35 साल में गांधीजी ने पृथ्वी के 2 चक्कर के बराबर पैदल यात्राएं कीं, रिसर्च में खुले सेहत से जुड़े कई राज

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नई दिल्ली. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के निधन के 71 साल बाद उनकी सेहत को लेकर कई खुलासे हुए। जो तथ्य सामने आए हैं उनको पढ़कर शायद आपको हैरानी हो। गांधीजी के स्वास्थ्य पर आधारित एक पुस्तक ‘गांधी एंड हेल्थ@150’ में कहा गया है कि शाकाहारी भोजन और नियमित व्यायाम उनकी अच्छी सेहत का राज था।

गाधी का मानना था कि व्यायाम मन और शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि भोजन मन, हड्डियों और मांस के लिए। यह पुस्तक राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती के मौके पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित की है। इस पुस्तक में महात्मा गांधी की आहार सारणी से लेकर उन्हें हुए रोगों के संबंध में जानकारी दी गई है।

इस पुस्तक के मुताबिक, गांधी ने 35 साल में देशभर में 79 हजार किमी की यात्राएं कीं। यह एक अनुमान के मुताबिक पृथ्वी के एक चक्कर (40 हजार किलोमीटर) का लगभग दो गुना है। यानी अगर वे इस अवधि में धरती का चक्कर लगाते, तो दो बार इसकी परिक्रमा कर लेते।  रोजाना करीब 18 किमी पैदल चलते थे। सुबह चार बजे जगने के बाद एक घंटे की सैर और रात में सोने से पहले भी 30 से 45 मिनट पैदल चलते थे।

जब लालटेन की रोशनी में हुई गांधी की सर्जरी
गांधीजी ने 1913-48 तक79 हजार किमी की यात्रा की। उन्हें 1925, 1936, 1944 में 3 बार मलेरिया हुआ। 1919 में पाइल्स की भी सर्जरी हुई थी। चौरी-चौरा कांड के बाद 1922 में जब गांधीजी जेल गए, उसके बाद पेट में तेज दर्द हुआ था। जांच के बाद 1924 में उनकी अपेंडिक्स की सर्जरी डॉ. मैडोक ने की थी। सर्जरी के दौरान बिजली चली गई थी, तब लालटेन की रोशनी में सर्जरी की गई थी।

70 की उम्र में गांधी की सेहत
जब गाधी 70 वर्ष के थे, उस समय उनकी लंबाई 5 फीट 5 इंच और वजन 46.7 किलोग्राम था जबकि उनका बॉडी मास इंडके्स 17.1 था। लंबाई के अनुपात में गांधीजी का वजन कम था, हालांकि उनका हीमोग्लोबिन 14.96 था। उनका ब्लड प्रेशर हमेशा सामान्य से ज्यादा रहता था, लेकिन दो बार (26 अक्टूबर 1937 और 19 फरवरी 1940) ऐसी स्थिति आई थी, जब उनका ब्लड प्रेशर 220/110 रिकॉर्ड किया गया था।

गांधी ने किए अपनी सेहत के साथ कई प्रयोग

राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में संरक्षित पुस्तक में दावा किया गया है कि गांधी के भोजन के साथ प्रयोगों, लंबे उपवासों और चिकित्सीय सहायता लेने में हिचकिचाहट ने कुछ मौकों पर उनकी सेहत को खराब कर दिया था और उन्होंने महसूस किया था कि “वह मृत्यु के दरवाजे पर हैं।

वे शाकाहारी थे। वे कहते थे जो मानसिक परिश्रम करते हैं, उनके लिए भी शारीरिक परिश्रम करना बेहद जरूरी है। गांधीजी एलोपैथी दवा के विरोधी नहीं थे। वे नेचुरोपैथी और आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करना ज्यादा पसंद करते थे।इतने तनाव के बाद भी गांधीजी के हार्ट में कभी कोई समस्या नहीं आई। 1937 में उनकी ईसीजी जांच से यह तथ्य स्पष्ट होता है। उनका मानना था कि प्रकृति के विरोध में जाने से जो गड़बड़ी हुई है, वह प्रकृति के साथ रहने से ही ठीक होगी। वे यह भी कहते थे कि जो मानसिक परिश्रम करते हैं, उनके लिए भी शारीरिक परिश्रम करना बेहद जरूरी है।

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