अभी तो निजता का अधिकार मिला था, फिर क्यों छिड़ी ‘वैवाहिक बलात्कार’ पर बहस

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नई दिल्ली: अभी हाल ही में तीन तलाक का मुद्दा शांत हुआ ही था कि अब मैरिटल रेप (वैवाहिक बलात्कार) को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया। इसकी वजह है दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार का शादीशुदा जिंदगी में रेप को लेकर अपना तर्क देना। केंद्र सरकार ने कहा शादीशुदा औरतें, पति के जोर-जबरदस्ती से सेक्स करने को बलात्कार नहीं कह सकतीं।ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है। पतियों को सताने के लिए ये एक आसान तरीका निकाला जा सकता है।

केंद्र सरकार ने इस मामले में आगे तर्क देते हुए कहा कि बहुत सारे पश्चिमी देशों में मैरिटल रेप अपराध है लेकिन जरूरी नहीं भारत में भी वहीं कानून अपनाया जाए। आगे सरकार ने कहा अगर मैरिटल रेप को अपराध घोषित करना है तो पहले देश की साक्षरता, महिलाओं की आर्थिक स्थिति, गरीबी आदि के बारें में सोचना होगा। तभी कोई हल निकलना संभव है।

इस मामले के साथ संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड की एक रिपोर्ट की भी चर्चा होने लगी है। जिसमें एक सर्वे के आंकड़ो को जुटाते हुए बताया है कि 9200 पुरुषों में से एक तिहाई ने माना है उन्होंने अपनी पत्नियों के साथ कभी न कभी उनकी मर्जी के खिलाफ संभोग किया है। इनमें से 60 फीसदी ऐसे थे जिन्होंने पत्नी पर अपना हक जमाने के लिए किसी न किसी तरह की हिंसा का सहारा लिया है।

क्या है वैवाहिक बलात्कार-

भारतीय दंड विधान में रेप की परिभाषा तो लिखी गई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप का उल्लेख नहीं किया गया। धारा 376 रेप के लिए सजा का प्रावधान करता है और इस में पत्नी के रेप किए जाने पर पति की सजा तब तय की होगी जब पत्नी की उम्र 12 साल से कम हो। कम उम्र में अगर पति संबंध बनाने के जोर जबरदस्ती करता है तो ऐसे में पति को 2 साल की जेल,जुर्माना या फिर दोनों सजा मिल सकती है। इसके साथ ही 375 और 376 के प्रावधानों से ये समझा जा सकता है कि सेक्स करने के लिए सहमति देने की उम्र तो 16 है लेकिन 12 साल से बड़ी उम्र की पत्नी की सहमति या असहमति का कोई मूल्य नहीं है।

  • आपको बता दें हिंदु मैरिज एक्ट के तहत पति और पत्नी के लिए एक दूसरे के प्रति कुछ जिम्मेदारियां तय की गई जिसमें सेक्स करने का भी अधिकार दिया गया है। एक्ट में ये भी लिखा गया है कि दोनों में से किसी एक की इच्छा के विरोध किए गए सेक्स को लेकर तलाक भी मांगा जा सकता है।
  • इसके साथ ही अगर घरेलू हिंसा कानून की बात करें तो ये महिलाओं  के घर में हुए बलात्कार का संरक्षण देता है। अब दोनों कानून को देखते हुए फैसला करना लाजिम मुश्किल है।
  • हमारे कानून में 6 परिस्थितियों में अगर यौन संबंध बनते है तभी उसे बलात्कार कहा जाएगा।

कई देशों में बने मैरियट रेप को लेकर कानून-

दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और वेल्स, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में शादीशुदा जीवन में जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार को एक अपराध की नजर से देखा गया है। यूरोपीय यूनियन का मानवाधिकार आयोग भी वैवाहिक जीवन में महिला की रजामंदी के बगैर सेक्स को अपराध मानता है।

अप्रैल 2015 में संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के भेदभाव के लिए भारत को ये सुझाव दिया था कि वे मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाएं। जब लॉ कमीशन ऑफ इंडिया रेप के कानूनों पर रिपोर्ट बना रहा था, उसने रेप के कानूनों में कोई संशोधन नहीं किया। फिर साल 2013 को निर्भया केस मामले में गठित हुई जस्टिस वर्मा कमिटी ने अपने सुझाव में मैरिटल रेप को अपराध का दर्जा देने का सुझाव दिया था। फिलहाल अब ये मामला वकील करुणा नंदी की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पास ये संशोधन करने के लिए पेटीशन भेजी गई।

इस पूरी जंग का फैसला तो निकलेगा लेकिन एक बाद तय है कि कानून ने पत्नियों को ‘ना’ कहने का अधिकार दिया और न ही ‘हां’ कहने का। तो फिर आखिर कानून ने शादीशुदा महिला को दिया क्या है? हमारे सामने कई केस है जिसमें पत्नी शादी के 2 साल संबंध नहीं बनान चाहती और पति तलाक की फरमाइश करने लगता है कोर्ट भी पति का साथ देता। इस सवाल की कई परते है लेकिन सोचने वाली बात है आज भी अधिकतर शादियां मां-बाप परिवार की पसंद से होती। जिसके शादी होती है उसके बारें में पत्नी को हनीमून वाले दिन पता चलता है कि भूले से चेहरे के पीछे आखिर कौनसा चेहरा है।

अगर ध्यान इस बहस से हटाकर देखा जाए तो असली परेशानी महिलाओं की शादी के बाद शुरू होती है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मूल अधिकार माना है। यानी की हर नागरिक को अपने शरीर को लेकर फैसला करने का भी अधिकार है। तो अगर सरकार शादी की परंपरा को बचाने तर्क दे सकती है तो उसे सेक्स को लेकर महिला  की आजादी पर कोई सवाल नहीं उठाना चाहिए।

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