हेरिटेज दिवस 2018: नहीं दिया विरासतों पर ध्यान तो क्या दिखाओगे अपनी पीढियों को…

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वर्ल्ड हेरिटेज डे को मनाने के लिए इस साल की थीम है -पीढिय़ों के लिए विरासत। यह बात सौ फीसदी सच है कि अगर आज हम अपनी विरासत को नहीं सहेजेंगे तो ये कहीं गुम हो जाएंगी जिसके लिए आगे वाली पीढ़ी हमसे ढेरों सवाल करेंगी। इसलिए विरासत को संजोकर और अक्षुण्ण रखना हम सबकी प्राथमिकता पर रहना चाहिए। इसकी महत्ता को समझकर ही इंटरनेशनल काउंसिल फॉर स्मारक एंड साइट्स (आईसीएमओओएस) ने 1982 में सुझाव दिया था कि विशेष स्मारकों और स्थलों के लिए एक विशेष दिन को दुनिया भर में चिह्नित और मनाया जाना चाहिए और इसे अंतर्राष्ट्रीय दिवस के नाम पर मनाया जाना चाहिए।

यूनेस्को की जनरल कॉन्फ्रेंस ने भी 1983 में इस विचार को मंजूरी दे दी और तब से 18 अप्रैल विश्व धरोहर दिवस के रूप में चिह्नित कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) का मानना है कि साइटें मानवता के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और इनका सबसे अच्छे तरीके से ध्यान रखना चाहिए। अब सवाल उठता है कि एक विश्व धरोहर स्थल क्या है? किसी भी विश्व धरोहर स्थल को एक प्राकृतिक या मानव निर्मित क्षेत्र या एक संरचना के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो अंतरराष्ट्रीय महत्व की है और जिसे विशेष सुरक्षा की आवश्यकता है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिकता के साथ इनका जुड़ाव भी हो। अभी तक जितनी साइटें संरक्षित की गईं हैं, वे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दुनिया में 1,052 विरासत साइटें हैं, जिनमें से 814 सांस्कृतिक, 203 प्राकृतिक और 35 मिश्रित साइटें हैं।

भारत को प्रकृति ने एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई बनाया है। भारत की सीमा उत्तर में कश्मीर से लगभग 3,000 किमी दूर कन्याकुमारी तक दक्षिण में फैली हुई है।  उत्तर में हिमालय पर्वत और पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में समुद्र इसे शेष दुनिया से अलग करता है। भारत में विभिन्न देशों से लोग यहां आए और यहीं के होकर रह गए। सभी ने इतिहास और संस्कृति के निर्माण में योगदान दिया है। अन्य संस्कृतियों और सभ्यताओं के लोग अपने साथ अपनी परंपराओं को
लेकर आए, जो पहले से विद्यमान परंपराओं के साथ मिलकर एक हो गए हैं। इसकी
छाप हमें विरासत स्थलों में देखने को मिलती है।

विरासतों पर अवैध कब्जा
इस तथ्य को नकारा नहीं किया जा सकता कि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में आम आदमी की भागीदारी बहुत आवश्यक है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर अवैध कब्जे होते जा रहे हैं। इनको हटाने के लिए सरकार भी बहुत प्रयत्नशील नजर नहीं आती। देश की राजधानी दिल्ली में ही इन विरासतों पर अवैध  कब्जों की भरमार है। भले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली में मौजूद ऐतिहासिक इमारतों को अवैध कब्जे से बचाने की कवायद में योजनाएं बनाई हों लेकिन  ऐसे स्मारक और ऐतिहासिक भवन मौजूद हैं, जो अवैध कब्जे की गिरफ्त में हैं। इनकी सुरक्षा और संरक्षण अब चुनौती बनती जा रही है। हालांकि, ऐतिहासिक स्मारकों से 100 मीटर की परिधि तक निर्माण कार्य प्रतिबंधित है, लेकिन कई ऐतिहासिक भवन और स्मारक स्थल पूरी तरह से अवैध कब्जे की चपेट में हैं। उत्तरी दिल्ली में स्थित शालामार गांव का शीशमहल, जौंती गांव के शिकारगाह के अलावा सराय पीपलथला, अलीपुर और आजादपुर इलाकों में मौजूद लुप्त होते प्राचीन भवन एवं ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं, लेकिन ये अतिक्रमण की चपेट में हैं। साथ ही इनके आसपास गंदगी का अंबार लग गया है।

