पार्टियों का गिरता स्तर और मुद्दा विहीन होता आम चुनाव

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देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनैतिक सरगर्मियां उफान पर हैं। चुनाव में अपना परचम लहराने के लिए साम दाम की रणनीति अपनाने से भी राजनैतिक पार्टियां बिल्कुल गुरेज नहीं कर रही हैं। नेताओं के लगातार विवादित बयानों ने भी माहौल में गर्मी बढ़ाई हुई है। इन सबके बीच पार्टियां जनता को अपने वादों से लगातार रिझाने की भी कोशिश कर रही है। अंतरिम बजट में सरकार की ओर से किसानों को सालाना 6  हजार रूपये देने की घोषणा से लेकर देश में महीने 12 हजार से कम पाने वाले परिवारों को 72 हजार रूपये सालाना देने की कांग्रेस की घोषणा उसी कवायद का हिस्सा है। बयानों में भी मुद्दों से ज्यादा एक दूसरों के लिए विषवमन को जोर दिया जा रहा है। 2019 का लोकसभा चुनाव लगातार मुद्दों से खिसकता हुआ दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री भी अपने हर साक्षात्कार में मुद्दों पर जवाब देने से ज्यादा उसको हिंदू मुस्लिम का रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। सेक्युलरिज्म पर कमेंट कर रहे हैं। 4 साल तक जिन तत्वों पर चुप रहने वाले देश के निजाम को आखिर मुद्दों से हटकर हिंदू आतंकवाद का मुद्दा क्यों उछालना पड़ रहा है। राहुल गांधी भी अभी राफेल पर ही अटके हुए हैं, वह वहां से नीचे ही उतर पा रहे हैं। चौकीदार चोर है के नारों में  अभी तक उलझे पड़े हैं। अभी तक पूरे चुनावी कैंपेन में किसी भी माननीय की तरफ से यह कहीं भी सुनाई नहीं पड़ा कि देश की कृषि सकल घरेलू उत्पाद अपने सबसे निचले स्तर पर क्यों है। सूक्ष्म उद्योगों के विकास में लगातार क्यों गिरावट आ रही है। देश में रोजगार कैसे सृजित करेंगे इसका भी जवाब अभी तक किसी राजनैतिक पार्टी के पास नहीं है। इन्हीं सबके बीच दोनों राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी ने जनता को लुभाने के लिए अपने अपने मेनिफेस्टों लांच कर दिए। दोनों ने अपने मेनिफेस्टों में तमाम तरह के लोकलुभावन वादें किए हैं। जनता के सामने दोनों ने अपना मेनिफेस्टों रख दिया है।जनता को किसका मेनिफेस्टों ज्यादा मुफीद लगा इसका खुलासा 23 मई को हो जाएगा।

कांग्रेस बोली हम निभांएगे
कांग्रेस के मेनिफेस्टों मे रोजगार, उदेयोग किसान, आर्थिक नीति, राष्ट्रिय और आंतरिक सुरक्षा, महिला सशक्तकरण, शिक्षा और स्वास्थय को जगह दी है। सरकार के खुद के आकड़ों के अनुसार बेरोजगारी पिछले 45 सालों में अपने सबसे उचले स्तर पर है और लगातार उसके दर में इजाफा भी हो रहा है। कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टों में लिखा है कि अगर उनकी सरकार आती है तो वह बेरोजगारी की समस्या दूर करने के लिए उद्योग सेवा और रोजगार मंत्रालय का गठन करेंगे। ये मंत्रालय युवाओं के लिए रोजगार सृजन का काम करेगी। इसके साथ ही कांग्रेस ने यह भी वादा किया है कि केंद्र सरकार में खाली पड़ी सभी 4 लाख रिक्तियां को मार्च 2020 तक भर देगी। इसके साथ ही कांग्रेस ने तकरीबन देश की 20 प्रतिशत परिवारों को 72000 रूपये सालाना देने की घोषणा की है। 20 प्रतिशत परिवारों को अगर जनसंख्या के मापदंड में गिने तो तकरीबन 5 करोड़ परिवारों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। यह राशि सीधे परिवार की महिलाओं के खाते में प्रदान की जाएगी। कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में कुछ ऐसे मुददों को भी छुआ है जिनको लेकर राजनीति गरमाई हुई है। इन मुद्दों को लेकर बीजेपी उसपर लगातार हमलावर होती जा रही है। कांग्रेस ने देशद्रोह के कानून धारा 124 A  को पूरी तरह हटाने का वादा किया है तथा सीमावर्ती इलाकों में लागू अफस्पा के कानून की समीक्षा कर जरूरत पड़ने पर आमूलचूल बदलाव करने की भी बात कही है।

बीजेपी का संकल्प पत्र
भाजपा ने अपने मेनिफेस्टों को संकल्प पत्र के नाम से लांच किया है। उन्होंने 2022 तक देश की आजादी के 75 वीं सालगिरह पर 75 संकल्प पूरा करने का वादा किया है। शिक्षा, स्वास्थय, रोजगार से लेकर अर्थव्यवस्था तक को बेहतर बनाने का संकल्प लिया है। भाजपा ने अपने मेनिफेस्टों मे कुछ बातें फिर से वहीं  दोहराई हैं जो उसने 2014 के मेनिफेस्टों में दोहराई थी। कश्मीर से धारा 370 और आयोध्या में राम मंदिर बनाने की बात का इस मेनिफेस्टों में भी जिक्र किया गया है। बशर्ते राम मंदिर पहले डंके की चोट पर बनाने की बात कही जाती थी लेकिन इस दफा राम मंदिर पर बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टों में लिखा है कि संविधान के दायरे में रहकर आयोध्या में शीघ्र राम मंदिर के लिए सभी संभावनाओं को तलाशा जाएगा और इसके लिए सभी आवश्यक प्रयास किए जाएंगे। इसके आलावा बीजेपी ने नमामि गंगे, संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्ता और सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने की भी कोशिश करने की भी बात कही है।

