भारत-चीनः जानिए कैसा होगा दोस्ती का नया अध्याय

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भारत और चीन के बीच दोस्ती का नया अध्याय लिखा गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कई अहम मुद्दों पर बातचीत की है। पीएम मोदी का काफी अलग अंदाज भी देखने को मिला। उन्होंने शी जिनपिंग के साथ नौका में सैर की, चाय पर चर्चा की और झील के किनारे सैर का आनन्द लिया। पर इन सबके बीच कई ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर अभी मिलना बाकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने शी को अगले साल भारत आने का भी न्यौता दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बातचीत की शुरुआत ऐसे माहौल में की है जिसके परिणाम बहुत दूर तक पहुंचाने वाले हो सकते हैं। संभवतः उन संबंधों के पूर्ण सामान्यीकरण के दिशा में काम हो सकता है जो 1962 के सीमा युद्ध से प्रभावित हुए थे।

मोदी ने शी से यह भी कहा कि  “मैं खुश होऊंगा अगर 2019 में हम इसी तरह का अनौपचारिक शिखर सम्मेलन भारत में करें।  दोनों नेताओं ने पहले दिन ऐसी वार्ता की जो अधिक प्रतीकात्मकता लिए हुए थी और दोनों सभ्यताओं की सदियों पुरानी हासिल उपलब्धियों को रेखांकित करती है। शी ने पीएम मोदी के स्वागत टिप्पणी में जो कहा है, वह भी महत्वपूर्ण है। उनका यह कथन गौर करने लायक है कि वैश्विक विकास के लिए चीन और भारत दोनों महत्वपूर्ण इंजन हैं और हम बहु-ध्रुवीय और वैश्वीकृत दुनिया को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय खंभे हैं। दुनिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए चीन- भारत संबंध एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कारक है। विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देश उभरने की तैयारी कर रहे हैं। वैश्वीकरण की एक नई लहर के जुड़वां इंजन हैं जिसमें एशिया और उभरती अर्थव्यवस्थाएं एक प्रमुख भूमिका निभाएंगी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि

चीन समझ गया है कि अमरीका का ट्रम्प प्रशासन एक विशेष उद्देश्यों के तहत व्यापार युद्ध आदि के सहारे  चीन के उदय में बाधा डाल रहा है। इसीलिए वुहान वार्ता के जरिए भू-आर्थिक अवसरों की तलाश के लिए जोर दिया गया है। नई श्रृंखला शुरू की गई है, भौगोलिक विवाद से से परहेज किया गया है  जो पिछले साल के डोकलाम सैन्य स्टैंड ऑफ इंडिया के साथ चरम पर था। चीन की गतिविधियों पर नजर रखने वाले एक भारतीय विशेषज्ञ का कहना है कि अगले साल 2019 में भारत में आम चुनाव होने हैं। लगता है कि  घरेलू मजबूती के लिए मोदी चीन के साथ फिर से जुड़ रहे हैं ताकि वे अपने मतदाताओं से यह कह सकें कि ‘देखो, मेरे पास चीन है। चीन के संबंध बनाकर हमने कुछ हासिल किया है।  एक आधिकारिक स्रोत ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि चीन से यदि मोदी को अरबों डॉलर का विदेशी निवेश मिल सकता है तो उनके लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। एक अन्य अधिकारी ने कहा है कि प्रधानमंत्री दो मुख्य मुद्दों की प्रगति की तलाश में हैं – एक तो सीमा के अंतिम समाधान से ज्यादा प्रबंधन पर ध्यान तथा दूसरा चीन के साथ मिलकर  “एशियाई शताब्दी” की ओर अग्रसर होना।

तिब्बत  मुद्दा
कुछ चीनी विद्वान संकेत दे रहे हैं कि सीमा मुद्दे के संकल्प के साथ तिब्बत मामला भी हल होने की सम्भावना है। शी-मोदी अनौपचारिक मुलाकात से  पहले एक शिखर सम्मेलन में   निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक दलाई लामा ने कहा था कि  तिब्बत चीन का हिस्सा बन सकता है। दलाई लामा ने कहा था कि वे धर्मशाला से अपने निवास ल्हासा लौट सकते हैं। चाइना वेस्ट नार्मल यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर लॉंग झिंगचुअान कहते है कि ऐतिहासिक रूप से सीमा मुद्दा और तिब्बत का सवाल  आपस में जुड़ा हुआ है। यदि तिब्बती मुद्दा हल हो गया तो यह चीन के लिए बहुत अनुकूल है और इससे भारत की सीमा मुद्दा भी सुलझ जाएगा। इस मौके की संवेदना के साथ पीएम मोदी, शी के साथ गले लगने की अपनी आदत से भी बचते दिखे। इस मौके पर उन्होंने औपचारिक रूप से हाथ मिलाया। एक व्यापक मुस्कुराहट और शब्दों का आदान-प्रदान अधिक उपयुक्त दिखाई दिया। दोनों ने पारंपरिक नृत्य देखा। इसी के बाद बातचीत का माहौल बना। अब चीन नीति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अचानक यू-टर्न लेने पर विचार करते हैं। बीजिंग के साथ संबंधों में गिरावट हमेशा ही रही है। और अधिक सामरिक जगह बनाने के लिए मोदी के प्रयास की वजह भी समझ में आती है। पर इसके अलावा एक वजह यह भी है कि चीन-पाकिस्तान की दोस्ती जग-जाहिर है। अमरीका बीजिंग के साथ दस्ताना व्यवहार करता दिखता है। पर जब  भारत का सवाल आता है तो हालात एकदम अलग दिखते हैं। उदाहरण के लिए डोकलाम के समय वाशिंगटन तटस्थ रहा था।

मूल सवाल
मूल सवाल यह है कि क्या शी  ने पीएम मोदी को अपने वुहान पार्लर में आमंत्रित करके मोदी के संदेशों पर कब्जा कर लिया है। शी का  उदार आतिथ्य राज्य-मीडिया कवरेज तक बढ़ाया गया। लेकिन पीएम मोदी ने वापस में क्या किया। चीन की जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है उसमें भारत के दो में से किसी भी दावे का समर्थन नहीं है। मुख्य दावा यह किया गया था कि शी और मोदी ने सीमा विवाद बढ़ने पर  “रणनीतिक मार्गदर्शन जारी किया और दोनों

संतुलित और टिकाऊ” व्यापार के लिए सहमत हुए हैं। कहना न होगा कि पीएम मोगी ने हिमालय में शांति खरीदने की आशा में विशाल मगरमच्छ को अपने साथ मिलाने की कोशिश की है। मोदी को उम्मीद है कि विदेश नीति में वह जवाहर लाल नेहरू की तरह सम्मान पाएंगे, वह खुद को नेहरू के दृष्टिकोण के पुनरुत्थान के रूप में देख रहे हैं। उधर, चीनी राष्ट्रपति शी अपने देश को फिर से महान बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है। इसके लिए वह भारत जैसे ऊर्जावान प्रतियोगी को अपने साथ बनाए रखना चाहते हैं। फिलहाल मोदी की इस यात्रा से भारत को एक बड़ा फायदा हुआ है। चीन ने कैंसर की दवाओं सहित करीब 28 दवाओं पर आयात कर हटा लिया है। चीन का यह निर्णय 01 मई से ही लागू भी हो गया है। इससे भारतीय दवा कम्पनियों को लाभ मिलेगा।

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