रोहिंग्या मुसलमान: दक्षिण एशिया में बढ़ता जा रहा मानवीय संकट

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आज रोहिंग्या मुसलमानों का संकट सबकी जुबान पर है। भारत, पाकिस्तान, ईरान आदि देशों के अखबार इनके विस्थापन की खबरों से भरे पड़े हैं। रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से भागकर बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यू.एन.एच.सी.आर. के अनुसार पिछले दो सप्ताह में ही म्यांमार से करीब 2 लाख 70 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों का पलायन हुआ है। इनकी संख्या जल्द ही 3 लाख तक पहुंच सकती है। म्यांमार सरकार इनकी आबादी के अधिकृत आंकड़े तो जारी नहीं करती है लेकिन माना जाता है कि ये संख्या इनकी कुल आबादी की एक तिहाई है। गत 25 अगस्त से फैली हिंसा में दो हफ्तों के भीतर ही कम से कम 1,000 लोग मारे जा चुके हैं। पर म्यांमार सरकार का कहना है कि 421 लोग मारे गए हैं। दुखद तो यह है कि मारे गए लोगों का शव लेने भी कोई नहीं आ रहा है। जहां तक भारत का सवाल है तो भारत में इस समय 40 से 50 हजार रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं। दिल्ली के अलावा ये रोहिंग्या जम्मू, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा आदि राज्यों में निवास कर रहे हैं। जम्मू में इनकी आबादी 7 से 8 हजार के बीच है। आइए, विचार करते हैं- ये रोहिंग्या मुसलमान हैं कौन? कहां से आए हैं और इनकी मौलिक समस्या क्या है?

रोहिंग्या मुसलमान बर्मा के अल्पसंख्यक हैं और उनकी समस्या एक मानवीय संकट में तब्दील होती जा रही है। म्यांमार में रोहिंग्या विद्रोहियों और सेना के बीच टकराव थमने का नाम नहीं ले रहा है। सबसे ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान के राखिन प्रांत में पाए जाते हैं। रोहिंग्या मुसलमान खुद को अरब और फारसी व्यापारियों का वंशज मानते हैं। रोहिंग्या मुसलमान रोहिंग्या भाषा में बात करते हैं जो बांग्लादेश की बांग्ला से काफी मिलती-जुलती है।

म्यांमार में 11 लाख रोहिंग्या मुस्लिम

म्यांमार में लगभग 11 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों का निवास है। इनके बारे में धारणा है कि ये मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। आरोप है कि इन्होंने इन देशों के मूल निवासियों के आवास और आजीविका के संसाधनों पर जबरन कब्जा कर लिया है जिसके चलते सरकार को इन्हें देश से बाहर निकालने को मजबूर होना पड़ा है। दरअसल, सुरक्षा एजेंसियों ने इनके आतंकी समूहों से संपर्क होने की आशंका जताई हुई है।

खतरा क्यों बने हैं रोहिंग्या मुसलमान

देखा जाए तो म्यामांर में रोहिंग्याओं के प्रति द्वेष कोई नई बात नहीं है। इन्हें म्यांमार के नागरिक के रूप में नहीं देखा जाता है लेकिन इसे पूर्वाग्रह जरूर माना जा सकता है जो लंबे समय से चला आ रहा है। राष्ट्रवादी समूह इस वजह से इन्हें खतरा मानते हैं कि मुस्लिम पुरुषों की चार पत्नियां और कई बच्चे हो सकते हैं। म्यांमार के राखिन शहर में कई लोगों का मानना है कि एक दिन वो उनके जमीन को हथिया लेंगे क्योंकि उनकी आबादी का बढऩा जारी है। राखिन में हिंसा जारी है। म्यांमार सरकार कथित चरमपंथी हमलों के लिए -अतिवादी बंगाली चरमपंथी- शब्द की जगह -अतिवादी आरसा चरमपंथी- शब्द की इस्तेमाल कर रही है।

भारत में भी विरोध

इनका म्यांमार से पलायन भारत के लिए भी संकट का सबब बना है। पिछले पांच साल में भारत में रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। ये लोग म्यांमार से भारत-बांग्लादेश सीमा, भारत-म्यांमार सीमा या फिर बंगाल की खाड़ी पार करके अवैध तरीके से भारत आए हैं। अब ये शरणार्थी भारत छोडऩे को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि उन्हें भारत में ही मार दिया जाए, लेकिन अत्याचार सहने के लिए वापस म्यांमार न भेजा जाए। उधर, केंद्र और राज्य सरकारें जम्मू-कश्मीर में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करके उन्हें अपने देश वापस भेजने के तरीके तलाश रही हैं। उन्हें उनके देश भेजने की मांग की जा रही है। रोहिंग्या मुसलमान ज्यादातर जम्मू और साम्बा जिलों में रह रहे हैं। इंडिक कलेक्टिव नामक समूह ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर पर रोहिंग्या मुसलमानों को वापस उनके देश भेजने की मांग की हुई है। आरएसएस के पूर्व प्रचारक केएन गोविंदाचार्य ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं लिहाजा इन सभी को जल्द उनके देश वापस भेज दिया जाना चाहिए। अपनी याचिका में गोविन्दाचार्य ने तर्क दिया है कि रोहिंग्या मुसलमानों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था और संसाधन पर बोझ पड़ेगा। उधर, जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार इन रोहिंग्या मुस्लिमों को वैध नागरिक बनाने के उपाय कर रही है। जबकि म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने कहा है कि उनका देश रखाइन प्रांत में बसे सभी लोगों को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में चरमपंथी अपने हित साधने के लिए गलत खबरों का प्रचार कर रहे हैं। कहना न होगा कि इस संकट के चलते इनका बांग्लादेश की तरफ पलायन बढ़ा है। बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में लगातार नए शिविर बन रहे हैं। शिविर में रह रहे एक शरणार्थियों से जब पूछा गया कि वे कौन हैं? तो उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। एक शरणार्थी का कहना था कि वह किसी फुटबॉल की तरह हो गए हैं जिन्हें हर देश दूसरी तरफ फेंक रहा है। एक बच्चे ने कहा कि

हम अपने वजूद की तलाश में दरबदर भटक रहे हैं। एक महिला कहती हैं कि एक समय हम बहुत गर्व से कहते थे कि हम रोहिंग्या मुसलमान हैं लेकिन अब हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। ऐसी हालत में करें तो क्या करें।

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