चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला रही कांग्रेस, इन जजों को भी छोड़ना पड़ा था पद

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद अब कांग्रेस भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू दी। इसके लिए कांग्रेस ने ड्राफ्ट भी बांटने शुरू कर दिए है। मिली जानकारी के अनुसार, कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने की कवायद शुरू हो चुकी है। उधर, समाजवादी पार्टी ने भी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता को बचाए रखने के नाम पर कांग्रेस के इस कदम के समर्थन का ऐलान किया है। समाजवादी पार्टी ही नई अन्य पार्टियों के नेताओं ने कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही है।

नियम के मुताबिक सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। सूत्रों ने बताया कि विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने राज्यसभा में विपक्ष के नता गुलाम नबी आजाद से आज मुलाकात करके मुद्दे पर चर्चा की। हालांकि आजाद के कार्यालय से इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी कि ऐसी कोई बैठक वहां हुई थी।

आपको बता दें कि 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चीफ जस्टिस की कार्यप्रणाली और बेंचों को केस अलॉट करते समय कथित तौर पर हो रहे भेदभाव पर सवाल उठाए थे। जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, एमबी लोकुल और जस्टिस कुरियन जोसफ ने आरोप लगाया था कि चीफ जस्टिस वरिष्ठता को दरकिनार कर जूनियरों जजों को अहम केस सौंप रहे हैं।

जजों पर इस तरह के आरोप लगने के बाद महाभियोग चलाने के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं. कुछ ऐसे ही मामलों पर नजर डालते हैं-

सौमित्र सेन
कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन पर महाभियोग चलाने की तैयारी थी। तब हालात ऐसे बन पड़े थे कि वो पहले ऐसे जज होते जिन्हें महाभियोग चलाकर बर्खास्त किया जाता। इस बदनामी से बचने के लिए उन्होंने 2011 में इस्तीफा दे दिया। राज्य सभा में उनके खिलाफ महाभियोग लाया गया था। सेन के खिलाफ उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की अगुवाई में गठित एक समिति ने जांच की थी। जांच में सही पाए जाने वाले एक मामले में सेन पर 1983 में 33.23 लाख रुपयों की हेराफेरी करने का आरोप था। ये पैसे उन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट की तरफ से एक मामले में रिसीवर बनाए जाने के बाद दिए गए थे। सेन उस वक्त वकील थे।

नागार्जुन रेड्डी
साल 2016 में आंध्र और तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागार्जुन रेड्डी को लेकर एक विवाद पैदा हो गया जब एक दलित न्यायाधीश को प्रताड़ित करने के लिये अपने पद का दुरुपयोग करने को लेकर राज्यसभा के 61 सदस्यों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिये एक याचिका दी थी। बाद में राज्यभा के 54 सदस्यों में से उन 9 ने अपना हस्ताक्षर वापस ले लिया था, जिन्होंने न्यायमूर्ति रेड्डी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव दिया था।

पीडी दिनाकरण
सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरण के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए राज्य सभा के अध्यक्ष ने एक पैनल गठित किया था। महाभियोग की कार्रवाई शुरू होने से पहले ही जुलाई 2011 में इन्होंने इस्तीफा दे दिया। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार, जमीन हड़पने, न्यायिक अधिकारों का बेजा इस्तेमाल करने सहित 16 आरोप लगे थे।

जेबी पर्दीवाला
2015 में राज्य सभा के 58 सांसदों ने गुजरात हाई कोर्ट के जज जेबी पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया था। उनपर आरक्षण के मामले में आपत्तिजनक बयान देने का आरोप था। सांसदों ने अपनी याचिका में कहा था कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ एक केस की सुनवाई करते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर जो बयान दिया था वह आपत्तिजनक था।

वी रामास्वामी
महाभियोग का पहला ऐसा मामला जस्टिस रामास्वामी का है। 1993 में उनके खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन कांग्रेस के बहिष्कार के कारण यह प्रस्ताव गिर गया था। सदन में यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत जुटाने में नाकाम रही थी। रामास्वामी पर आरोप था कि 1990 में पंजाब और हरियाणा के जज रहने के दौरान उन्होंने अपने आधिकारिक निवास पर काफी फालतू खर्च किया था। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पास किया था।

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