उत्तरी दिल्ली के जौंती गांव के बारे में पाठकों को शायद मालूम न हो कि यहां मुगलकालीन शिकारगाह है। यह किलानुमा शिकारगाह मुगलकाल में अखाड़ा भी हुआ करता था। यहां मुगल बादशाह अकबर से लेकर शाहजहां तक शिकार के लिए आते थे, क्योंकि उस जमाने में यहां घना जंगल था। शिकार करने के बाद बादशाह और उनके साथ चलने वाले लोग यहीं विश्राम भी करते हैं। आज यह शिकारगाह पशुशाला बन गया है। शालामार गांव स्थित लाल पत्थर से बना मुगलकालीन शीशमहल अब खंडहर और डरावनी जगह में बदल चुका है।  इस शीशमहल का निर्माण वर्ष 1639 में हुआ था, जिसे मुगल शासक शाहजहां ने बनवाया था। इस महल में
एक तालाब के साथ 25 कुंए थे, जो मीठे पानी के भंडार के भरपूर स्त्रोत थे। इस महल को विशेष तौर पर रानियों के लिए बनाया गया था, जिसमें उनके लिए स्नानागार भी थे। हालांकि, वर्तमान में तालाब और कुएं सूख चुके हैं।

शरारती तत्वों से नुकसान

विश्व धरोहरों की बात हो रही है, सबसे पहले उनकी रख-रखाव की बात आती है। हमारे देश में शायद ही ऐसी कोई धरोहर होगी। जिनकी दीवारों पर प्रेमी जोड़ों के नाम, किसी तरह का बैनर, फोन नम्बर आदि लिखा हुआ नजर न आए। इसमें कई मिश्रित धरोहर भी शामिल है। जहां कचरें ने उनकी खूबसूरती के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाया है। ये हमारी धरोहरों की खूबसूरती पर काले दाग जैसा है। ऐसा नहीं इनको रोकने के लिए सख्त कदम नहीं उठाए जाते लेकिन हर बार नाकामी ही क्यों हाथ लगती है। जिन धरोहरों को देखने के लिए पर्यटकों से लगभग 50 रूपये से लेकर 500 रूपये तक की फीस ली जाती उनका जब ऐसा हाल है तो आप सोचिए आप के शहर-गांव में आने वाली विरासतों का क्या हाल होगा। जिनका नाम किसी लिस्ट और बजट क्षेत्र से ही बाहर है।

सुरक्षा खतरे में
इतिहास हमारी आंखों के सामने ही धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। कुछ एक सालों के अंदर उसका एक हिस्सा नहीं रह जाएगा। कुछ को हम अपने हाथों से बर्बाद कर रहे हैं, कुछ की सुरक्षा खतरे में है। कई बार ऐसी खबरें सामने आती है धरोहरों के बेशकीमती चीजों में वहीं के कर्मचारी सेंध मार रहे हैं और किसी को इसकी खबर तक नहीं। सुरक्षा के मामलों में कई बार प्राइवेट कंपनियां भी सरकार को चुना लगा देती है लेकिन ना तो इनका कोई लिखित हिसाब है और ना ही इन घटनाओं को लगाम कसी जा रही है।

