व्यंग्य-जरा ! समझा करो : जिसका दाम उसका राम

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नेताजी आजकल बड़े परेशान हैं । दिन भर दौड़-धूप करने के बाद शाम को वक़्त मिला है कि चैन से साँस ले सके, पर फिर फोन बज उठा, नेताजी के चेहरे पर हवाईयां दिखने लगी ।

फिर जाने को उठे ही थे कि पत्नी बोली-“कहाँ चल दिये सरकार?” पत्नी की आवाज़ सुनते ही नेताजी सकपका गए,पर पत्नी को नजरअंदाज करते हुए घर से बाहर आ गए। सड़क किनारे कुछ देर तक खड़े रहने पर;जब कोई वाहन न मिला तो किस्मत को कोसा और पैदल ही चल पड़े।

अभी एक ही महीना हुआ है कि नेताजी का जो पेट आसमान छूता था,आजकल तो जैसे गायब ही हो गया हैं । गाल तो पुचक कर बिना हवा के गुब्बारा हो गए हैं। पत्नी दिन-रात समझाती अब न करो राजनीति पर नेताजी कहाँ सुनने वाले थे?उन्हें तो राजनीति का कीड़ा लग चुका हैं।. जब देर रात घर पहुँचे तो पत्नी बोली कुछ अपना भी ख्याल रखा करो, अपनी हालत तो देखो मिल मजदूर सी हो गई हैं। नेताजी मुस्कुराये और बोले-“जरा ! समझा करो बस कुछ दिन की ही बात हैं ।चुनाव के बाद तो चैन ही चैन हैं। वोटरों का ख्याल रखना होता हैं जो लोग बगल में बिठाने लायक नही होते उन्हें भी सिर पर बैठाना होता हैं और ये दौड़-धूप कुछ ही दिन की हैं फिर आराम ही आराम और फिर “जिसका दाम उसका राम”|”

-दीपकप्रेमी’विरह’