देशद्रोह कानून और अफस्पा पर रार
कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टों में धारा 124 A खत्म करने और अफस्पा की समीक्षा कर जरूरी होने पर आमूलचूल बदलाव की बात कही है। इसके बाद से ही  बीजेपी कांग्रेस पर काफी हमलावर दिख रही है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों इस मामले में अपने अपने सोचे समझे प्लान की तहत काम करते हुए दिख रहे हैं। कांग्रेस को पहले से पता है कि मैदानी इलाकों में अब उसकी जमीन उतनी नहीं है इसलिए वह अफस्पा की समीक्षा के नाम पर सीमावर्ती इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत करने का ख्वाब देख रही है। बीजेपी भी कांग्रेस के इन वादों का अपने पक्ष में भरपूर फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। बीजेपी कांग्रेस के इस घोषणा को देश के खिलाफ दिखा कर मैदानी इलाकों में अपनी स्थिति और भी मजबूत करने की कवायद में है। अफस्पा को लेकर मानव अधिकार अल्लंघन के कई तरह के सवाल पहले भी उठे हैं लेकिन सरकारों ने उसे बनाए रखा। अफस्पा की वजह से सेना को किसी भी मामले में कार्रवाई करने का अतिरिक्त अधिकार मिल जाता है। अफस्पा उन्हे खुद के अधिकारों को बचाए रखने में सहूलियत प्रदान करती है। इसी बात बीजेपी जनता के बीच लेकर जाएगी और जनता को ये विश्वास भरोसा दिलाने की भरपूर कोशिश करेगी कि कांग्रेस का घोषणापत्र देश के हित में नहीं है और अफस्पा भारतीय सेना के हाथ से अधिकार छीनने का एक तरीका है।

मेनिफेस्टों होते हैं जारी, लेकिन काम जमीन पर नहीं दिखता
70 सालों से पार्टियां मेनिफेस्टों जारी करते आ रही हैं। हर लोकसभा चुनाव का ये एक अहम दस्तूर हो कर रह गया है। लेकिन पार्टियां जब सत्ता पर काबिज होती हैं तो अपने किए हुए वादों को भूल जाती हैं। आज तक भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में न कभी किसी मेनिफेस्टों को पूरी तरह पूरा किया गया है और न ही आंवटित बजट की राशि पूरी तरह खर्च की गई है। पार्टियां सत्ता पर काबिज होती हैं उसका दोहन करती हैं और फिर इस दोहन की प्रकिया अन्य पार्टियों को हस्तांतरण कर देती हैं। यह स्थिति 70 सालों से सतत तरीके चली आ रही है। अगर किसी भी पार्टी ने इमानदारी से अपने मेनिफेस्टों में किए गए वादे को पूरा कर दिया होता तो शायद आज देश की स्थिति बिल्कुल अलग होती और हम विश्व के सर्वोत्तम देशों में से एक होते।

मुद्दा विहीन होता चुनाव
2019 के लोकसभा चुनाव की सरगर्मियों पर गौर करें तो दिखेगा दोनो पार्टियों ने मेनिफेस्टों में जो बातें लिखी है उनका चुनावी कैम्पेन बिल्कुल उसके उलट है। उनके भाषणों में मेनिफेस्टों में अंकित की गई बातों का बेहद कम जिक्र सुनाई और दिखाई पड़ता है। ऐसा लगता है 2019 का लोकसभा चुनाव एकदम मुद्दा विहीन होता हुआ नजर आ रहा है। नेताओं के भाषणों में मुद्दों से ज्यादा एक दूसरें पर व्यक्तिगत आक्षेप की मात्रा दिखाई पड़ती है। सत्तारूढ़ दल से लेकर विपक्षी दल के नेता एक दूसरे पर कड़वे बोल बोलने से तनिक भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। धर्म विभेद से लेकर जाति विभेद तक का भाषणों में जिक्र किया जा रहा है। खास समुदाय को उकसा कर या दूसरी पार्टी का डर दिखा कर वोट मांगे जा रहे हैं। नेता अपने उद्बोधन मे अली से लेकर बजरंगबली तक का जिक्र कर वोटों का ध्रुवीकरण करने के प्रयास में लगातार लगें हुए हैं। अपने राजनीतिक फायदों के लिए सेना तक को बीच में घसीटा जा रहा है। अपने फायदे के लिए आचार संहित तक की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। 2019 का पूरा चुनाव मुद्दा विहीन होने की कगार पर बढ़ रहा है। इन सबके बावजूद जनता किसकी किस्मत का ताला खोलेगी यह पूरी तरह से 23 मई को साफ हो जाएगा। तब तक 19 मई से पहले बयानवीरों के बयान थमने के कम आसार दिखाई पड़ते हैं।

सचिन धर दुबे

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