मुरझाया कमल, लहराया हाथ, क्यों खतरे में आया ‘मोदी ब्रांड’

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नई दिल्ली: विधानसभा चुनावों का नतीजा आ चुका है। मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान जो बीजेपी के मजबूत गढ़ माने जा रहे थे वहां करारी हार मिलना बीजेपी और मोदी चेहरे पर कई सवाल खड़े करते हैं। 

हर पांच साल में राजस्थान में सत्ता परिवर्तन होता है लेकिन 15-15 साल की सत्ता छिन जाना क्या मोदी ब्रांड की छवि का फीका पड़ जाना माना जाए या फिर जनता की नराजगी है जो राज्य सरकारों पर फूटी हैं न कि मोदी पर। ऐसे कई सवाल है जो 11 दिसंबर को आए चुनावी नतीजों के बाद उठने लगे हैं।

पिछले कुछ साल से पीएम मोदी का नाम और उनका चेहरा जीत की गारंटी माना जाता था। लेकिन उपचुनावों और इन विधानसभा चुनाव में ये जादू फीका इस कदर पड़ा कि 2019 की जीत बीजेपी के लिए कितनी कठिन होगी इसका उदाहरण पांच राज्यों में हार मिलना है। वहीं 2019 के चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी को मिली ये जीत कांग्रेस मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत बड़ी है। इस जीत के साथ राहुल गांधी फिर सिंकदर की भूमिका में आ गए हैं।

जीत ने बदली पप्पू वाली छवि-
तीन राज्यों की टक्कर वाली जीत ने वाकिय राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि बदल दी है या अब भी बरकरार है। ये जानना जरूरी है। कांग्रेस को बीजेपी के गढ़ में  इतनी बड़ी जीत कैसे मिली। क्या जनता परिवर्तन चाहती थी या राहुल गांधी ने आम मुद्दों किसान, बेरोजगारी, नोटबंदी को भुना-भुना कर जनता को ये अहसास करवाया की उनके साथ गलत हुआ है।जीत के बात बीती रात  राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया कि हमने आज बीजेपी को हराया है और 2019 में फिर हराएंगे। टीम मोदी को ठीक 2019 से पहले चित कर देना। पहले गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांटे की टक्कर, फिर कर्नाटक में सरकार बनाना और अब तीन राज्यों में सीधी बीजेपी को पटखनी देने से ये तय हो गया है कि राहुल गांधी विपक्ष के नेता नंबर वन हैं और ये बदलाव देखते हुए कहा जा सकता है कि राहुल गांधी उर्फ पप्पू परीक्षा में पास हो गया।

‘मोदी से बैर नहीं’ फिर क्या चाहती जनता
विधानसभा चुनावों में हुई जनता चर्चा और सर्वों में निकलकर आया है कि जनता पीएम मोदी को ही 2019 का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहती हैं न कि कांग्रेस के किसी अन्य नेता या फिर राहुल गांधी को लेकिन जिस तरह से राज्यों में हुए चुनावों में बीजेपी को जनता ने सिरे से नकार दिया है उसका क्या कारण है। क्या जनता राज्य सरकारों से खुश नहीं है या फिर वह बदलाव का कोई दूसरा चेहरा तलाश रही है। ऐसे कई सवाल है जो बीजेपी की हार के बार उठने स्वाभाविक हैं।

बीजेपी का मोदी ब्रांड खतरे में-
बस, कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपनी साख बचाने के लिए ये सुनिश्चित करना होगा कि वह मोदी ब्रांड की चमक फीकी न पड़ने दे। नहीं तो फिर से भाजपा…और फिर कमल खिलेगा जैसे जुमले मात्र जुमले बनकर रह जाएंगे। 2019 की परीक्षा से पहले अब भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर अपनी रणनीति पर विचार करने की जरूरत है।

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