मधुर जिंदगी जीने के लिए ह्रदय मे पवित्रता होना जरूरी – साध्वी आनन्दप्रभा

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संवाददाता भीलवाड़ा। जैन साधु चमत्कार दिखाता नही है, प्रदर्शन रहित होता है, साधना में लीन रहता है जिससे उसको लब्धि मिल जाती है। जहाँ पर देव, गुरु, धर्म, सत्य होता है वहा पर कोई भी परेशानी नही आती है, अगर किसी कारण से आ भी गई तो वह वापिस चली जाती है। कभी भी किसी भी साधु – संत की बुराई या आलोचना नही करनी चाहिए। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी आनन्दप्रभा ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि जीवन मे सुख शांति केवल सुविधाओ से नही मिलती है, मधुर जिंदगी जीने के लिए सच्चाई, प्रसन्नता और ह्रदय में पवित्रता होना जरूरी है। प्रार्थना करते समय पुण्य करते समय तो हमे लगता है कि भगवान हमे सुन रहे है या देख रहे है, पर किसी की निंदा – आलोचना,पाप करते समय हमे ऐसा क्यों नही लगता ? अपने अंहकार को विन्रमता में और क्रोध को शांति में रूपांतरित करने का प्रयास करना चाहिए। विन्रम और शांत रहना जीने की कला का अनिवार्य चरण है। दुनिया मे सुनाने वाले बहुत है, पर सुनने वाले कम है। सुनने वालों में भी समझने वाले और कम है, समझने के बाद सुधरने वाले तो सौ में से एक या दो ही है। आप सुधरने वालो में बनिये, न कि सुधारने वालो में। जीवन मे बेहिसाब का संग्रह मत कीजिये, अपरिग्रह सुखी जीवन का मंत्र है। धर्मसभा को साध्वी डॉ चंद्रप्रभा ने भी संबोधित किया। बाहर से आने वाले श्री संघो का स्थानीय संघ ने शब्दो से स्वागत किया।

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