समाज में कलंक नहीं प्रेरणा है-किन्नर

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शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती, बल्कि यह एक अदम्य इच्छाशक्ति से आती है- महात्मा गांधी

1975 में रमजान के पाक महीने में एक किन्नर ने एक अधमरी बच्ची को मुंबई के माहिम इलाके से उठाया और उसकी परवरिश की। इसी सच्ची घटना पर आधारित है ”तमन्ना“ फिल्म की कहानी। इस फिल्म को देखने के बाद किन्नरों के लिए मन में इज्जत और बढ़ गई। इज्जत पहले भी थी, बस फर्क सिर्फ इतना था कि पहले मैने इनको हमेशा दया कि नजरों से देखा लेकिन अब लगता ये दया के पात्र नहीं है, बल्कि ये तो सम्मान के हकदार है। हमारा समाज औरत और आदमियों से मिलकर बना हैं लेकिन किन्नर भी समाज का अंग हैं। जिसे ये समाज नकार नहीं सकता। जैसे शरीर के किसी अंग को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही किन्नरों से मुंह फेरना, शरीर के अंग को काट देना जैसा होता है। जब बच्चा जन्म लेता है तो घर में खुशियां आती हैं, और ऐसे मौके पर किन्नरों का आना, मनोरंजन करना, बच्चें को आशीर्वाद देना बहुत शुभ समझा जाता हैं। इनके बिना किसी भी शुभ कार्य विवाह या जन्म आदि उत्सवों को अधूरा माना जाता हैं लेकिन पीठ पीछे इनकी मजाक उड़ाई जाती है। हिजड़ा, छक्का आदि नामों से संबोधित किया जाता हैं। किन्नरों के लिए ये दोगलापन क्यों है? क्यों लोग सिर्फ इन्हें हंसी का पात्र समझते है? सवाल और जिज्ञासा बहुत सारी हैं, कब वो दिन आएगा जब किन्नरों को भी सम्मान के नजरिये से देखा जाएगा।

पुराणों मे किन्नर
हमारा देश अनेक पंरपराओं वाला देश हैं। यहां के वेद-पुराण अपने आप में एक सत्य हैं। जिन पर आधारित कई मान्यताएं, कहानियां, तथ्य आदि सभी सत्य लगते हैं। हमारा समाज स्त्री-पुरूष दो भागों में बटां है, लेकिन एक तीसरा भाग भी है जिसे अकसर हम नजरअंदाज करते हैं। जिन्हें किन्नर, हिजड़ा, छक्का, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर कई नाम दे दिये गये हैं। भारत के पौराणिक इतिहास में भी किन्नरों की उपस्थिति का वर्णन मिलता हैं। महाभारत काल में भीम का काल बना शिखंडी और अपने अज्ञातवास के दौरान अर्जुन द्वारा धारण किया गया किन्नर रूप इसके दो मुख्य उदाहरण हैं। अर्जुन ने अपने अज्ञातवास की शर्त पूरी करने के लिए यह रूप धारण किया था। इससे जुड़ी एक रोचक कहानी भी हैं। महाभारत की कथा के अनुसार वेदव्यास ने पांचों भाइयों से द्रोपदी का विवाह करवाते समय कुछ शर्ते रखी थी, जिनमें से एक का अर्जुन ने  उल्लघंन किया था। इस अपराध कि वजह से एक साल के लिए अर्जुन को इंद्रप्रस्थ से निकाल दिया गया। इंद्रप्रस्थ से निकलने के बाद अर्जुन भारत के उत्तर भाग में जाते हैं, वहां उनकी मुलाकात एक विधवा राजकुमारी उलूपी से होती हैं, दोनों एक-दूसरे से प्रेम कर विवाह बंधन में बंध जाते हैं। विवाह के पश्चात इनसे एक पु़त्र होता है अरावन लेकिन एक साल पूरा होने के बाद अर्जुन उलूपी और अरावन को छोड़ कर चले जाते हैं। कुछ समय पश्चात अरावन अर्जुन के पास चला जाता है और अर्जुन महाभारत की लड़ाई में अरावन को भेजता हैं। अरावन अपने पिता को वचन देता है कि वह अंत समय तक लड़ेगा।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय ऐसा आता है जब जीत के लिए महाकाली के चरणों में एक राजकुमार कि बली आवश्यक होती है, ऐसे में अरावन बली देने को तैयार हो जाता है, पंरतु उसकी एक शर्त होती है कि वह अविवाहित नहीं मरना चाहता। ऐसी स्थिति में कोई भी अपनी पु़त्री का विवाह अरावन से कराने को तैयार नहीं होता। सबकी भलाई के लिए भगवान श्री कृष्ण औरत के वेश में प्रकट होकर अरावन से विवाह किया। पति अरावन के मृत्यु के पश्चात महिला रूपी कृष्ण विलाप करने लगते हैं। बस यहीं से किन्नर अरावन को अपना पति मानते है। तमिलनाडु में अरावन के  कई मंदिर बनवाए गए है। जिनमें कुवगम का मंदिर प्रसिद्ध है। इस पौराणिक कथा में भी किन्नरों का वर्णन हैं। भगवान कृष्ण ने भी जगहित के लिए ये रूप धारण किया। फिर समाज इन किन्नरों को कैसे नकार सकता है। जब वेद-पुराणों में इनका वर्णन है, तब समाज को भी इनकी उत्पति पर या इनके अस्तित्व पर कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।

