ऑस्ट्रेलिया की स्टुर्ट यूनिवर्सिटी को मिला लीडर्स तैयार करने वाली यूनिवर्सिटी का खिताब

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न्यू साउथ वेल्स: ऑस्ट्रेलिया की चार्ल्स स्टुर्ट यूनिवर्सिटी को भविष्य के इंजीनियरिंग लीडर्स तैयार करने वाली यूनिवर्सिटी के तौर पर चुना गया है। इसकी वजह है यूनिवर्सिटी का अनूठा एजुकेशन सिस्टम। न्यू साउथ वेल्स की इस महज 29 साल पुरानी यूनिवर्सिटी में ऑन-डिमांड क्लासेस के कॉन्सेप्ट पर पढ़ाई कराई जाती है। इंजीनियरिंग के साढ़े 5 साल के कोर्स में से सिर्फ डेढ़ साल ही बच्चों को क्लासेस में बैठाकर पढ़ाई कराई जाती है।

इसके बाद बच्चों को किसी भी कंपनी में जाकर काम करने की छूट दे दी जाती है। उनके लिए क्लास की अनिवार्यता खत्म कर दी जाती है। बच्चों को किसी भी कंपनी में काम करते हुए अगर कोई समस्या आती है, तो वो यूनिवर्सिटी आकर अपने टीचर से संपर्क करें। टीचर खास उस बच्चे की समस्या को हल करने के लिए क्लास लगाएंगे और बच्चे को उस टॉपिक की जानकारी देंगे। यही यूनिवर्सिटी का ऑन-डिमांड क्लासेस कॉन्सेप्ट है।

स्टूडेंट्स को इन साढ़े 5 साल में एक बार भी कोई परीक्षा नहीं देनी होती है। किसी संस्थान में काम करते हुए उनका जैसा प्रदर्शन रहता है और वो कंपनी के दिए असाइनमेंट को जिस तरह से पूरा करते हैं, उसी आधार पर यूनिवर्सिटी भी उन्हें अंक देती है। यानी सारा जोर बच्चों को प्रैक्टिकल लर्निंग देने पर रहता है। चार्ल्स स्टुर्ट के साथ ही 3 अन्य यूनिवर्सिटी को भविष्य के लीडर्स तैयार करने वाली यूनिवर्सिटी की कैटेगरी में पुरस्कृत किया गया है।

ये लिस्ट मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी ने तैयार की है। चार्ल्स स्टुर्ट यूनिवर्सिटी की संस्थापक टीम में शामिल रहे प्रोफेसर यूआन लिंडसे कहते हैं- ‘हमारी सोच साफ है कि हम छात्रों को नहीं, बल्कि फ्यूचर इंजीनियर्स को पढ़ा रहे हैं। हमें भरोसा है कि 20 साल में पढ़ाई का ये तरीका हर कॉलेज में लोकप्रिय हो चुका होगा।

पढ़ाई पूरी होेने पर यहां के छात्रों के पास 4 साल का अनुभव होता है 
सीएसयू से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही एमेरी एनॉनिकल कहती हैं कि- ‘किसी संस्थान से जुड़ने के लिए जो बेसिक बातें होती हैं, वो हमें यूनिवर्सिटी में पहले एक साल में ही बता दी जाती हैं। इसके बाद हम किसी बड़े संस्थान में दाखिल हो जाते हैं। पढ़ाई खत्म होने तक हमारे पास 4 साल का अनुभव होता है। यानी असली नौकरी शुरू करने से पहले ही हमें अच्छा अनुभव मिल जाता है और ऐसे में हमें ये भरोसा भी मिल जाता है कि अब हम कहीं भी काम करने के लिए पर्याप्त रूप से ट्रेन हो चुके हैं।’

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