चुनावों के बाद ही क्यों जारी होते हैं एग्जिट पोल? जानें किस देश का आइडिया है Exit Poll

भारत जैसे देश में इलेक्शन रिजल्ट को लेकर भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। 1998 से 2019 तक कुल 6 लोकसभा चुनाव हुए। इनमें से 4 मौकों पर एग्जिट पोल के अनुमान कभी पूरी तरह गलत और कभी आंशिक गलत साबित हुए।

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Exit Poll Results 2023: तेलंगाना में 30 नवंबर मतदान प्रक्रिया पूरी होते ही एग्जिट पोल का दौर शुरू हो जाएगा। वोटिंग के दौरान चुनाव आयोग एग्जिट पोल के टेलिकास्ट पर रोक लगा देता है। माना जाता है कि एग्जिट पोल से नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।

आयोग ने नवंबर के शुरुआत में 7 नवंबर की सुबह सात बजे से 30 नवंबर शाम 6:30 तक एग्जिट पोल के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। 1998 में पहली बार चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत न्यूज पेपर और टीवी चैनलों में एग्जिट पोल पब्लिश किए जाने पर रोक लगाई थी।

अब जब चुनाव खत्म हो चुके हैं तो ऐसे में एग्जिट पोल अब शुरु हो जाएंगे। क्या होता है एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल चलिए आज हम आपके सभी सवालों के जवाब देते हैं। कई बार एग्जिट पोल सही भी साबित होते हैं। यहां हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे होता है एग्जिट पोल, इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है?

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कहां से आया एग्जिट पोल का आइडिया?
एग्जिट पोल को जानने से पहले ये जानना जरुरी है कि आखिर ये किस का आइडिया है। दुनिया में पहली बार किस मीडिया कंपनी ने ये तरीका अपनाया, इसकी सटीक जानकारी नहीं है। हालांकि, मीडिया कंपनियों की वजह से 1970 के दशक में अमेरिका और पश्चिमी देशों में तेजी से एग्जिट पोल का कल्चर बढ़ने लगा। एग्जिट पोल सबसे पहले अमेरिका में हुई। जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने अमेरिकी सरकार के कामकाज पर लोगों की राय जानने के लिए ये सर्वे किया था। उसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और डेनमार्क में भी चुनाव से पहले सर्वे हुए। ये 1930 और 1940 का दशक था।

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एग्जिट पोल भारत में कब हुआ था और किसने किया था?
भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन (आईआईपीयू) के तत्कालीन प्रमुख एरिक डी कोस्टा ने की थी। 1980 के दशक में भारत में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर एग्जिट पोल को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रणय रॉय और यूके के पॉलिटिकल एक्सपर्ट डेविट बटलर ने मिलकर काम किया। उनके रिसर्च को अशोक लाहिड़ी ने अपनी किताब ‘द कम्पेंडियम ऑफ इंडियन इलेक्शन’ में पब्लिश किया है। 1996 में सरकारी चैनल दूरदर्शन ने CSDS के साथ मिलकर पहली बार एग्जिट पोल जारी किए। इसके बाद सभी सैटेलाइट चैनलों ने एग्जिट पोल जारी करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद एग्जिट पोल मतदान के बाद होने वाला सबसे लोकप्रिय टीवी शो बन गया।

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भारत में कब-कब सफल हुआ एग्जिट पोल?
भारत जैसे देश में इलेक्शन रिजल्ट को लेकर भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। 1998 से 2019 तक कुल 6 लोकसभा चुनाव हुए। इनमें से 4 मौकों पर एग्जिट पोल के अनुमान कभी पूरी तरह गलत और कभी आंशिक गलत साबित हुए।

एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में क्या अंतर है?
एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल सुनने में एक जैसा लगता है और कई लोग इसे एक ही मान लेते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। दोनों में काफी अंतर है। एग्जिट पोल जहां वोटिंग वाले दिन मतदान करके बाहर आने वाले लोगों से बात करके किया जाता है तो वहीं ओपिनियन पोल चुनाव से पहले किए जाते हैं। ओपिनियन पोल में बड़ी संख्या में लोगों को शामिल करके सवाल पूछा जाता है। इस भीड़ में सभी वोटर नहीं होते हैं। ऐसे में इसे ज्यादा सटीक नहीं माना जाता है।

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एग्जिट पोल को कौन से तरीके सटीक बनाते हैं?
1. सैंपल साइज: जिस एग्जिट पोल का सैंपल साइज जितना बड़ा होता है, उसे उतना ही ज्यादा एक्यूरेट माना जाता है। मतलब ये हुआ कि सर्वे में जितना ज्यादा से ज्यादा लोगों से संपर्क किया जाए, उतना ज्यादा अच्छा है।

2. सर्वे में पूछे जाने वाले सवाल: सैंपल सर्वे में पूछा गए सवाल जितना न्यूट्रल होगा, एग्जिट पोल का रिजल्ट भी उतना ही सटीक होगा।

3. सर्वे का रेंज: सर्वे का दायरा जितना बड़ा होगा, रिजल्ट एक्यूरेट होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। मान लीजिए किसी विधानसभा में सिर्फ दो या तीन पोलिंग बूथ से सैंपल लिए जाते हैं, जहां किसी एक पार्टी के उम्मीदवार की पकड़ है। इससे एग्जिट पोल के रिजल्ट पर असर पड़ सकता है।


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