माँ के नाम एक पत्र

0
1921

नन्ही सी आँखे और मुडी हुई उंगलियां थी मेरी,
ये बात उस समय की है जब मैं इस पूरे जहां से अनजानी थी।

पहली धड़कन जो धड़की तेरे अंदर थी मेरी,
पहली लात जब धीरे से मैंने तेरी कोख में मारी।

अनजानी थी इस पूरी​ दुनिया से में,
तुने ही मुझे इनसे परिचित कराया।

मुझे बुराई से लड़ने की कला सिखाई,
सच्चाई पर चलने का रास्ता दिखाया।

खुद को भूख लगने पर भी पहले कभी नहीं खाती हो,
सबको खिलाने के बाद ही तुम खाती हो।

थोड़ी देर के लिए भी दूर ना हो जाऊ इतना घबराती थी,
हमेशा मुझे अपने सिने से लगाए रखती थी।

मेरे सपनों​ को पूरा करते – करते,
तेरे खुद के सपने कहीं खो गए थे।

मेरी हर इच्छा पूरी करने में,
तेरा पूरा दिन निकल जाया करता था।

ना जानें कितनी बार तु मेरे कारण रोई हैं।
ना जानें कितनी बार तुने अपनी कोमल पलकें भिगोई हैं।

किसी को याद हो या न हो तुझे मेरे खाने का हमेशा याद रहता है।
माँ.. एक तु ही तो है जो मेरे कारण पूरी दुनिया से लड जाती हैं।

किसी की भी सुनतीं ना थी, सिर्फ अपनी चलाया करती थी।
फिजूल हैं तुमसे ये पुछना कि आज मैं कैसी दिख रही हुं,

माँ… तुझे तो हमेशा मैं तेरी परी ही लगती हुं।
बचपन में मेरी एक नींद के लिए, पुरी – पुरी रात एक करवट में गुजारा करती थी।

माँ… एक तु ही तो है जो मुझे सबसे ज्यादा चाहतीं थीं।
सुनी है मैंने रातों को तेरे चुपके से रोने की आवाजें,

दुख मुझे भी था सिसकियां मैंने भी ली है।
मुझे भर पेट खिलाने के लिए, तू खुद भूखी सो जाया करती थी।

जरूरत तुझे थी सबसे ज्यादा दुध की, पर तु मुझे पिलाया करती थी।
खुद के पास नए कपड़े न हो, हमेशा हमें दिलाती थी।

खुद पुराने कपड़ों में, पुरा साल गुजारा करती थी।
माँ… एक तु ही तो है न जो मुझे सबसे ज्यादा चाहतीं थीं।

और नहीं घिसने देना चाहती तेरे इन कोमल हाथों को,
पुरे करना चाहती हुं ख्वाबों में देखें तेरे हर ख्वाबों को।

कभी ऐसा दिन ना आए कि मेरी वजह से तेरी आंखों में कभी आंसू हो,
मेरी विदाई भी हो तो तेरे होठों पर मुस्कुराहट हो।

तेरी हर खुशी को पूरा करू, ईश्वर मुझे ऐसी शक्ति दे।.
तुझे मुझसे कभी दुर न जाने दें।

मांँ…ओ.. माँ…एक तु ही तो है न !
जो मुझे सबसे ज्यादा चाहतीं थी।

मेरी कलम से के तहत अन्य रचनाकारों की रचना पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें 
मेरी कलम से : कुछ खास आपके लिए