बढ़ती भूख ना जानें कब हिंसा की और धकेल दे

दुनिया 150.8 मिलियन बच्चे अविकसित हैं और उनमें से सिर्फ भारत में ही 46.6 मिलियन बच्चे हैं। कुपोषण के मामले में पहले ही भारत की स्थिति चिंताजनक है।

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दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है। भुखमरी पर यूएन की रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े भी ये बता चुके हैं कि साल 2030 तक भुखमरी मिटाने का अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य भी खतरे में आ सकता है। दुनिया के कुपोषितों में से 19 करोड़ कुपोषित लोग भारत में हैं। साल 2018 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के मुताबिक भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर है। पिछले साल भारत 100वें स्थान पर था। सोचने वाली बात है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जो हमेशा गरीब के हितों की बात करती है उसके राज में भारत भुखमरी में लगातार पिछड़ता जा रहा है। बता दें, साल 2014 में भारत 99वें स्थान पर था। वहीं साल 2015 में थोड़े सुधार के साथ भारत 80वें स्थान पर जा पहुंचा।

इसके बाद साल 2016 में 97वें और साल 2017 में 100वें पायदान पर पहुंच गया। जीएचआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भूख की स्थिति बेहद गंभीर है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ‘2018 बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक’ के मुताबिक साल 2005-06 से 2015-16 के बीच एक दशक में भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल गए हैं। हालांकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स की इस रिपोर्ट ने इन दावों पर कई गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पांच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को विवश है जिसका असर सीधेतौर पर मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है।

रिपोर्ट की भाषा में ऐसे बच्चों को ‘स्टन्टेड’ नाम दिया है। जानकार हैरानी होगी कि हमारे पड़ोसी देश, श्रीलंका और चीन का रिकॉर्ड इस मामले में भारत से बेहतर हैं जहां क्रमशः करीब 15 प्रतिशत और 9 प्रतिशत बच्चे कुपोषण और अवरुद्ध विकास के पीड़ित हैं। भारतीय महिलाओं के हाल भी कोई अच्छे नहीं। रिपोर्ट बताती है कि युवा उम्र की 51 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं यानी उनमें खून की कमी है। इस लिस्ट में भारत सबसे उपर है, भारत के बाद पाकिस्तान, नाइजीरिया और इंडोनेशिया का स्थान आता है। भारत में 51 फीसदी यानि आधी से ज्यादा महिलाएं इस बीमारी से जूझ रही हैं।

क्यों है महिलाएं एनीमिया से पीड़ित-
हमारे देश में लड़कियों से होने वाले भेदभाव के चलते उनकी सेहत पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना की लड़के की सेहत पर दिया जाता है। जबकि लड़कियों को लड़कों से ज्यादा पोषक तत्वों की जरूरत होती है। आज भी हमारे घरों में लड़कों के खाने में दूध, दही घी आदि पर जोर दिया है। जबकि लड़कियां बचा हुआ खाना खाने को मजबूर है। ये हाल केवल लड़कियों का नहीं बल्कि शादीशुदा महिलाओं का भी है।

इस विषय में डॉक्टर शिखा सिंघवी का कहना है कि कुपोषण ही एकमात्र एनीमिया की वजह नहीं होता है, साफ सफाई का नहीं होना, लोगों में जागरुकता का नहीं होना, अशिक्षित होना भी इसकी अहम वजहे हैं। एनीमिया काफी खतरनाक हो सकता है खासकर जब महिलाएं गर्भवती होती हैं। इस स्थिति में पैदा होने वाले बच्चे अक्सर पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं या फिर उनका स्वास्थ्य सही नहीं रहता है। महिलाओं को यदि इस बीमारी से बचाना है तो उन्हें स्वच्छ वातावरण और पर्याप्त मात्रा में वे सभी पोषक तत्व देने की जरूरत है जिनसे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर सकें। इसके लिए घरों में पुरूष-स्त्री का भेदभाव भी मिटाना होगा।

