माता-पिता के लिए प्यार की कुर्बानी देती हैं बेटियां: सुप्रीम कोर्ट

इस देश में यह आम बात है कि बेटियां अपने माता-पिता की इच्छा को स्वीकार करने के लिए अपने प्यार का बलिदान कर देती हैं, भले ही ऐसा वह अनिच्छा से करती हों।

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भारत में बेटियां अपने माता- पिता के सम्मान और उनके प्रेम के खातिर अपने प्यार का बलिदान कर देती है और ये चलन भारत में आम है।  दरअसल कोर्ट ने एक व्यक्ति की उम्रकैद की सजा को खारिज करते हुए अपने फैसले में यह टिप्पणी की। व्यक्ति ने एक महिला से गुपचुप शादी की और इसके तुरंत बाद दोनों ने खुदकुशी कर ली, जिसमें व्यक्ति जीवित बच गया, जबकि 23 वर्षीय पीडि़ता को बचाया नहीं जा सका।

सुनाई उम्रकैद की सजा
बता दें कि मामला राजस्थान के जयपुर का है। 1995 में एक व्यक्ति ने चोरी-छुपे अपनी प्रेमिका से शादी की थी। इसके तुरंत बाद दोनों ने खुदकुशी कर ली थी। इसमें व्यक्ति तो जिंदा बच गया, लेकिन 23 वर्षीय पत्नी को नहीं बचा पाया। इस घटना के बाद पुलिस ने व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उसके खिलाफ प्रेमिका की हत्या का मामला दर्ज कर लिया। ट्रायल कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई और इस फैसले पर राजस्थान हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी।

जाति थी शादी में रुकावट

जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की एक पीठ ने कहा कि इस देश में यह आम बात है कि बेटियां अपने माता-पिता की इच्छा को स्वीकार करने के लिए अपने प्यार का बलिदान कर देती हैं, भले ही ऐसा वह अनिच्छा से करती हों। कोर्ट ने कहा कि पीडि़त और आरोपी एक-दूसरे से प्यार करते थे और लड़की के पिता ने अदालत के समक्ष यह गवाही दी थी कि जाति अलग होने के कारण उनके परिवार ने इस शादी के लिए रजामंदी नहीं दी थी।

निचली अदालत ने सुनाई थी उम्रकैद

व्यक्ति को कथित तौर पर उसकी प्रेमिका की हत्या करने का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी और इस फैसले की राजस्थान हाई कोर्ट ने भी पुष्टि की थी। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि परिकल्पना के आधार पर आपराधिक मामलों के फैसले नहीं किए जा सकते और उसने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि पर्याप्त संदेह के बावजूद अभियोजन पक्ष उसका दोष सिद्ध करने में सक्षम नहीं रहा है।

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