कमजोर नहीं है
कलर्स चैनल पर आजकल एक सीरियल आ रहा हैं ‘शक्ति अस्तित्व के एहसास की’ इसमें मुख्य किरदार सौम्या जो कि एक किन्नर का रोल अदा कर रही हैं। वह लड़ती है अपने अधिकारों के लिए, अपने अस्तित्व के लिए। समाज में भी कई ऐसी सौम्या और तमन्ना है जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। जो नहीं करती है परवाह की वो एक किन्नर है। वो खुद को समाज का हिस्सा मानती हैं। वे दया, हिकारत या मजाक का पा़त्र नहीं है बल्कि प्रेरणा है उन लोगों के लिए जिन्होंने ये स्वीकार कर लिया है कि वे समाज से अलग है, उनको कभी नहीं अपनाया जाएगा। उनको अपना जीवन ऐसे ही बिताना हैं। भले ही इनकी शारीरिक बनावट भिन्न हो पर जज्बात, अहसास वही है। जो स्त्री-पुरूष में होते हैं। अब वो समय नहीं रहा जब किन्नर सिर्फ नाच गा कर सीमित थे। अब इन्होंने भी आगे बढ़ने की ठान ली है। महान विचारक डॉ. डेनिस वेत्ले ने कहा है जीवन में दो प्राथमिक विकल्प शर्तों के साथ मौजूद है या तो आप उनके साथ स्वीकार करना सीखे या उन्हे बदलने कि जिम्मेदारी खुद ले।

ऐसी ही जिम्मेदारी ली गंगा कुमारी ने जो कि राजस्थान पुलिस में पहली ट्रांसजेंडर कांस्टेबल बन गई। ट्रांसजेंडर्स को बस शादियों या चंदा मांगने वालों कि नजरिये से ही देखा जाता था। कुछ सालों में कई मजबूत चेहरे सामने आए जिन्होने इस कम्युनिटी के लिए समाज का नजरिया ही बदल दिया। राजस्थान के जालौर के जाखड़ी गांव की गंगा कुमारी 2013 में कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में चयनित हुई थी। सरकार ने 208 मे से 207 पदों पर नियुक्ति दे दी, लेकिन गंगा को ट्रांसजेंडर होने की वजह से रोक दिया गया । लंबी लड़ाई के बाद हाईकोर्ट ने नवंबर 2017 में नियुक्ति देने का आदेश दिया। आखिरकार गंगा इस लड़ाई में सफल रहीं।

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ना हारे ना रूके
ओपेरा विनफ्रे ने कहां है जहां सघंर्ष नहीं होता वहां शक्ति नहीं होती। ये शक्ति तो है जो इतने लंबे सघंर्ष से मिली। नहीं तो किन्नर कभी आगे बढ़ने की नहीं सोचते। तिरूवंतपुरम की रहने वाली जारा शेख ने हाल ही में  टैक्नोपार्क में यूएसटी ग्लोबल कंपनी के हयूमन रिर्सोस डिपार्टमेंट में बतौर सीनियर एसोसिएट ज्वाइन किया हैं। जोइता मंडल देश की पहली ट्रांसजेंडर जज। जिन्होने कर दिखाया कि कुछ भी नामुमकिन नहीं, बस हौसले बुलंद होने चाहिए। जोइता का जन्म कोलकाता में हुआ। उन्हें पहले स्कूल छोड़ना पड़ा फिर घर।

यहां तक कि जीने के लिए उन्हे भीख भी मांगनी पड़ी। नौकरी के लिए जोइता ने कॉलसेंटर ज्वाइन किया लेकिन वहां भी उनका मजाक बनाया जाता था। लोगों की छोटी मानसिकता के कारण कोई उन्हे किराए पर कमरा नहीं देता था। 8 जुलाई 2017 को जोइता को जज बनाया गया। लोक अदालत में तीन जज की बेंच बैठती है जिसमें एक वरिष्ठ जज, एक वकील और एक सोशल वर्कर शामिल है। सरकार ने जोइता को सोशल वर्कर जज के तौर पर नियुक्त किया। ये वो चेहरे है जिन्होनें हार नहीं मानी, खुद की लड़ाई खुद लड़ी और ना जाने कितने कमजोरों को मजबूत बनाया। कहते है ना जिनके इरादे मजबूत होते है उनकी कभी हार नहीं होती।

