एलन मस्क ने की इंसानी दिमाग में चिप फिट, सबकुछ ठीक रहा था तो चिप लाएगी क्रांति, जानें कैसे?

चिप इम्प्लांट करने में हमेशा जनरल एनेस्थीसिया से जुड़ा रिस्क होता है। ऐसे में प्रोसेस टाइम को कम करके रिस्क कम किया जा सकता है। कंपनी ने इसके लिए न्यूरोसर्जिकल रोबोट डिजाइन किया है

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Elon Musk Neuralink: एलन मस्क की ब्रेन-चिप कंपनी न्यूरालिंक ने इंसान के दिमाग में सर्जरी के जरिए चिप इम्प्लांट की है। यह डिवाइस एक छोटे सिक्के के आकार की है, जो ह्यूमन ब्रेन और कंप्यूटर के बीच सीधे कम्युनिकेशन चैनल बनाएगी। मस्क ने अपनी X पोस्ट में लिखा, ‘पहले इंसान में हमारी कंपनी न्यूरालिंक ने डिवाइस इम्प्लांट की है। पेशेंट अच्छी तरह से रिकवर कर रहा है। शुरुआती रिजल्ट आशाजनक हैं।’

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एलन मस्क ने एक अन्य पोस्ट में लिखा, ‘इस डिवाइस के जरिए आप सोचने मात्र से फोन, कंप्यूटर और इनके जरिए किसी भी अन्य डिवाइस को कंट्रोल कर पाएंगे। शुरुआती यूजर वो होंगे जिनके लिंब्स यानी अंगों ने काम करना बंद कर दिया है।’ मस्क ने कहा, इमैजिन करें अगर स्टीफन हॉकिंग होते, तो इस डिवाइस की मदद से एक स्पीड टाइपिस्ट या नीलामीकर्ता की तुलना में ज्यादा तेजी से कम्युनिकेट कर पाते।

न्यूरालिंक डिवाइस क्या है?
ये डिवाइस कंप्यूटर, मोबाइल फोन या किसी अन्य उपकरण को ब्रेन एक्टिविटी (न्यूरल इम्पल्स) से सीधे कंट्रोल करने में सक्षम करता है। उदाहरण के लिए, पैरालिसिस से पीड़ित व्यक्ति मस्तिष्क में चिप के प्रत्यारोपित होने के बाद केवल यह सोचकर माउस का कर्सर मूव कर सकेंगे कि वे इसे कैसे मूव करना चाहते हैं।

डिवाइस कैसे काम करेगा
माइक्रोन-स्केल थ्रेड्स को ब्रेन के उन क्षेत्रों में डाला जाएगा जो मूवमेंट को कंट्रोल करते हैं। हर एक थ्रेड में कई इलेक्ट्रोड होते हैं जो उन्हें “लिंक” नामक इम्प्लांट से जोड़ते हैं। कंपनी ने बताया कि लिंक पर थ्रेड इतने महीन और लचीले होते हैं कि उन्हें मानव हाथ से नहीं डाला जा सकता। इसके लिए कंपनी ने एक रोबोटिक प्रणाली डिजाइन की है जिससे थ्रेड को मजबूती और कुशलता से इम्प्लांट किया जा सकता है।इसके साथ ही न्यूरालिंक ऐप भी डिजाइन किया गया है ताकि ब्रेन एक्टिविटी से सीधे अपने कीबोर्ड और माउस को बस इसके बारे में सोच कर कंट्रोल किया जा सके। डिवाइस को चार्ज करने की भी जरूरत होगी। इसके लिए कॉम्पैक्ट इंडक्टिव चार्जर भी डिजाइन किया गया है जो बैटरी को बाहर से चार्ज करने के लिए वायरलेस तरीके से इम्प्लांट से जुड़ता है।

इस तकनीक को कहते हैं ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस
एलन मस्क ने जिस टेक्नोलॉजी के जरिए चिप बनाई है उसे ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस या शॉर्ट में BCIs कहा जाता है। इस पर कई और कंपनियां सालों से काम कर रही हैं। ये सिस्टम ब्रेन में रखे गए छोटे इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल पास के न्यूरॉन्स से संकेतों को “पढ़ने” के लिए करता है। इसके बाद सॉफ्टवेयर इन सिग्नल्स को कमांड या एक्शन में डिकोड करता है, जैसे की कर्सर या रोबोटिक आर्म को हिलाना।

ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा तो चिप क्रांति ला सकती है
न्यूरालिंक के मुताबिक, ट्रायल उन लोगों पर किया जा रहा है, जिन लोगों को सर्वाइकल स्पाइनल कॉर्ड में चोट या एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के कारण क्वाड्रिप्लेजिया है। इस ट्रायल में हिस्सा लेने वालों की उम्र मिनिमम 22 साल होनी चाहिए। स्टडी को पूरा होने में करीब 6 साल लगेंगे। इस दौरान पार्टिसिपेंट को लैब तक आने-जाने का ट्रैवल एक्सपेंस मिलेगा। ट्रायल के जरिए कंपनी यह देखना चाहती है कि ये डिवाइस मरीजों पर कैसे काम कर रही है। मई में कंपनी को ट्रायल के लिए यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) से मंजूरी मिली थी। अगर ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा तो चिप के जरिए दृष्टिहीन लोग देख पाएंगे। पैरालिसिस के मरीज चल-फिर सकेंगे और कंप्यूटर भी चला सकेंगे। कंपनी ने इस चिप का नाम ‘लिंक’ रखा है।

क्या इसे लगाना सेफ होगा?
चिप इम्प्लांट करने में हमेशा जनरल एनेस्थीसिया से जुड़ा रिस्क होता है। ऐसे में प्रोसेस टाइम को कम करके रिस्क कम किया जा सकता है। कंपनी ने इसके लिए न्यूरोसर्जिकल रोबोट डिजाइन किया है, ताकि यह बेहतर तरीके से इलेक्ट्रोड को इम्प्लांट कर सके। इसके अलावा, रोबोट को स्कल (खोपड़ी) में 25 मिमी डायमीटर के एक छेद के जरिए थ्रेड डालने के लिए डिजाइन किया गया है। ब्रेन में एक डिवाइस डालने से ब्लीडिंग का भी रिस्क है। कंपनी इसे कम करने के लिए माइक्रो-स्केल थ्रेड्स का उपयोग कर रही है।

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