पीढ़ियों के आगे मिट्टी होती विरासत-
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की लगभग तीन हजार संरक्षित ‘धरोहरों’ में से 92 विलुप्‍त हो चुकी हैं। जिसमें सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश की है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग(एएसआई) के 24 स्‍मारक ऐसे हैं, जिन्‍हें अब तक सरकार खोज पाने में फेल रही है। इन्‍हें ढूंढे न जा सकने वाले स्‍मारकों की सूची में डाल दिया गया है जबकि 12 ऐसे स्‍मारक हैं जो जलाशयों या किसी बांध के नीचे हैं। इसके अलावा ऐसे तो कई राज्यों के नाम शामिल इस सूची में जिसमें राजस्थान की भी दो धरोहर शामिल है। ये खुशी की बात भी है लेकिन इस सच से भी मुंह मोड़ा नहीं जा सकता कि राजस्थान की कई प्राचीन मंदिर, किले, बावडियां आदि खंडहरों में तब्दील हो रहे हैं। यानी हम हमारी आने वाली पीढ़ी को विरासत में केवल मिट्टी सौपेंगे।

भारत के हर शहर में विरासत स्थल
14 नवम्बर 1977 को भारत को विश्व धरोहर सूची में स्थान मिला। तब से अब तक
३४ भारतीय स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया जा चुका है। भारत में अनगिनत विरासत स्थल हैं, लगभग हर शहर में हैं फिर भी उनमें से बहुत से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। क्या हम अपनी विरासत पर गर्व करते हैं? क्या हम उस विशाल खजाने को स्वीकार करते हैं जो हमारे पूर्वज हमारे लिए छोड़ गए हैं? इनमें आश्चर्यजनक स्मारक हैं। ये प्राकृतिक हैं और मानव निर्मित भी। इन विरासत स्थलों की सुरक्षा हमारे हाथों में है। पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक दुर्भाग्य से, कुछ लोगों के अलावा हमें बाकी की जानकारी नहीं है! भारत के कुल 3४ स्थलों को इस सूची में शामिल किया गया है। आइए, जानते हैं कुछ के बारे में

स्थल                         राज्य              सूची में शामिल किए जाने का वर्ष
अंजता की गुफाएं         औरंगाबाद (महाराष्ट्र)              1983
एलोरा की गुफाएं          औरंगाबाद (महाराष्ट्र)              1983
आगरा किला             आगरा    (उत्तर प्रदेश)             1983
ताजमहल                आगरा    (उत्तर प्रदेश)              1983
कोणार्क का सूर्य मंदिर     पुरी       (ओडिशा)                1984
महाबलीपुरम के स्‍मारक समूह        (तमिलनाडु)            1984
गोवा के चर्च और आश्रम             (गोवा)                 1986
खजुराहो के स्‍मारक        खजुराहो (मप्र)                   1986
हम्‍पी के स्‍मारक           बेल्लारी  (कर्नाटक)                 1986
फतेहपुर सीकरी           आगरा  (उप्र)                      1986
पट्टादकल के स्‍मारक समूह  कर्नाटक                         1987
एलिफेंटा की गुफाएं          मुंबई                            1987
बृहदिस्‍वर मंदिर तंजावुर      तमिलनाडु                       1987
सांची के बौद्ध स्‍मारक        मप्र                             1989
हुमायूं का मकबरा             दिल्‍ली                       1993
कुतुब मीनार और उसके स्‍मारक दिल्‍ली                   1993
दार्जिलिंग हिमालय रेलवे                                  1999
महाबोधी मंदिर परिसर   बोध गया (बिहार)                2002
भीमबेटका के रॉक शेल्‍टर                                  2003
छत्रपति शिवाजी टर्मिनल        मुम्बई                   2004
चंपानेर.पावागढ़ पुरातत्‍व पार्क                            2004
चोला मंदिर                                               2004
फूलों की घाटी नेशनल पार्क                               2005
नीलगिरी माउंटेन रेलवे                                   2005
लाल किला परिसर                                     2007
कालका शिमला रेलवे                                  2008
जंतर मन्तर            जयपुर (राजस्थान)             2010
राजस्थान के राजपूताना शैली के 6 किले             2013
(आमेर, गागरौन, जैसलमेर, चित्तौडग़ढ़, कुंभलगढ़,  रणथंभौर किला) आदि।

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