बच्चों के विकास में भारत बहुत पीछे-
ग्लोबल रिपोर्ट के अनुसार भारत में अविकसित बच्चों का अनुपात सभी राज्यों में एक सा नहीं है। भारत के 604 जिलों में से 239 जिलों में अविकसित बच्चों का प्रतिशत 40 फीसदी से अधिक है। कुछ जिलों में ऐसे बच्चों की संख्या 12.4 फीसदी तक है तो कुछ जिलों में यह 65.1 फीसदी तक भी है। अविकसित बच्चों के साथ ही भारत में कमजोर बच्चों की संख्या भी काफी अधिक है। दुनिया भर में सबसे अधिक कमजोर बच्चे कम वजन और लंबाई के लिहाज से भी भारतीय ही हैं। भारत में 25.4 मिलियन कमजोर बच्चे हैं, इसके बाद 3.4 मिलियन के आंकड़े के साथ नाइजीरिया का नंबर आता है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे बच्चों की संख्या में 2005-06 की तुलना में वृद्धि देखी गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, इस वक्त दुनिया 150.8 मिलियन बच्चे अविकसित हैं और उनमें से सिर्फ भारत में ही 46.6 मिलियन बच्चे हैं। कुपोषण के मामले में पहले ही भारत की स्थिति चिंताजनक है। भारत के यह हालात ऐसे वक्त में है जब पहले की तुलना में भारत में अविकसित बच्चों के आंकड़े में काफी सुधार हुआ है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2005-06 में अविकसित बच्चों की तुलना में 2015-16 में लगभग 10 फीसदी की गिरावट देखी गई। 2005-06 में यह आंकड़ा 48 फीसदी बच्चों का था जो कि 2015-16 में कम होकर 38.4 फीसदी ही रह गया। आकंड़ों की फेरबदल की कहानी भी समस्या को और पेचीदा बनाएं हुए है।

बढ़ती भूख और हिंसा-
सोशल मीडिया पर एक तस्वीर काफी चर्चा में रहती है जिसमें एक बच्ची के मरने का इंतजार बाज करता हुआ दिखाई दे रहा है। इस तस्वीर का विरोध भी उतना होता जितना इसको वर्तमान हालात देखकर समर्थन मिलता है। भारत में बढ़ती भूखमरी की समस्या का हल जड़ से नहीं निकाला गया तो ये भूख हिंसा का रूप धारण कर सकती है। जिसप्रकार देश में धर्म के नाम पर पिछले कुछ सालों में हिंसा बढ़ी है, देश में मॉब लिचिंग के मामले बढ़ें हैं। उसी तरह कहीं भूख के लिए लोग एक दूसरे को मारने ना लगे। भारत को दूध-दही की नदियों वाला देश कहा जाता था लेकिन आज इस देश की हालात क्या है वो किसी से छुपी नहीं है। हम खाना तो  दूर, जो प्रकृति से मुफ्त का मिल रहा है उस पानी तक को नहीं बचा पा रहे है। ऐसे में यह कहना तो गलत नहीं होगा कि ये बढ़ती भूख हमें किसी दिन हिंसा का दिन दिखा सकती है।

इस बीमारी से बचने का एक ही उपाय है कि हमें सरकारी ढ़ाचें को मजबूत करना होगा। सरकारी योजनाएं सख्ती से लागू करनी होगी। गरीबों के हितों में काम करने होंगे। सरकारी योजनाओं का गरीबों के बीच अच्छे से प्रचार-प्रसार किया जाएगे। इन योजनाओं की अच्छी मॉनिटरिंग की जाए। फूड वेस्टेज (खाने की बर्बादी) के नुकसान के बारे में लोगों को बताया जाए। इस खाने के वितरण की हर राज्य में जिला स्तर और निचले स्तरों पर व्यवस्था हो। इस तरह ऐसे बहुत से तरीके होंगे जो हम अपने समाज की बदहाली और कुपोषण से छुटकारे के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं।

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