पहले 1970 के दशक में पाकिस्तान के पेसर सरफराज नवाज ने रिवर्स स्विंग फेंकी 
-ऑस्ट्रेलिया के डेनिस लिली ने भी इस आर्ट को कुछ हद तक सीखा। इमरान खान से यह कला वसीम अकरम और वकार यूनुस तक पहुंची। 90 के दशक में इन दोनों गेंदबाजों ने रिवर्स स्विंग से पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया।
-पाक खिलाड़ी काउंटी भी खेलते थे। उन्होंने अपना हुनर इंग्लैंड के युवा तेज गेंदबाजों को भी सिखाया। फिर एक जमाने में रिवर्स स्विंग का मुखर आलोचक इंग्लैंड इस कला का अग्रणी देश बन गया। भारतीयों में प्रभाकर ने सबसे पहले सीखा।

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चलिए आपको समझाते हैं क्या है स्विंग का साइंस- 
बाउंड्री लेयर थ्योरी: जब भी किसी गोल ऑब्जेक्ट को फेंकते हैं तो उसकी बाहरी सतह पर हवा की एक बनती है। सतह के स्मूथनेस के लिहाज से यह परत दो तरह की हो सकती है। पहला लैमिनर बाउंड्री लेयर और दूसरा टर्बुलेंट लेयर। ऑब्जेक्ट फेंके जाने की स्पीड और उसकी सतह के लिहाज से बने बाउंड्री लेयर के आधार पर तय होता है कि उसका रास्ता सीधा रहेगा या इसमें किसी दिशा में स्विंग यानी सीधे रास्ते से बदलाव आएगा।

परंपरागत स्विंग
गेंद जब नई होती है तो इसकी सतह सीम के दोनों ओर एक जैसी होती है। इसलिए फील्डिंग करने वाली टीम के खिलाड़ी गेंद के एक भाग को ज्यादा शाइनी बनाने की कोशिश करते हैं। अब जब गेंदबाज गेंद फेंकता है तो शाइनी साइड की ओर लैमिनर बाउंड्री लेयर बनता है और दूसरी ओर टर्बुलेंट बाउंड्री लेयर बनता है। टर्बुलेंट लेयर जिधर बनता है उधर, हवा का प्रतिरोध ज्यादा होता है और गेंद उस दिशा में स्विंग कर जाती है।

और रिवर्स स्विंग
गेंद जब पुरानी हो जाती है तो इसका दोनों हिस्सा रफ हो जाता है। इसमें एक हिस्से को और भी रफ किया जाता है।
अब जब गेंद फेंकी जाती है तो सीम के दोनों ओर टर्बुलेंट बाउंड्री लेयर का निर्माण ही होता है। लेकिन, जो हिस्सा ज्यादा रफ होता है उधर ज्यादा टर्बुलेंट लेयर बनता है। लेयर जितना ज्यादा टर्बुलेंट बनता है वह उतनी ही ज्यादा तेजी से गेंद की सतह से हटता भी है। ऐसा होने पर गेंद नॉर्मल स्विंग की उल्टी दिशा में स्विंग होती है।

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