संस्कृत से ही संस्कार और संस्कृति का निर्माण होता है – कुमावत

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जिला संवाददाता भीलवाड़ा। दुनिया की सबसे प्राचीनतम भाषा जिसे देवताओं की भाषा होने का सौभाग्य प्राप्त हैं, जिस भाषा से दुनिया की सभी भाषाएं निकली हो, ऐसी संस्कृत भाषा को फिर से जन-जन की भाषा बनाने के लिए संस्कृत भारती निरंतर शिविरों के माध्यम से समाज को जोड़ने का कार्य कर रही है । संस्कृत से ही संस्कार और संस्कृति का निर्माण होता है । भारत के वैभवशाली इतिहास की ओर दृष्टि डालेंगे तो ज्ञात होता है कि भारत का वैभवशाली इतिहास संस्कृत साहित्य से भरा पड़ा है । बाहरी आक्रांताओं ने सबसे पहले देश के साहित्य को नष्ट करने का कार्य किया जिससे कि देश का स्वाभिमान फिर से खड़ा ना हो सके और यही चाल अंग्रेजों ने भी चली इसीलिए आंग्ल भाषा पढ़ने वाले भारतीयों का नैतिक पतन प्रारंभ हुआ । जिस राष्ट्र का चरित्र उच्च हो, महान विचार हो ऐसे राष्ट्र को अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा नीति के कुचक्र से तोड़ने का प्रयत्न किया । यह बात संस्कृत भारती शाहपुरा द्वारा खामोर में आयोजित संस्कृत संभाषण शिविर के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए हैं भीलवाड़ा विभाग संयोजक परमेश्वर प्रसाद कुमावत ने कही । कुमावत ने कहा है कि राष्ट्र की महान सांस्कृतिक विरासत संस्कृत से ही जिंदा है इसीलिए फिर से संस्कृत को लोक भाषा बनाने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरपंच प्रतिनिधि बलवंत सिंह राठौड़ ने कहा कि आज दुनिया के दूसरे देश संस्कृत पढ़ रहे हैं । जर्मनी जैसे देश ने भारत की संस्कृत साहित्य को पढ़कर कई शोध किए हैं परिणाम स्वरूप आज वे लोग अनुसंधान के क्षेत्र में आगे हैं ।

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