वट सावित्री व्रत: क्या हैं इससे जुड़ी मान्यता, ऐसे रखें व्रत, शुभ मुहूर्त

इस बार ये व्रत 25, गुरुवार के दिन है। इस साल संयोग ऐसा बना है कि इसी दिन शनि जयंती व स्नान, दान अमावस्या भी पड़ रहे हैं।

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धर्म डेस्क: हिन्दूओं में वट सावित्री व्रत को करवा चौथ के तरह ही माना जाता है। ग्रंथ स्कन्द व भविष्य पुराण में वट सावित्री के बारे में बताय़ा गया है जिसके अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। यह व्रत अपने पति के दीर्घायु के लिए रखा जाता है। इस बार ये व्रत 25, गुरुवार के दिन है। इस साल संयोग ऐसा बना है कि इसी दिन शनि जयंती व स्नान, दान अमावस्या भी पड़ रहे हैं।

मान्यताएं
वट सावित्री व्रत में महिलाएं 108 बार बरगद की परिक्रमा कर पूजा करती हैं। कहते हैं कि गुरुवार को वट सावित्री पूजन करना बेहद फलदायक होता है। ऐसा माना जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस ले लिया था। इस दिन महिलाएं सुबह से स्नान कर लेती हैं और सुहाग से जुड़ा हर श्रृंगार करती हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने के बाद ही सुहागन को जल ग्रहण करना चाहिए।

शुभ मूहूर्त:

वट सावित्रि अमावस्या तिथि प्रारंभ: सुबह 5 बजकर 7 मिनट से (25 मई 2017)

वट सावित्रि अमावस्या तिथि समाप्त: सुबह 1 बजकर 14 मिनट तक (26 मई 2017)

पूजन विधि
वट सावित्री व्रत के दिन सभी कामों से मुक्त होकर अपने जल को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। इसके बाद सोलह श्रृंगार करके महिलाएं बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। ब्रह्माजी के बाईं ओर सावित्री तथा दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। (कई वर्षों बाद 25 मई को बन रहा है महासंयोग, करें इन चीजों की खरीदारी)

इसके बाद टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख देना चाहिए। इसके बाद सावित्री व सत्यवान का पूजन कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजन के समय जल, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का इस्तेमाल करना चाहिए। सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर तीन बार परिक्रमा कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुने।

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