कलंक नहीं प्रेरणा है
लोग अपने कुते को पालते है, उसको कितनी इज्जत देते है, कितने प्यार से उसको खाना खिलाते है, गाड़ियों में बिठाते है, बिस्तर पर सुलाते है, वो तो एक कुता है, जब आप उसे जीने का अधिकार देते है तो एक किन्नर को क्यों नहीं, ये सवाल खड़ा किया शबनम मौसी ने जिनका नाम देश की पहली विधायक के नाम पर दर्ज है। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी एक टीवी कलाकार, भरतनाट्यम डांसर और सामाजिक कार्यकर्ता जो एक ट्रांसजेंडर भी है लेकिन अब ये ट्रांसजेंडर शब्द इन सब उपलब्धियों के बाद आता है। मानबी बंदोप्ध्याय पहली ट्रांसजेंडर प्रिसिंपल जिन्हे सराहा गया काफी प्रताड़ना के बाद और समाज ने स्वीकार किया उनकी काबिलियत को।

मधु किन्नर छतीसगढ़ के रायगढ़ में मेयर के पद पर स्वीकार किया गया। जो कि पहली दलित ट्रांसजेंडर है। पदमिनी प्रकाश 15 अगस्त 2014 को पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर के रूप में चुना गया। जिनके परिवार ने ही उनका साथ छोड़ दिया था। आज वे एक अच्छा जीवन जी रही है। रोज वेंकटेश्वर पहली टीवी होस्ट है। कल्कि सुब्रहमण्यम जो एक लेखक है और एक कलाकार भी। जो कि किन्नरों के उत्थान के लिए प्रयासरत है। ये सभी नाम आज एक पहचान है एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो लड़ना नहीं जानते। एक मिसाल है उन लोगों के लिए जो समाज के बनाए दकियानूसी दायरों में रहते है। इन चेहरों ने साबित किया कि ये समाज का हिस्सा होने के साथ-साथ समाज के लिए प्रेरणा भी है इनको कलंक नहीं समझा जाए।

साथ साथ चलना है

घर से मस्जिद तक कहीं दूर चलो यू कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए

निदा फाजली का ये शेर लाजमी होता है गौरी सांवत के लिए, गौरी का जन्म मुंबई के दादर में एक मराठा परिवार में हुआ। वे घर से भागे हुए ट्रांसजेंडर के लिए मलाड के मलवाणी में सखी चार चैधी नाम से आश्रय चलाती है। गौरी सांवत पिछले 17 सालों से ट्रांसजेंडर्स की समस्याओं को लेकर काम कर रही है। उन्हें कई बार बुराईयों का सामना करना पड़ा। जब उन्हें सेक्स वर्कर की लड़कियों की असुरक्षा का पता चला तो  उन्हें सुरक्षित माहौल देने के लिए शेल्टर बनाने का फैसला किया। वह मिलार्प.ओग की सहायता से इस काम के लिए पैसे जुटा रही है। गौरी का मानना है कि जो दर्द उन्होंने सहा वो दर्द किसी और को नहीं सहने देगी। वो हमेशा दूसरों की सहायता के लिए मौजूद रहती है। उनका कहना है कि जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते है। पर इनसे दूर भागने की बजाय इनका सामना करना ही सही होता है। मुश्किलें तब कम हो जाती है जब आप आगे आने के लिए हाथ बढ़ाते है और न जाने कितने ऐसे ही हाथ आपसे मिलते चले जाते है।

किन्नरों के अधिकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 19 जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइटस) बिल को मंजूरी दे दी। इस बिल के जरिए एक व्यवस्था लागू करने की है, जिसमें किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आजादी से जीने का अधिकार मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों के हक में फैसला सुनाया। किन्नरों को तीसरे लिंग यानी थर्ड जेंडर का दर्जा दिया गया। किन्नर देश के नागरिक है इनको भी सभी सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 14, 16, और 21 का हवाला देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर  देश के नागरिक है और शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका समान अधिकार है। परमात्मा ने सभी को जीवन दिया है, और उसे अच्छे ढंग से जीने का अधिकार भी। उसने किसी में भेद नहीं किया। फिर हम भेदभाव करने वाले कौन होते है। हम बड़े तब नहीं होते जब हम किसी को नीचा दिखाते है या उसका अपमान करते है, बड़प्पन वो होता है जो कैसा भी हो उसे हर हाल में स्वीकार करता है। समाज को अपना नजरिया बदलने की देर है।

-नीतू शर्मा

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य और व्यक्त किए गए विचार पञ्चदूत के नहीं हैं, तथा पञ्चदूत उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है। अगर आप भी अपने लेख वेबसाइट या मैग्जीन में प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो हमें [email protected] ईमेल करें।