हारे हुए इंसान को प्रेरित करती हैं अटल बिहारी वाजपेयी की ये कविताएं, देखें Video

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 वीडियो साभार: NMF News

सुनिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के जन्मदिन पर उनके द्वारा दिए गए भाषणों और कविताओं के कुछ खास अंश। भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी रविवार यानि 25 दिसंबर 2016 को 92 साल के हो गए। आपको बता दें अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को केंद्र सरकार गुड गर्वनेंस डे के तौर पर मना रही है। 2004 के आम चुनाव में एनडीए की हार के बाद से अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने खराब स्वास्थय की वजह से राजनीति से संन्यास ले लिया। वाजपेयी आज एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है। अटल जी ही एक ऐसे सांसद रहे जो चार अलग-अलग राज्यों से निर्वाचित हुए। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात। सियासत को पचास साल देने के बाद भी एक ऐसा बेदाग चेहरा जिसे आज भी पूरा देश प्यार करता है

 अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं :

हार में क्या जीत में :

क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं.
कर्तव्य पथ पर जो मिला, ये भी सही वो भी सही.
वरदान नहीं मांगूंगा, हो कुछ भी पर हार नहीं मानूंगा.
हार नहीं मानूंगा रार नयी ठानूंगा.
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं. गीत नया गाता हूं.

कदम मिला कर चलना होगा :

बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा

हास्य-रूदन में, तूफानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा.

कौरव कौन, कौन पांडव :

कौरव कौन कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है.
दोनों ओर शकुनि का फैला कूटजाल है.
धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है.

हर पंचायत में पांचाली अपमानित है.
बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है.
कोई राजा बने, रंक को तो रोना है.

ऊंचाई :

ऊंचे पहाड़ पर, पेड़ नहीं लगते, पौधे नहीं उगते,न घास ही जमती है.
जमती है सिर्फ बर्फ, जो, कफन की तरह सफेद और, मौत की तरह ठंडी होती है.
खेलती, खिल-खिलाती नदी, जिसका रूप धारण कर, अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है.
ऐसी ऊंचाई, जिसका परस पानी को पत्थर कर दे, ऐसी ऊँचाई जिसका दरस हीन भाव भर दे.

अभिनन्दन की अधिकारी है, आरोहियों के लिये आमंत्रण है, उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं.
किन्तु कोई गौरैया, वहां नीड़ नहीं बना सकती, ना कोई थका-मांदा बटोही.
उसकी छांव में पलभर पलक ही झपका सकता है.

सच्चाई यह है कि केवल ऊंचाई ही काफी नहीं होती.
सबसे अलग-थलग, परिवेश से पृथक, अपनों से कटा-बंटा.
शून्य में अकेला खड़ा होना, पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है.
ऊंचाई और गहराई में आकाश-पाताल की दूरी है.

कदम मिलाकर चलना होगा :

बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं.
निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा.

हास्य-रूदन में, तूफानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में.
उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा.

उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में.
जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा.

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ.
असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.